एएसआइ ने सौंपी भोजशाला की रिपोर्ट, मंदिर के पुख्ता प्रमाण

रिपोर्ट के आधार पर पक्षकारों ने किया दावा, हाई कोर्ट में 22 को अगली सुनवाई धार में 98 दिनों तक चला सर्वे, रिपोर्ट में 1700 | से ज्यादा प्रमाण व अवशेषों का विश्लेषण

Jul 16, 2024 - 20:54
Jul 16, 2024 - 20:55
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एएसआइ ने सौंपी भोजशाला की रिपोर्ट, मंदिर के पुख्ता प्रमाण

एएसआइ ने सौंपी भोजशाला की रिपोर्ट, मंदिर के पुख्ता प्रमाण

मध्य प्रदेश के धार स्थित ऐतिहासिक भोजशाला में इसी वर्ष 22 मार्च से 27 जून तक 98 दिन चले वैज्ञानिक सर्वे और इसमें मिले पुरातत्व महत्व के अवशेषों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने सोमवार को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में करीब दो हजार पन्नों की रिपोर्ट पेश कर दी। रिपोर्ट की छह प्रतियां सौंपी गई हैं। इनमें दो प्रति कोर्ट के लिए, एक याचिकाकर्ता व तीन अन्य पक्षकारों के लिए है। रिपोर्ट में 10 खंड हैं। जिन पक्षकारों को रिपोर्ट सौंपी गई है, उनके अनुसार, एएसआइ को भोजशाला में मंदिर के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि वर्तमान संरचना (कमाल मौला दरगाह) का निर्माण करने में पहले से मौजूद मंदिर के ही हिस्सों का उपयोग किया गया था। एएसआइ के वकील हिमांशु जोशी ने कहा, सर्वे के दौरान पुरावशेषों की कार्बन डेटिंग भी कराई गई। एकत्रित 1700 से ज्यादा प्रमाण व खोदाई में मिले अवशेषों का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्ष 151 पन्नों में संकलित है। कोर्ट इस रिपोर्ट पर 22 जुलाई को सुनवाई में विचार करेगा

11वीं सदी में बनी भोजशाला को लेकर यह है विवाद

11वीं सदी में बनी भोजशाला को हिंदू वाग्देवी (सरस्वती देवी) का मंदिर मानते हैं, वहीं मुस्लिम इसे कमाल मौलाना मस्जिद बताते हैं। भोजशाला को लेकर मप्र हाई कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। हिंदू फार जस्टिस नामक संगठन ने करीब एक वर्ष पहले कोर्ट में नई याचिका दायर कर भोजशाला परिसर में हर शुक्रवार को होने वाली नमाज  रोकने की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि हिंदू धर्मावलंबी मंगलवार को भोजशाला में पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम शुक्रवार को परिसर में नमाज कर उसे अपवित्र कर देते हैं। इस याचिका पर कोर्ट ने इसी वर्ष 11 मार्च को एएसआइ को आदेश दिया था कि वह वाराणसी स्थित ज्ञानवापी की तरह भोजशाला का भी वैज्ञानिक सर्वे कर रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

सर्वे रिपोर्ट को लेकर पक्षकारों ने जो कहा  

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में मिले स्तंभों व उसकी कला व वास्तुकला से यह कहा जा सकता है ये स्तंभ मंदिर का हिस्सा थे, बाद में मस्जिद बनाते समय उनका पुनः उपयोग किया गया। मौजूदा संरचना में चारों दिशाओं में खड़े 106 और आड़े 82 स्तंभ मिले हैं। इनकी वास्तुकला से पुष्टि होती है कि ये स्तंभ मंदिरों का ही हिस्सा थे। कमाल मौला दरगाह बनाने के लिए स्तंभों पर उकेरी गई देवताओं व मनुष्यों की आकृतियां विकृत की गईं। मानव व जानवरों की कई आकृतियां, जिन्हें मस्जिदों में रखने की अनुमति नहीं है, उन्हें छेनी जैसी वस्तु से विकृत किया गया। 

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मौजूदा संरचना में संस्कृत और प्राकृत भाषा में लिखे कई शिलालेख मिले हैं। ये भोजशाला के ऐतिहासिक, साहित्यिक व शैक्षिक महत्व को उजागर करते हैं। सर्वे में ऐसा शिलालेख भी मिला, जिस पर मालवा के परमार वंशीय राजा नरवर्मन परमार (1097-1134) का उल्लेख है। भोजशाला के पश्चिम क्षेत्र में कई स्तंभों पर उकेरे गए 'कीर्तिमुख', मानव, पशु और मिश्रित चेहरों वाली सजावटी सामग्री को मस्जिद-दरगाह बनाते समय नष्ट
नहीं किया गया था।

वैज्ञानिक सर्वे के खिलाफ याचिका पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट सहमत 

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 'भोजशाला' के वैज्ञानिक सर्वे के खिलाफ याचिका सूचीबद्ध करने पर विचार करने को लेकर सहमति जताई। मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी ने कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें मप्र हाई कोर्ट के 11 मार्च के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें पूजा स्थल के वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह किस समुदाय का है। हाई कोर्ट ने आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) छह हफ्ते के भीतर भोजशाला परिसर सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था। का जस्टिस हृषिकेश राय और एसवीएन जस्टिस हृषिकेश राय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने हिंदू याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की इन दलीलों का संज्ञान लेने के बाद मामले को सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की कि एएसआइ ने पहले ही रिपोर्ट दाखिल कर दी है। सात अप्रैल, 2003 को एएसआइ द्वारा तैयार की गई व्यवस्था के तहत हिंदू भोजशाला परिसर में मंगलवार को पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करते हैं।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार