सीएए देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित किए
सीएए के तहत पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित किए
सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगाने का नहीं दिया आदेश
- याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में मांगा जवाव
- शीर्ष कोर्ट में दायर करीब 250 से ज्यादा याचिकाओं में सीएए को दी गई है चुनौती
- किसी पीड़ित को नागरिकता मिलती है तो इससे याचिकाकर्ता कैसे प्रभावित होंगे
- सुनवाई के दौरान सीएए का लाभ पाकर नागरिकता लेने की बाट जोह रहे व्यक्ति की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि उनका मुवक्किल 2014 में बलूचिस्तान से आया है, उसे वहां हिंदू होने के कारण प्रताड़ित किया गया अगर उसे सीएए में नागरिकता मिलती है तो इससे याचिकाकर्ता कैसे प्रभावित होंगे। इंद्रा जयसिंह ने कहा कि नागरिकता मिलने पर उसे मतदान का अधिकार मिल जाएगा।
- 20 अंतरिम अर्जियों के अलावा सुप्रीम कोर्ट में कुल 237 याचिकाएं लंवित हैं, जिनमें सीएए को दी गई है चुनौती
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर फिलहाल कोई रोक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से जोरदार मांग के बावजूद मंगलवार को सीएए लागू करने पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश नहीं दिया। कोर्ट ने याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले में कोर्ट नौ अप्रैल को फिर सुनवाई करेगा।
सीएए के तहत पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर प्रताड़ित किए गए अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारत की नागरिकता देने का प्रविधान है। यह कानून 2019 में पारित हुआ था लेकिन उसके नियम तय कर उसे लागू करने की अधिसूचना बीते 11 मार्च को जारी हुई थी। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आइयूएमएल) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन आफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की है। इसके अलावा एआइएमआइएम व अन्य ने भी इस कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं। इन करीब 20 अंतरिम अर्जियों के अलावा सुप्रीम कोर्ट में कुल 237 याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें सीएए को चुनौती दी गई है।
मंगलवार को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल, इंद्रा जयसिंह, निजाम पाशा ने सीएए के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की। आइयूएमएल की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर कोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई तो मामला महत्वहीन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि कानून बनने के चार साल तीन महीने बाद इसे लागू करने की अधिसूचना जारी हुई है जब इतने दिन से कानून लागू नहीं था तो फिर अब ऐसी क्या जल्दी है?
इन दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि वह नोटिस जारी कर रहा है और साथ ही केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि आप कब तक याचिकाओं का जवाब दे देंगे। मेहता ने चार सप्ताह का समय मांगा जिसका विरोध करते हुए सिब्बल ने कहा कि यह बहुत ज्यादा समय है। मेहता ने कहा कि इसमें कुल 237 याचिकाएं लंबित हैं, सभी का जवाब देना होगा। इसके अलावा कई रोक अर्जियां भी हैं, इसलिए समय लगेगा। पीठ ने उनसे कहा कि आप पहले अंतरिम रोक पर ही तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करिए। कोर्ट ने केंद्र से आठ अप्रैल तक जवाब देने को कहा है। साथ ही पक्षकारों के वकीलों से अपनी दलीलों का पांच पेज का संक्षिप्त नोट दो अप्रैल तक दाखिल करने को कहा है। शीर्ष कोर्ट ने इस मामले में वकील कनु अग्रवाल और अंकित यादव को नोडल वकील नियुक्त किया है।
एआइएमआइएम के वकील पाशा ने कहा कि सिर्फ मुसलमानों को छोड़ा गया है। पहले सीएए लागू होगा और फिर एनआरसी लागू होगी, इससे मुसलमान प्रभावित होंगे। सालिसिटर जनरल ने दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने सीएए का मुद्दा है न कि एनआरसी का। इसलिए वे इस तरह की दलीलें यहां न दें। वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया और कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने असम और उत्तर पूर्व के राज्यों का मुद्दा उठाया। आदिवासी संगठनों की ओर से पेश हो रहे हंसारिया ने कहा कि कानून में आदिवासी क्षेत्रों को बाहर रखा गया है। इसमें एक तरह से पूरा उत्तर पूर्व अलग है, इसमें कई मुद्दे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि वह असम के खंड को अलग से सुनेगा। मामले में नोटिस जारी होने के बाद इंद्रा जयसिंह ने कहा कि केंद्र से बयान लिया जाए कि वह इस बीच सीएए में किसी को नागरिकता नहीं देगा।
लेकिन मेहता ने ऐसा बयान देने से इन्कार कर दिया। तब जयसिंह ने कहा कि कोर्ट आदेश दे कि अगर इस बीच किसी को नागरिकता दी गई तो वह कोर्ट के आदेश के अधीन होगी। लेकिन कोर्ट ने इस पर कोई आदेश नहीं दिया। फिर सिब्बल ने कहा कि अगर किसी को इस बीच नागरिकता दी जाती है तो उन्हें कोर्ट आने की छूट दी जाए। पीठ ने कहा यह ठीक है।
सीएए के तहत नागरिकता देने के लिए तीन स्तरीय व्यवस्था
जस्टिस चंद्रचूड़ ने सालिसिटर जनरल मेहता से पूछा कि क्या सीएए के तहत नागरिकता देने के लिए कमेटी आदि गठित हो चुकी है, क्या स्थिति है? इस पर मेहता ने कहा कि तीन स्तरीय व्यवस्था है। कमेटी बनेगी आवेदन होगा। दस्तावेज देखे जाएंगे। पूरी
प्रक्रिया में कितना वक्त लगता है, वह ये नहीं बता सकते। लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि किसी को नागरिकता देने से याचिकाकर्ता किसी तरह प्रभावित नहीं होते। केंद्र ने पीठ को बताया कि सीएए किसी भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छीनता है।
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