बांग्लादेश: संवैधानिक सुधार आयोग ने संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’, ‘समाजवाद’ और राष्ट्रवाद हटाने का प्रस्ताव रखा

बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार ने सत्ता संभालने के लिए साथ ही सबसे पहले देश के संविधान को बदलने की तरफ इशारा किया था। संवैधानिक सुधारों के नाम पर इसके लिए संवैधानिक सुधार आयोग भी गठित किया गया। अब इस आयोग सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए संविधान से धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद […]

Jan 16, 2025 - 17:54
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बांग्लादेश: संवैधानिक सुधार आयोग ने संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’, ‘समाजवाद’ और राष्ट्रवाद हटाने का प्रस्ताव रखा

बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार ने सत्ता संभालने के लिए साथ ही सबसे पहले देश के संविधान को बदलने की तरफ इशारा किया था। संवैधानिक सुधारों के नाम पर इसके लिए संवैधानिक सुधार आयोग भी गठित किया गया। अब इस आयोग सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए संविधान से धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद के सिद्धांतों को बदलने की सिफारिश की है।

रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश के संविधान में कुल 4 सिद्धांत निहित हैं, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, राष्ट्रवाद और लोकतंत्र। इसमें से कट्टरपंथी सरकार के समक्ष तीन सिद्धांतों को खत्म करने का प्रस्ताव रखा गया है। आखिरी सिद्धांत लोकतंत्र बचता है। इसके साथ ही यूनुस सरकार की ओर से गठित आयोग ने द्विसदनीय संसद और प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर दो कार्यकाल की सीमा रखने का प्रस्ताव सरकार को दिया है।

इस आयोग का सुझाव है कि सरकार को प्रस्तावित संसद के निचले सदन में चुनाव और ऊपरी सदन को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर बनाया जाना चाहिए। साथ ही राज्य की तीन शाखाओं और दो कार्यकारी पदों प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के मध्य संतुलन बनाए रखने के लिए संवैधानिक निकाय राष्ट्रीय संवैधानिक परिषद को बनाने की आवश्यकता है।

संविधान संशोधन के लिए जनमत संग्रह का प्रस्ताव

संवैधानिक आयोग के अध्यक्ष अली रियाज ने प्रस्तावित संविधान संशोधन को लेकर अपनी रिपोर्ट में सलाह दी है कि संशोधन करने के लिए जनमत संग्रह की प्रणाली को अंगीकार किए जाने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि बांग्लादेश में वर्तमान में ऐसा प्रावधान है कि किसी भी संशोधन के लिए सरकार को संसद में एक तिहाई बहुमत से प्रस्ताव को पारित करवाने के बाद ही उसमें संशोधन किया जा सकता है।

अली रियाज का मानना है कि 16 वर्षो के शेख हसीना के निरंकुश शासन का सबसे बड़ा कारण ये था कि सारी शक्तियां प्रधानमंत्री के कार्यालय के पास थीं।

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