राजनीति: वादा बनाम अमल

लोकसभा चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियां अपने- अपने समीकरणों के साथ प्रचार अभियान में लग चुकी हैं।

Apr 6, 2024 - 20:50
Apr 6, 2024 - 21:42
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राजनीति: वादा बनाम अमल

वादा बनाम अमल कि नीति:

लोकसभा चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियां अपने- अपने समीकरणों के साथ प्रचार अभियान में लग चुकी हैं। रैलियों और भाषणों में अनेक मुद्दों पर बात की जाती है, लेकिन किसी पार्टी का रुख इस बात से आंका जाता है कि चुनाव में जनता को अपने पक्ष में मत देने के लिए घोषणा पत्र में वह क्या वादे करती है। इस क्रम में शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणा पत्र जारी किया, जिसे 'न्यायपत्र 2024' का नाम दिया गया है। इसमें कांग्रेस ने जनता से वादा किया है कि वह सत्ता में आने पर अलग-अलग सामाजिक वर्गों की स्थिति में सुधार के लिए नई योजनाएं लाएगी। मसलन, उसने अपने घोषणापत्र की पच्चीस गारंटियों को ठोस बताया है। हर गरीब महिला को हर वर्ष एक लाख रुपए, किसानों को कर्जमाफी के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून, मनरेगा में कम से कम मजदूरी चार सौ रुपए की गारंटी के अलावा सामाजिक-आर्थिक समानता के लिए जाति आधारित जनगणना कराने जैसे कई वादे किए गए हैं।

गारंटी की गारंटी को चुनौती:

इसमें एक तरह से भाजपा की ओर से जारी एक नारे 'मोदी की गारंटी' का जवाब देने की कोशिश है कि अगर मतदाता केंद्र में कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका देते हैं, तो वह अपने घोषणापत्र में दर्ज जनता के कल्याण कार्यक्रमों को 'गारंटी' के स्तर पर लागू करेगी। यह छिपा नहीं है कि चुनाव आने पर राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं की ओर से कितने बड़े-बड़े और कैसे वादे किए जाते हैं। पिछले कुछ समय से तो लोगों को कोई सामान, उपहार या सुविधा मुफ्त में मुहैया कराने के वादे करके वोट मांगने का चलन हावी होता दिख रहा है। सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हो जाता है कि किन्हीं हालात में अगर उन्हें सरकार बनाने का मौका मिल जाता है तो उसके बाद वे या तो उन वादों को भूल जाते हैं या फिर उन्हें पूरा करने को लेकर वे अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं समझते। जबकि जनता आमतौर पर राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की ओर से अपने भाषणों में दिए गए भरोसे, घोषणापत्र में दर्ज वादों के आधार पर किसी पार्टी को अपना समर्थन देकर सत्ता में पहुंचाती है और उसके बाद अपने लिए किसी कल्याण कार्यक्रम का इंतजार करती रह जाती है।

 राजनीतिक पार्टियों का वादों से मुकरना:

अव्वल तो जनता को ऐसे वादों के प्रति जवाब मांगने का मौका नहीं मिल पाता, क्योंकि चुने जाने के बाद बहुत कम जनप्रतिनिधि जनता के बीच अपनी मौजूदगी बनाए रखते हैं। दूसरे, अगले चुनाव तक फिर से राजनीतिक दलों के वादों का एक नया संजाल खड़ा हो चुका होता है। वादे करके उसे पूरा नहीं करने को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने काफी पहले चुनाव लड़ने वाले दलों और उम्मीदवारों के बीच समान अवसर सुनिश्चित करने और चुनाव चुनाव प्रक्रिया की शुचिता खराब न होने देने के लिए निर्वाचन आयोग को निर्देश जारी करने को कह चुका है। निर्वाचन आयोग ने भी यह स्पष्ट कर रखा है कि राजनीतिक दलों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिए, जिनसे चुनाव प्रक्रिया की शुचिता प्रभावित हो या मतदाताओं पर उनके मताधिकार का प्रयोग करने में अनुचित प्रभाव पड़ने की संभावना हो। ऐसे में स्वाभाविक ही यह सवाल उठता है कि इस आम चुनाव के मद्देनजर अपने-अपने घोषणा पत्रों में किए गए वादों को पूरा करने को लेकर कांग्रेस या अन्य सभी पार्टियां कितनी गंभीर और जिम्मेदार होंगी!

सौजन्य: जनसत्ता

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।