सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: मस्जिदों पर नए दावे वाले केस दर्ज करने पर रोक, जानें कब तक लागू

सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उपासना स्थल अधिनियम, 1991 से संबंधित जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले के अंतिम निपटारे तक इस अधिनियम के तहत देश में कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। इस फैसले के बाद मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलों पर दावा […]

Dec 12, 2024 - 19:33
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: मस्जिदों पर नए दावे वाले केस दर्ज करने पर रोक, जानें कब तक लागू

सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उपासना स्थल अधिनियम, 1991 से संबंधित जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले के अंतिम निपटारे तक इस अधिनियम के तहत देश में कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। इस फैसले के बाद मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलों पर दावा करने से जुड़े नए मुकदमे दायर करने पर रोक लग गई है।

1991 के उपासना स्थल अधिनियम के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, उसे उसी स्वरूप में बनाए रखना अनिवार्य है। इस अधिनियम के तहत किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव करने या उस पर पुनः दावा करने के लिए कोई मुकदमा दायर करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। यह कानून धार्मिक स्थलों को लेकर विवादों को रोकने और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए लागू किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करेगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार को अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके बाद, अन्य पक्षों को भी अपने जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया। मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान कहा, “जब तक इस मामले का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक इस अधिनियम के तहत कोई नया मामला दायर नहीं होगा।”

याचिकाओं में क्या कहा गया है?

सुप्रीम कोर्ट में अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। इनमें प्रमुख याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई है। उपाध्याय का दावा है कि यह कानून नागरिकों को न्यायिक उपचार के अधिकार से वंचित करता है। उन्होंने अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को असंवैधानिक करार देने की मांग की है। इसके अलावा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य संगठनों ने इस अधिनियम का समर्थन करते हुए इसे देश की सार्वजनिक व्यवस्था, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक एकता के लिए आवश्यक बताया है।

यह मामला वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, और संभल की शाही जामा मस्जिद से संबंधित विवादों की पृष्ठभूमि में सामने आया है। इन मामलों में हिंदू पक्षों ने दावा किया है कि इन स्थलों का निर्माण प्राचीन मंदिरों को तोड़कर किया गया था। मुस्लिम पक्ष ने इन दावों को खारिज करते हुए 1991 के अधिनियम का हवाला दिया है।

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