फतेहपुर: कौन थे अब्दुल समद खान, क्या था मुगलों और लाहौर से कनेक्शन? जिनके मकबरे पर हुआ बवाल

Fatehpur Nawab Abdul Samad Tomb Controversy: फतेहपुर में बने अब्दुल समद खान के मकबरे को लेकर विवाद हो गया है. इसे मंगी मकबरा भी कहते हैं. हिन्दू पक्ष इसे मंदिर बता रहा है और मुस्लिम पक्ष मकबरा कह रहा है. जिला प्रशासन ने विवादित परिसर से सभी पक्षों को बाहर कर दिया है. वहां बेरिकेडिंग करते हुए सुरक्षा के तगड़े बंदोबस्त कर दिए गए हैं. जानिए, कौन थे अब्दुल समद खान, क्या था मुगलों और लाहौर से कनेक्शन.

Aug 13, 2025 - 19:52
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फतेहपुर: कौन थे अब्दुल समद खान, क्या था मुगलों और लाहौर से कनेक्शन? जिनके मकबरे पर हुआ बवाल
फतेहपुर: कौन थे अब्दुल समद खान, क्या था मुगलों और लाहौर से कनेक्शन? जिनके मकबरे पर हुआ बवाल

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर शहर में बने एक मकबरे को लेकर इन दिनों एक नया विवाद शुरू हुआ है. हिन्दू पक्ष इस इमारत को मंदिर बता रहे हैं तो मुस्लिम मकबरा बता रहे हैं. ताजे विवाद के बाद जिला प्रशासन ने विवादित परिसर से सभी पक्षों को बाहर कर दिया है. वहां बेरिकेडिंग करते हुए सुरक्षा के तगड़े बंदोबस्त कर दिए गए हैं. उधर, उत्तर प्रदेश विधान सभा में मंगलवार को समाजवादी पार्टी के विधायकों ने इस मसले पर हंगामा किया तो स्थानीय सांसद नरेश उत्तम पटेल ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पूरे मामले की जांच और समुचित कार्रवाई की मांग की है.

इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होगी, यह केंद्र और राज्य सरकारों को तय करना है. इस रिपोर्ट में विवाद के बहाने इस मकबरे के मुगल और लाहौर कनेक्शन की जानकारी मिलेगी. स्थानीय लोग इसे किस नजरिए से देखते हैं, उसकी जानकारी भी मिलेगी.

मंगी मकबरा उर्फ अब्दुल समद खान का मकबरा

फतेहपुर शहर में स्थित इस इमारत को मंगी मकबरा और अब्दुल समद खान का मकबरा भी कहा जाता है. इसे लेकर जो जानकारियां अब तक सामने आ रही हैं, उसके मुताबिक साल 1970 तक यह प्रॉपर्टी मान सिंह परिवार के पास थी. शकुंतला मान सिंह से इसे रामनरेश सिंह ने खरीद लिया था.

स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सिंह कहते हैं कि साल 2007 में राम नरेश सिंह के निधन के बाद उनके परिवार का ध्यान इस ओर नहीं गया. इस बीच अनीस नाम के व्यक्ति ने यहां झाड़-फूंक शुरू किया और बाद में अदालत से एक पक्षीय फैसला करवा लिया. राम नरेश सिंह कहते हैं कि जब इस संपत्ति पर राम नरेश सिंह के परिवार का ध्यान गया तो वे लोग साल 2012 में सिविल जज की अदालत में गए. यह केस अभी भी लंबित है. इसी साल यह संपत्ति वक्फ बोर्ड की खतौनी में दर्ज हो गयी. इस हालात में यह मामला किसके पक्ष में जाएगा, यह भविष्य में ही पता चलेगा. तब तक इसी बहाने इसके ऐतिहासिक पक्ष को जानने का प्रयास करते हैं.

Nawab Abdul Samad Tomb Fatehpur

अब्दुल समद खान का मकबरा

मुगल काल से ही फतेहपुर का स्थान अहम

फतेहपुर मुग़ल काल से ही एक अहम स्थान रखता है. जीटी रोड पर होने की वजह से इसका महत्व दिन-ब-दिन बढ़ता ही गया. इस ज़िले के कस्बों और मार्गों पर सराय, मस्जिदें और मक़बरे आज भी उस दौर की गवाही देते हैं. इन्हीं स्मारकों में एक को स्थानीय तौर पर अब्दुल समद ख़ान का मक़बरा कहा जाता है और हाल के वर्षों में इसके इर्द-गिर्द पहचान, स्वामित्व और संरक्षण को लेकर विवाद भी सामने आया है, जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है.

इस विवाद को समझने के लिए अब्दुल समद ख़ान कौन थे, उनका लाहौर से क्या संबंध था, मुग़ल प्रशासन में उनकी क्या भूमिका रही और फतेहपुर जैसे स्थान पर उनका मक़बरा क्यों हो सकता है—इन सभी पहलुओं पर चर्चा समय की मांग है.

आखिर कौन थे अब्दुल समद ख़ान?

अब्दुल समद ख़ान के बारे में कई जगह अब्दुस समद ख़ान के रूप में भी उल्लेख मिलता है. वे 18वीं सदी के आरंभिक दशकों में मुग़ल साम्राज्य के प्रभावशाली अमीरों में गिने जाते थे. औरंगज़ेब के बाद के उत्तराधिकार-युद्धों और लगातार कमज़ोर होती केंद्रीय सत्ता के बीच उन्होंने पंजाब ख़ासतौर पर लाहौर में प्रशासनिक और सैन्य नेतृत्व किया था. वे लाहौर सूबे के सूबेदार यानी गवर्नर रहे और उनकी सैन्य सक्रियता का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण 17151716 के अभियानों में दिखता है, जब सिख नेता बंदा सिंह बहादुर और उनके साथियों की घेराबंदी, गिरफ्तारी और दिल्ली ले जाकर दंडित किए जाने की कार्रवाइयों में अब्दुल समद ख़ान और उनके पुत्र ज़करिया ख़ान का नाम आता है. बाद में ज़करिया ख़ान स्वयं लाहौर के सूबेदार बने और 17201740 के दशक में पंजाब की राजनीति में केंद्रीय किरदार रहे.

Nawab Abdul Samad Tomb Fatehpur Picture

फतेहपुर स्थित अब्दुल समद खान के मकबरे को मंगी मकबरा भी कहते हैं.

लाहौर से कनेक्शन

लाहौर कनेक्शन का एक दूसरा पहलू यह है कि मुग़ल अमीरों की जागीरें एक से अधिक सूबों में फैली रहती थीं. वे जहाँ तैनात होते, उससे अलग क्षेत्रों में भी आर्थिक और सामाजिक नेटवर्क बनाए रखते थे. इस पृष्ठभूमि में यह असामान्य नहीं कि किसी अमीर का मक़बरा उसके प्रशासनिक मुख्यालय से अलग, किसी और स्थान पर बना हो ख़ासकर ऐसे मार्गों पर जो साम्राज्य की रीढ़ माने जाते थे, जी.टी. रोड ऐसी ही एक महत्वपूर्ण रोड हुआ करती थी. आज भी इसका महत्व बना हुआ है.

दिलीप सिंह कहते हैं कि इस इमारत को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि यह बहुत पुरानी है. पुरानी इमारतों में प्रायः लखौरी ईंटें लगती हैं. इसमें आजकल इस्तेमाल होने वाली ईंटें लगी हैं.

फतेहपुर और मुग़ल दौर

फतेहपुर मुग़ल काल में इलाहाबाद और कन्नौज-कानपुर के बीच का अहम पड़ाव रहा. साल 1659 में यही ज़िला उस ऐतिहासिक ख़ाजवा के मैदान से जुड़ा है जहाँ औरंगज़ेब और शाहशुजा के बीच निर्णायक भिड़ंत हुई. इस सामरिक वाणिज्यिक धुरी पर मुग़ल शासन ने कारवां-सराय, मस्जिदें और विश्राम-स्थल विकसित किए ताकि सेना, दूत और व्यापारी निर्बाध यात्राएं कर सकें. अब्दुल समद ख़ान सरीखे अमीर के लिए, जिनके पास व्यापक सैन्य-सामंती संसाधन और फैली जागीरी पकड़ थी, किसी ऐसे केंद्रीय मार्ग पर मक़बरा होना अस्वाभाविक नहीं माना जाएगा, भले उनका प्रशासनिक प्रतिष्ठान लाहौर रहा हो. कई बार अमीर अपने वंश-परंपरागत आध्यात्मिक गुरुत्व वाले क्षेत्र में दफ़न होना पसंद करते थे, कभी-कभी दफ़न-स्थल परिवार के अधिकार और संरक्षण में होने से भी तय होता था.

Aurangzeb

मुगल बादशाह औरंगजेब.

वास्तु-शैली और काल-निर्धारण की परंपराएं

उत्तर भारत में 17वीं18वीं सदी के मक़बरों में कुछ सामान्य विशेषताएं मिलती हैं. फतेहपुर क्षेत्र में जिन संरचनाओं को स्थानीय तौर पर मुग़लकालीन मक़बरा कहा जाता है, उन पर अक्सर लाखौरी ईंटों और चूने का प्रयोग दिखाई देता है. इस संरचना को लेकर स्थानीय परंपरा में अब्दुल समद ख़ान का नाम चलता आया है; मगर किसी प्रामाणिक शिलालेख की स्पष्ट और उच्च-गुणवत्ता वाली पठनीय प्रति के बिना किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी.

लाहौर और फतेहपुर का ऐतिहासिक ताना-बाना

लाहौर और गंगा-यमुना दोआब के बीच राजनीतिक और आर्थिक आवाजाही थी. जी.टी. रोड का प्राचीन मार्ग पेशावर से लेकर बंगाल तक को जोड़ता रहा है. मुग़ल अमीरों की तैनाती, सेनाओं की आवाजाही और राजस्व-संग्रह के नेटवर्क इस मार्ग का इस्तेमाल करते रहे हैं. ऐसे में अब्दुल समद ख़ान जैसे अमीर का प्रभाव फतेहपुर तक किसी न किसी रूप में होना स्वाभाविक माना जा सकता है.

औरंगज़ेब के बाद के दौर में दिल्ली दरबार के लिए पंजाब से आने वाला सैन्य-सहारा और राजस्व-आधार बेहद अहम था, ऐसे में पंजाब के सूबेदारों की उत्तर-भारत के अन्य हिस्सों में पैठ गहरी बनी रहती थी. इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं.

सिख इतिहास, अब्दुल समद ख़ान, और राजनीतिक संदर्भ

अब्दुल समद ख़ान का नाम सिख इतिहास में इसलिए भी चर्चित है क्योंकि बंदा सिंह बहादुर के अभियानों का विराम साल 17151716 में उनके नेतृत्व की मुग़ल फ़ौजों के हाथों आया. उस समय दिल्लीलाहौरसरहिन्द की धुरी पर सिख-मुग़ल संघर्ष तीखा था और प्रशासन में कठोर नीतियों का बोलबाला रहा. बाद के वर्षों में उनके पुत्र ज़करिया ख़ान ने भी पंजाब में सिख समुदाय के विरुद्ध सख्ती बरती.

यह पूरा राजनीतिक संदर्भ इस मक़बरे के लाहौर कनेक्शन को सिर्फ़ भूगोल नहीं, बल्कि सत्ता की एक व्यापक कथा से जोड़ता है. अगर फतेहपुर का मक़बरा सचमुच अब्दुल समद ख़ान का है, तो यह स्मारक उत्तर भारत में मुग़ल-सिख संबंधों, प्रशासनिक भूगोल और सैन्य-इतिहास की एक ठोस कड़ी माना जाएगा. पर, यह साबित करने के लिए सरकारें, अदालतों, ऐतिहासिक दस्तावेजों आदि की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.

फतेहपर का मक़बरा, लाहौर का अमीर, और मुग़ल इतिहास की एक कड़ी

अब्दुल समद ख़ान, जो लाहौर के शक्तिशाली सूबेदार और मुग़ल सैन्य-प्रशासन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे, 18वीं सदी की उथल-पुथल भरी राजनीति के अहम पात्र हैं. फतेहपुर में उनके नाम से संबद्ध मक़बरा इस व्यापक इतिहास को स्थानीय दृष्टि से जोड़ता है. जी.टी. रोड की सामरिक अर्थव्यवस्था, मुग़लकालीन वास्तु-संस्कृति, और पंजाब-दिल्ली-दोआब की अंतर-निर्भरता, सब एक स्थल पर सिमट आती हैं. विवाद का समाधान तथ्यों, अभिलेखों और विशेषज्ञ परीक्षण से ही संभव है.

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