नैनीताल जामा मस्जिद भू-दस्तावेज मामला: कैसी बन गई इतनी बड़ी इमारत, किसने दी परमिशन, कोई नहीं जानता?

झील नगरी नैनीताल के ठीक मध्य में आलीशान मस्जिद का निर्माण और भू-संबंधी दस्तावेज और जानकारी सरकारीदफ्तरों से गायब हैं। अब वक्फ बोर्ड ने भी लिखकर दे दिया है कि उसे मस्जिद के क्षेत्रफल के बारे में कोई जानकारी नहीं है। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार पहले इस मस्जिद की संपत्ति यूपी सुन्नी वक्फ […]

Dec 9, 2024 - 12:14
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नैनीताल जामा मस्जिद भू-दस्तावेज मामला: कैसी बन गई इतनी बड़ी इमारत, किसने दी परमिशन, कोई नहीं जानता?

झील नगरी नैनीताल के ठीक मध्य में आलीशान मस्जिद का निर्माण और भू-संबंधी दस्तावेज और जानकारी सरकारीदफ्तरों से गायब हैं। अब वक्फ बोर्ड ने भी लिखकर दे दिया है कि उसे मस्जिद के क्षेत्रफल के बारे में कोई जानकारी नहीं है। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार पहले इस मस्जिद की संपत्ति यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास पंजीकृत थी, जिसे उत्तराखंड बनने के बाद वक्फ बोर्ड के पास पंजीकृत दर्ज हो गई। इसका क्षेत्रफल कितना था, इसके पुनर्निर्माण की अनुमति किसने दी?

न तो वक्फ बोर्ड, न ही प्राधिकरण और न ही जिला प्रशासन यह जानकारी दे पा रहा है। दूसरी ओर अपुष्ट जानकारी यह भी मिली है कि मस्जिद के पुनर्निर्माण के दौरान मल्लीताल थाने के हेड मोहर का कमरा भी मस्जिद में शामिल कर लिया गया था। बताया गया है कि यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड में इस मस्जिद को 15.06.1938 से ही वहां पर बताया गया है जबकि वक्फ बोर्ड का गठन 1995 में हुआ था। यानी संदेह के बादल यहीं से बनने शुरू होते हैं।

जानकारी के मुताबिक नैनीताल नगर क्षेत्र ऐसा संवेदनशील क्षेत्र है जहां यदि एक ईंट भी किसी स्थानीय व्यक्ति को रखनी होती है तो झील विकास प्राधिकरण उसे रखने नहीं देता। बड़ा सवाल यह है कि यह मस्जिद इतनी बड़ी कैसे हो गई?

जबकि प्राधिकरण का मुख्यालय नैनीताल में है और मस्जिद के ठीक बगल में डीआईजी कार्यालय और मल्लीताल पुलिस थाना है। फिर भी यहां ऐसा निर्माण कैसे हो गया, वह भी प्रशासन की अनुमति के बिना? यह बात सामने आई है कि यदि मस्जिद इंतेजामिया कमेटी ने प्राधिकरण से नक्शा पास करा लिया होता तो नियमानुसार उसे अपनी काफी जमीन छोड़नी पड़ती।

अब पुलिस विभाग के सूत्रों का कहना है कि पहले वहां उनके हेड मोहर का कमरा हुआ करता था और उस कमरे को भी मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने उस समय अपना बताकर अपने कब्जे में ले लिया था। यह भी आश्चर्य की बात है कि नैनीताल में उच्च न्यायालय के अलावा अन्य अदालतें भी हैं। क्या किसी ने यह नहीं देखा कि यह इमारत बिना किसी नियम-कानून के बनाई जा रही थी? आज मस्जिद के सामने की सड़क संकरी हो गई है और समतल जमीन को छोटा करके सड़क को चौड़ा किया जा रहा है।

आरटीआई एक्टिविस्ट नितिन कार्की इन्ही सवालों के जवाब प्रशासन से मांग रहे हैं। इस जामा मस्जिद के इतिहास के बारे में विभिन्न समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित हुए हैं। जागरण डॉट कॉम की 30 अप्रैल 2022 की खबर में लिखा है कि इस मस्जिद का निर्माण 1882 में ब्रिटिश शासकों ने इसलिए कराया था ताकि उनकी सेना में भर्ती हुए मुस्लिम सैनिक यहां इबादत कर सकें। उस समय ये मस्जिद बहुत ही छोटी ही थी।

मस्जिद का पुनर्निर्माण की जानकारी के वर्ष का उल्लेख भी इसी खबर में किया गया है। स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि इस मस्जिद का पुनर्निर्माण 2004-05 में कराया गया था, जब राज्य में एनडी तिवारी की सरकार थी और उत्तराखंड क्रांति दल के डॉ. नारायण सिंह जंतवाल यहां से विधायक हुआ करते थे।

जानकारी के मुताबिक उस वक्त भी इस मस्जिद के फैलते आकार को लेकर सवाल उठे थे। उस वक्त झील विकास प्राधिकरण के सचिव उर्वा दत्त चौबे थे ,जो स्थानीय नेताओं के दबाव में आ गए और वे इस मस्जिद के निर्माण पर आंखे मूंद कर बैठे रहे और बिना प्राधिकरण के अनुमति के ये सफेद संगमरमर की मस्जिद खड़ी कर दी गई। जबकि प्राधिकरण उस दौरान किसी होटल या किसी निजी मकान के आगे एक रेत या बजरी भी देख लेता था तो चालान कर सील कर देता था।

जानकारों का कहना है कि 2005 में मस्जिद के निर्माण में स्थानीय मुस्लिम समुदाय के अलावा बाहर से भी फंडिंग हुई और चार मंजिला आलीशान इमारत खड़ी हो गई। उस दौरान फिर कुछ शोर शराबा हुआ, मस्जिद निर्माण का काम रुक गया। बाद में जब 2016 में उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार आई तो एक ऊंचे टावर का निर्माण किया गया, जो प्राधिकरण द्वारा निर्धारित ऊंचाई से कई फीट ऊंचा है, इसके बावजूद झील विकास प्राधिकरण ने आज तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।

जबकि सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है कि किसी भी धार्मिक स्थल के पुनर्निर्माण या निर्माण के लिए जिला प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी है। एक्टिविस्ट नितिन कार्की कहते है कि प्राधिकरण की भूमिका इस मामले में संदेह पैदा करती है क्योंकि जब जब नैनीताल के हिंदू सिख धार्मिक स्थलों पर कुछ भी पुनर्निर्माण या मरम्मत की बात होती है तो प्राधिकरण नोटिस जारी कर देता है। श्री कार्की का कहना है कि हम केवल यह जानकारी चाह रहे हैं कि इस मस्जिद के पुनर्निर्माण की अनुमति कब और कैसे दी गई?

कोई शुल्क जमा किया गया ? क्या वो प्राधिकरण या शासन के नॉर्म्स पर बनी है ? प्रशासन और अथॉरिटी इस पर कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। अब वक्फ बोर्ड की ओर से दी गई जानकारी में साफ कहा गया है कि उन्हें मस्जिद के क्षेत्रफल के बारे में जानकारी नहीं है। अगर वक्फ बोर्ड यह कह रहा है तो अब जिला प्रशासन को यह जानकारी देनी चाहिए कि ब्रिटिश शासन के दौरान कितना क्षेत्रफल था और अब कितना क्षेत्रफल है।

बहरहाल, नैनीताल मस्जिद का मुद्दा सुर्खियों में है, आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी का जवाब यहां के स्थानीय लोगों की जिज्ञासा को शांत कर सकता है।

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