गांधीजी का पत्रकारिता दर्शन

गांधीजी के पत्र जनचेतना के माध्यम Gandhi ji philosophy of journalism

Nov 30, 2024 - 20:07
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गांधीजी का पत्रकारिता दर्शन

समकालीन पत्रकारिता और महात्मा गांधी का दर्शन

आज के समय में पत्रकारिता एक अभूतपूर्व उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। जाँच-पड़ताल पर आधारित पत्रकारिता, विज्ञापन और बाजार की ताकतों का प्रभाव, और हस्तियों को समाज के आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति ने पत्रकारिता के मूल उद्देश्य को कहीं पीछे छोड़ दिया है। ऐसे में महात्मा गांधी के पत्रकारिता दर्शन और उनके योगदान को समझना अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है।

गांधीजी: युगद्रष्टा पत्रकार
महात्मा गांधी को एक महान पत्रकार माना जाता है। चेलापति राजू, जो स्वयं एक प्रतिष्ठित संपादक थे, ने कहा कि गांधीजी संभवतः अब तक के सबसे महान पत्रकार थे और उनके द्वारा संपादित साप्ताहिक पत्र 'यंग इंडिया' और 'हरिजन' विश्व के सबसे प्रभावशाली साप्ताहिक पत्रों में से थे। इन पत्रों में कोई विज्ञापन नहीं छपता था, फिर भी उनकी व्यापक पहुंच थी। गांधीजी ने पत्रकारिता को एक व्यवसाय के रूप में नहीं, बल्कि जनसेवा के माध्यम के रूप में देखा।

गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में 'इंडियन ओपिनियन' नामक पत्र का संपादन शुरू किया। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने भारतीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा और जागरूकता फैलाने का कार्य किया। गांधीजी का कहना था, "पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य सेवा होना चाहिए।" उनका लेखन सरल, स्पष्ट और समाज के लिए प्रेरणादायक होता था।

गांधीजी के पत्र: जनचेतना के माध्यम
गांधीजी ने 'यंग इंडिया', 'नवजीवन', और 'हरिजन' जैसे पत्रों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। इन पत्रों के माध्यम से उन्होंने सत्याग्रह, स्वच्छता, स्वावलंबन और अस्पृश्यता जैसे विषयों पर लिखा। उन्होंने कहा था कि "समाचार पत्रों का काम लोगों को शिक्षित करना है। वे जनता को समकालीन इतिहास से परिचित कराते हैं।"

विज्ञापन और पत्रकारिता
गांधीजी विज्ञापन के माध्यम से लाभ कमाने के खिलाफ थे। उनका मानना था कि अखबारों को विज्ञापन पर निर्भर रहने से पत्रकारिता के मूल्यों में गिरावट आती है। वे कहते थे, "विज्ञापन के कारण कई बार समाचार पत्र वह छापते हैं, जो समाज के लिए हानिकारक होता है।"

गांधीजी का संचार कौशल
गांधीजी न केवल एक महान नेता थे, बल्कि एक उत्कृष्ट संचारक भी थे। उन्होंने अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए पत्रों, खुले पत्रों और साक्षात्कारों का सहारा लिया। उनके लेखन का उद्देश्य जनता को जागरूक और शिक्षित करना था।

गांधीजी और रेडियो
गांधीजी ने 12 नवंबर 1947 को पहली और आखिरी बार आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र से प्रसारण किया। उन्होंने रेडियो को "ईश्वर की शक्ति" कहा और इसे जनजागृति का एक प्रभावी माध्यम माना।

गांधीजी का पत्रकारिता दर्शन
गांधीजी ने पत्रकारिता में सत्य, आत्मसंयम और स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी। उनका कहना था कि "पत्रकारिता का सच्चा उद्देश्य जनमानस को शिक्षित करना और उसमें नैतिकता का संचार करना है।" उनका यह दर्शन आज के समय में और भी प्रासंगिक हो जाता है, जब पत्रकारिता पर बाजार और राजनीति का गहरा प्रभाव है।


महात्मा गांधी ने अपने लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से जो आदर्श प्रस्तुत किए, वे आज भी प्रासंगिक हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि समाज को शिक्षित और प्रेरित करना भी होना चाहिए। गांधीजी के सिद्धांत हमें सिखाते हैं कि पत्रकारिता समाज के प्रति एक बड़ी जिम्मेदारी है और इसे नैतिकता और सच्चाई के साथ निभाना चाहिए।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,