जौनपुर: डेहरी गांव के मुसलमान अपने नाम के साथ जोड़ रहे पूर्वजों के गोत्र, जानें क्या है इसकी वजह

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के छोटे से गांव डेहरी में कई मुस्लिम अपने नाम के साथ अपने हिंदू ब्राह्मण पूर्वजों के गोत्र जैसे "दुबे" और "मिश्रा" जोड़ रहे हैं। यह कदम अपनी जड़ों से जुड़ने का प्रयास माना जा रहा है। नौशाद अहमद दुबे ने अपनी शादी के कार्ड पर "दुबे" लिखकर सभी का ध्यान खींचा। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज सात पीढ़ी पहले हिंदू से मुस्लिम बने थे। इसी तरह, आजमगढ़ के बीसवां गांव के कुछ परिवार भी अपने हिंदू-मुस्लिम साझा पूर्वजों की बात कर रहे हैं। डेहरी के निवासियों का मानना है कि इस पहल से सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ेगी और सामाजिक सौहार्द मजबूत होगा। अटाला मस्जिद-मंदिर विवाद के बीच यह घटना अपनी जड़ों को फिर से पहचानने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के डेगरी गांव में कुछ मुस्लिम परिवारों ने अपने नाम के साथ हिंदू टाइटल जोड़ने की शुरुआत की है। इस गांव के मुसलमानों का कहना है कि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे और उन्होंने अपनी विरासत और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए अपने नामों में बदलाव किया है। नाम

Dec 8, 2024 - 14:09
Dec 9, 2024 - 12:46
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जौनपुर: डेहरी गांव के मुसलमान अपने नाम के साथ जोड़ रहे पूर्वजों के गोत्र, जानें क्या है इसकी वजह

जौनपुर: डेहरी गांव के मुसलमान अपने नाम के साथ जोड़ रहे पूर्वजों के गोत्र, जानें क्या है इसकी वजह

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का केराकत तहसील का छोटा सा गांव डेहरी इन दिनों चर्चा का केंद्र बन गया है। यहां के मुसलमान अपने नाम के साथ अपने पूर्वजों का गोत्र जोड़ने लगे हैं। जैसे, नौशाद अहमद दुबे, इसरार अहमद दुबे और एहतसाम अहमद दुबे। यह कदम उनके पूर्वजों की हिंदू ब्राह्मण पहचान को पुनर्स्थापित करने का प्रयास माना जा रहा है।

इतिहास और परंपरा RAHAI HAI 

नौशाद अहमद दुबे, जिन्होंने अपने शादी के कार्ड पर "दुबे" उपनाम का इस्तेमाल किया, ने बताया कि उनके पूर्वज सात पीढ़ी पहले हिंदू ब्राह्मण थे। उनके पूर्वज लाल बहादुर दुबे इस्लाम में परिवर्तित हुए और उन्होंने अपना नाम लाल मोहम्मद रख लिया। यह परिवार आजमगढ़ जिले के रानी की सराय से आकर डेहरी में बस गया।

इस घटना के बाद नौशाद अहमद और अन्य गांववाले अपने हिंदू ब्राह्मण गोत्रों के साथ जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। नौशाद का कहना है, "हम अपने इतिहास और पूर्वजों को जानने और उनके नामों को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। इससे हमारी पहचान और संस्कृति मजबूत होगी।"

दूसरे गांवों से भी जुड़ाव

डेहरी गांव के अलावा आजमगढ़ के मार्टिनगंज तहसील के बीसवां गांव में भी ऐसा ही देखा गया है। वहां के शेख और मिश्रा परिवारों का दावा है कि उनके पूर्वज 14 पीढ़ी पहले हिंदू थे। दोनों समुदायों के लोग आज भी सौहार्दपूर्ण ढंग से रहते हैं।

स्थानीय निवासियों की राय

इसरार अहमद दुबे, जो डेहरी गांव के निवासी हैं, ने बताया, "हम अपने समुदाय के सभी लोगों से अपील कर रहे हैं कि वे अपने पूर्वजों की जड़ों से जुड़ें। शेख, पठान, सैय्यद जैसे टाइटिल विदेशी शासकों द्वारा दिए गए हैं। हमें अपने इतिहास को पहचानकर इसे पुनर्जीवित करना चाहिए।"

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

गांव में इस बदलाव को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लोग नौशाद अहमद दुबे और उनके परिवार से मिलने आ रहे हैं और उनके फैसले की सराहना कर रहे हैं। इसे सामाजिक सौहार्द बढ़ाने और सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

अटाला मस्जिद विवाद के बीच नई बहस

डेहरी गांव का यह मुद्दा उस समय उभरा है, जब जौनपुर जिले में अटाला मस्जिद-मंदिर विवाद को लेकर बहस चल रही है। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद एक देवी मंदिर थी। ऐसे में डेहरी गांव की यह घटना सामाजिक और धार्मिक विवादों के बीच एक सकारात्मक पहल की तरह देखी जा रही है।

डेहरी गांव में मुसलमानों का अपने पूर्वजों के गोत्र और नामों के साथ जुड़ना उनकी सांस्कृतिक जड़ों को पुनर्जीवित करने की कोशिश है। यह कदम उनके इतिहास और परंपरा को सहेजने का प्रयास है, जो सौहार्दपूर्ण समाज निर्माण में सहायक हो सकता है।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के डेगरी गांव में कुछ मुस्लिम परिवारों ने अपने नाम के साथ हिंदू टाइटल जोड़ने की शुरुआत की है। इस गांव के मुसलमानों का कहना है कि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे और उन्होंने अपनी विरासत और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए अपने नामों में बदलाव किया है।

नाम बदलने की वजह
Zee News (DNA) की खबर के मुताबिक गांव के कुछ मुस्लिम व्यक्तियों ने अपने नाम बदलकर हिंदू टाइटल जोड़ने का निर्णय लिया है। जैसे, एक व्यक्ति ने अपना नाम “मोहम्मद आजम दुबे” और दूसरे ने “नौशाद अहमद पांडे” रख लिया। इन बदलावों के पीछे इन व्यक्तियों का कहना है कि उनका उद्देश्य अपने पूर्वजों के नामों और परंपराओं को सम्मानित करना है। वे मानते हैं कि उनके पूर्वजों का संबंध ब्राह्मण परिवार से था और उनका नामकरण ब्राह्मणों के रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया था।

भगवान श्री राम की पूजा

इस गांव के लोग न केवल अपने नामों के माध्यम से अपने पूर्वजों को याद कर रहे हैं बल्कि वे भगवान श्री राम की पूजा भी करते हैं और गौ माता की सेवा भी करते हैं।

हालांकि, इस गांव के हर मुस्लिम परिवार में ऐसा नहीं हो रहा है। कई परिवारों के सदस्य अपने पारंपरिक मुस्लिम नामों को बनाए रखे हुए हैं। लेकिन एक व्यक्ति या कुछ चुनिंदा लोग हिंदू टाइटल का उपयोग कर रहे हैं। इस पहल को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि यह उनकी सामूहिक पहचान और संस्कृति से जुड़ने का एक तरीका है।

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