नियम दरकिनार, इमाम का पद परिवार में ही रख रहे बरकरार

ऐतिहासिक जामा मस्जिद में इमाम पद पर नई नियुक्ति एक बार फिर विवादों में आ गई है। मौजूदा इमाम सैयद अहमद बुखारी रविवार को अपने बेटे उसामा शाबान बुखारी की इस पद पर नियुक्ति करेंगे।

Feb 25, 2024 - 22:11
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नियम दरकिनार, इमाम का पद परिवार में ही रख रहे बरकरार

नियम दरकिनार, इमाम का पद परिवार में ही रख रहे बरकरार

जामा मस्जिद के इमाम के पद पर आज अपने बेटे को नियुक्त करेंगे अहमद बुखारी, मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई है लंबित, याचिकाकर्ता ने नियुक्ति रोकने की मांग की


 ऐतिहासिक जामा मस्जिद में इमाम पद पर नई नियुक्ति एक बार फिर विवादों में आ गई है। मौजूदा इमाम सैयद अहमद बुखारी रविवार को अपने बेटे उसामा शाबान बुखारी की इस पद पर नियुक्ति करेंगे। इस पहले शाबान को वर्ष 2014 में नायब इमाम घोषित किया गया था। उसी समय इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। मामला अभी लंबित है। याचिकाकर्ता सुहैल अहमद खान ने रविवार को होने वाले कार्यक्रम को अनधिकृत और अवैध बताते हुए इसकी शिकायत दिल्ली पुलिस, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की है। साथ ही इस पर रोक लगाने की मांग की है।


जामा मस्जिद में पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहे बुखारी परिवार के कब्जे पर याचिकाकर्ता सुहैल अहमद खान ने अपने ईमेल में कहा है कि इस तरह की नियुक्ति इस्लामी कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है। इमाम का चयन पारिवारिक संबंधों के बजाय योग्यता और विशिष्ट इस्लामी मानदंडों पर आधारित होना चाहिए। सुहैल ने बताया है कि नायब इमाम के रूप में शाबान बुखारी की नियुक्ति के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका लंबित है। चल रही कानूनी कार्यवाही और अदालत में दिल्ली वक्फ बोर्ड के बयान के बावजूद, जिसमें इमाम की नियुक्ति के लिए एक विशिष्ट मानदंड का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, इमाम अहमद बुखारी निजी और वित्तीय लाभ के लिए अपने बेटे की नियुक्ति के लिए आगे बढ़ रहे हैं। सुहैल ने दैनिक जागरण से कहा कि मामला जब कोर्ट में चल रहा है तो अहमद बुखारी जल्दबाजी क्यों कर रहे हैं? इस मामले में अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होनी है।


सुहैल अहमद खान ने बताया कि इमाम की नियुक्ति का अधिकार बक्फ बोर्ड के पास है और दिल्ली वक्फ बोर्ड फिलहाल प्रशासक के हवाले है। ऐसे में मौके का फायदा उठाकर अहमद बुखारी अपने बेटे की नियुक्ति कर रहे हैं। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इसके खिलाफ कई बार आवाज उठाई। वक्फ बोर्ड का तर्क है कि बुखारी उसके मुलाजिम हैं, इसलिए इमाम की नियुक्ति का अधिकार केवल उसे है। वक्फ बोर्ड ने साल 2000 में खुद अहमद बुखारी की नियुक्ति के दौरान आपत्ति जताई थी, करीब आठ साल बाद बुखारी की नियुक्ति को मान्यता मिली थी।

पीढ़ी दर पीढ़ी कब्जा सन् 1650 में मुगल बादशाह शाहजहां ने जब दिल्ली में जामा मस्जिद बनवाई, तब उन्होंने बुखारा (उज्बेकिस्तान) के शासकों को एक इमाम की जरूरत बताई। वहां से मौलाना अब्दुल गफूर शाह बुखारी को भारत भेजा गया, शाहजहां ने उन्हें शाही इमाम का खिताब दिया। तबसे अब्दुल गफूर बुखारी के परिवार के लोग ही जामा मस्जिद के शाही इमाम बनते आ रहे हैं। भारत में शाही इमाम जैसा कोई पद नहीं है। यह ऐसी उपाधि है जिस पर बुखारी परिवार अपना हक जताता आया है। सरकार ने कभी भी इस पद को न तो बनाया और न ही इसे मंजूरी दी है। लेकिन देश की राजनीति में बुखारी परिवार का खासा रसूख रहा है।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,