वे सब अमेरिकी डीप स्टेट के पैसे पर विदेशी मीडिया द्वारा गढ़े गए ‘डीप स्टेट’ के जाल में राहुल

‘जॉर्ज सोरोस और डीप स्टेट जैसी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के साथ अपने संबंधों को लेकर कांग्रेस, खासकर एंटोनियो माइनो और राहुल गांधी भाजपा के निशाने पर हैं। बीते कुछ वर्षों के दौरान कांग्रेस ने भाजपा, सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए जितने भी मुद्दे उठाए हैं, वे सब अमेरिकी डीप स्टेट के पैसे […]

Dec 16, 2024 - 15:09
Dec 16, 2024 - 19:24
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वे सब अमेरिकी डीप स्टेट के पैसे पर विदेशी मीडिया द्वारा गढ़े गए ‘डीप स्टेट’ के जाल में राहुल

जॉर्ज सोरोस और डीप स्टेट जैसी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के साथ अपने संबंधों को लेकर कांग्रेस, खासकर एंटोनियो माइनो और राहुल गांधी भाजपा के निशाने पर हैं। बीते कुछ वर्षों के दौरान कांग्रेस ने भाजपा, सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए जितने भी मुद्दे उठाए हैं, वे सब अमेरिकी डीप स्टेट के पैसे पर विदेशी मीडिया द्वारा गढ़े गए नैरेटिव से प्रेरित हैं। इसमें ‘लोकतंत्र खतरे में है’, स्पाईवेयर पेगासस, अडाणी, जातिगत जनगणना, हंगर इंडेक्स, मजहबी स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता जैसे मुद्दे शामिल हैं। कांग्रेस के हंगामे के कारण पहले भी और आज भी बार-बार संसद की कार्यवाही बाधित हुई और करदाताओं के अरबों रुपये बर्बाद हुए। इस आर्थिक बर्बादी के लिए कौन जिम्मेदार है? दूसरी ओर, राहुल गांधी का बार-बार अमेरिका और ब्रिटेन जाना भी इस दिशा में सोचने को मजबूर करता है कि दाल में कुछ तो काला है।

सोचने वाली बात है कि आखिर जब भी विदेशी मीडिया शोध के नाम पर कोई भी रिपोर्ट, समाचार या सूचकांक जारी करता है तो कांग्रेस उसका इस्तेमाल टूल की तरह भाजपा, सरकार या प्रधानमंत्री के खिलाफ करती है। खासतौर से, ओसीसीआरपी ने तो लगातार इसका समर्थन किया है। प्रश्न है कि कांग्रेस और ओसीसीआरपी के बीच जो अंदरूनी गठजोड़ है, उसे क्या कहा जाए? इससे तो यही लगता है कि पश्चिमी शक्तियां कांग्रेस की छिपी हुई सहयोगी हैं, जो देश को अस्थिर करने के उद्देश्य से परदे के पीछे से झूठे नैरेटिव गढ़ने में उसकी सहायता कर रही हैं। क्या यह सब इस ओर संकेत नहीं करता कि कांग्रेस और डीप स्टेट आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं? यदि ऐसा है तो यह चिंताजनक है, क्योंकि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई शेख हसीना सरकार को अपदस्थ करने में अमेरिका और डीप स्टेट की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इसलिए इस समन्वित एजेंडे को उजागर करने का समय आ गया है।

कांग्रेस और डीप स्टेट के बीच संबंधों की गुत्थी को ‘द कम्युन’ ने कुछ उदाहरणों के जरिये सुलझाने का प्रयास किया है। फ्रांस के खोजी मीडिया समूह मीडियापार्ट के अनुसार, ओसीसीआरपी को सोरोस, रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी अन्य शक्तियों व अमेरिकी विदेश विभाग के यूएसएआईडी द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। ओसीसीआरपी को 50 प्रतिशत वित्त पोषण अमेरिकी विदेश विभाग करता है।

  •  सोरोस के साथ नजदीकी संबंध रखने वाले अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने 13 नवंबर, 2020 को Rockefeller’: Gautam Adani and the concentration of power in India (मोदी का रॉकफेलर : गौतम अडानी और भारत में सत्ता का संक्रेंद्रण) शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें साफ शब्दों में कहा गया था कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कमजोर करना है तो अडाणी को निशाना बनाना होगा।’ यह एक सोची-समझी रणनीति थी, जिसका उद्देश्य भारत और उसके नेतृत्व को कमजोर करना था। राहुल गांधी बिल्कुल यही करते हैं। चाहे जी-20 सम्मेलन के दौरान अडाणी के बहाने प्रधानमंत्री पर हमला हो या हिंडनबर्ग रिपोर्ट या अमेरिका में अडाणी के खिलाफ जांच की खबर। यानी सोरोस और उसके द्वारा वित्त पोषित मीडिया नैरेटिव गढ़ता है, जिसका राहुल गांधी पूरा-पूरा इस्तेमाल करते हैं। फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में सरकार द्वारा 2018 में 6 हवाईअड्डों के निजीकरण को मंजूरी देने पर सवाल उठाया था, जिसे पारदर्शी प्रक्रिया के तहत गौतम अडाणी ने हासिल किया था। कांग्रेस ने इसे लेकर खूब हंगामा किया था कि प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ गुजरात के दो उद्योगपतियों अडाणी-अंबानी को ही आगे बढ़ा रहे हैं। रिपोर्ट में यह सवाल भी उठाया गया था कि क्या भारत पूर्वी एशियाई मॉडल या रूसी मॉडल की ओर बढ़ रहा है?
  • ओसीसीआरपी ने संसद सत्र शुरू होने से ठीक पहले 20 अक्तूबर, 2022 और 8 नवंबर, 2023 को कथित पेगासस जासूसी पर रिपोर्ट प्रकाशित की। इनमें खासतौर से मोदी सरकार पर निशाना साधा गया था। कांग्रेस ने इसका इस्तेमाल संसद में व्यवधान पैदा करने के लिए किया। इस मामले में तो राहुल गांधी जनता को गुमराह करने की हद तक चले गए। मार्च 2023 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में भाषण के दौरान उन्होंने भारत पर भी हमले किए।
  •  जी-20 शिखर सम्मेलन से 10 दिन पहले 31 अगस्त, 2023 को ओसीसीआरपी ने अडाणी आॅफशोर फंड पर रिपोर्ट जारी की थी। उसी दिन शाम को राहुल गांधी ने इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए पर प्रेस कॉफ्रेंस कर सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा था। इसके बाद राहुल गांधी यूरोप चले गए। वहां घूम-घूम कर वे भारत और प्रधानमंत्री को कोसते रहे। उस समय भारत जी-20 की मेजबानी कर रहा था। इसके बाद वे जी-20 शिखर सम्मेलन समाप्त होने के अगले दिन यानी 11 सितंबर को वापस आए।

बता दें कि ओसीसीआरपी की रिपोर्ट से पहले 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी समूह पर अनुचित व्यापारिक लेन-देन का आरोप लगाया था। इन रिपोर्टों को अमेरिका, ब्रिटेन और भारतीय मीडिया ने हाथोंहाथ लिया था। रिपोर्ट जारी होने के एक दिन बाद ही अडाणी समूह को लगभग एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और विश्व के अमीरों की सूची में गौतम अडाणी दूसरे स्थान से गिर कर 21वें स्थान पर पहुंच गए। समूह को एफपीओ के जरिए बाजार से 20,000 करोड़ रुपये जुटाने का निर्णय भी वापस लेना पड़ा। यही नहीं, समूह को और भी मोर्चाें पर अपनी रणनीति बदलनी पड़ी थी।

2023 से अब तक ओसीसीआरपी ने अडाणी को निशाना बनाते हुए लगभग 5-7 लेख प्रकाशित किए हैं। आखिर ऐसा क्या है कि ओसीसीआरपी केवल अडाणी पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखता है? दुनिया भर में हजारों उद्योगपति हैं। दरअसल, अडाणी को आर्थिक चोट पहुंचाने का मतलब है, एक राष्ट्र के तौर पर भारत को आर्थिक चोट पहुंचाना। अडाणी के बहाने यह हमला प्रधानमंत्री मोदी और शेयर बाजार पर किया गया था। इसमें हिंडनबर्ग रिसर्च और ओसीसीपीआर ही नहीं, राहुल गांधी भी शामिल थे।

डीप स्टेट से कांग्रेस के अंतर्संबंधों को कांग्रेस नेता जयराम रमेश के ट्वीट से भी समझा जा सकता है। वास्तव में, कांग्रेस ने अडाणी और पेगासस मुद्दे पर सरकार, प्रधानमंत्री और भाजपा पर जो हमले किए, उनके लिए सामग्री यूरोप स्थित कथित खोजी पत्रकारिता समूह ओसीसीआरपी ने उपलब्ध कराई। क्या यह भारत विरोधी मुहिम में कांग्रेस और ओसीसीपी के बीच संभावित संबंधों की ओर संकेत नहीं करता? ओसीसीआरपी ने इस वर्ष 8 अगस्त और 17 अगस्त को भी अडाणी समूह को लक्षित करते हुए खबरें प्रकाशित कीं, जो केन्या में अडाणी समूह द्वारा हवाईअड्डों के करार से संबंधित थीं।

पिछले वर्ष मई में अमेरिका यात्रा के दौरान राहुल गांधी हिंदू विरोधी एजेंडा चलाने वाली सुनीता विश्वनाथ (लाल घेरे में) से मिले थे

अब राहुल गांधी की विदेश यात्राओं की बात। राहुल जब भी विदेश जाते हैं तो वे क्या बोलते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन वे किससे मिलते हैं और उनके लिए कार्यक्रम कौन आयोजित करता है, यह जानना आवश्यक है। कहा तो यह भी जाता है कि राहुल गांधी जब इंग्लैंड या अमेरिका जाते हैं, तो उनके दौरे की योजना सोरोस का इकोसिस्टम बनाता है। हालांकि, राहुल ने इन आरोपों को न तो कभी खारिज किया है और न ही कांग्रेस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया दी है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष राहुल गांधी जब गुपचुप उज्बेकिस्तान गए थे, उस समय United States Agency for International Development (यूएसएआईडी) की प्रशासक सामंथा पावर भी वहां मौजूद थीं। इस वर्ष 8-10 सितंबर में जब राहुल अमेरिका गए तो दो गंभीर बातें सामने आई। पहला, भारत विरोधी अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से राहुल गांधी की मुलाकात। यह मुलाकात उनके दौरे के आखिरी दिन वाशिंगटन के रेबर्न हाउस में हुई थी।

अमेरिकी सीनेट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का बहिष्कार करने वाली अफ्रीकी मूल की इल्हान उमर कश्मीर की आजादी और अलग ‘खालिस्तान देश’ बनाने की मांग का समर्थन करती रही हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में उन्होंने पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर का दौरा भी किया था। उनके दौरे को पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित किया गया था। 2019 में मिनिसोटा से चुनाव जीतकर अमेरिकी संसद में पहुंचने वाली इल्हान उमर उन दो महिला मुस्लिम सांसदों में से हैं, जो इस्राएल विरोधी रुख के लिए जानी जाती हैं। दूसरा, राहुल ने यह कहकर सिख समुदाय को भड़काने का प्रयास किया कि भारत में सिखों को पगड़ी और कड़ा पहनने की अनुमति नहीं है और वे इसके लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने उनके बयान का समर्थन किया था।

मई 2023 में राहुल जब तीन हफ्ते के लिए अमेरिका दौरे पर गए थे तो सुनीता विश्वनाथ से मिले थे, जो सोरोस की सहयोगी है। सुनीता विश्वनाथ वही है, जिसे कुछ वर्ष पहले अयोध्या में घुसने नहीं दिया गया था, जिसने विपक्षी नेताओं, थिंक टैंक, पत्रकारों, वकीलों और एक्टिविस्ट के नेटवर्क के जरिये भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए एक अरब डॉलर देने का वादा किया है। हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (एचएफएचआर) की सह-संस्थापक सुनीता हिंदू विरोधी एजेंडा चलाती है और इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल जैसे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के साथ कई कार्यक्रमों की सह-मेजबानी करती है। कुल मिलाकर यह आईएसआई और जमात का एक गठजोड़ है, जो भारत में सामाजिक तान-बाने को तहस-नहस करने के प्रयासों में जुटा रहता है। सुनीता विश्वनाथ वुमन फॉर अफगान नाम से भी एक संगठन चलाती है, जिसका वित्त पोषण सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन करती है। यही नहीं, सुनीता के जमात-ए-इस्लामी और खालिस्तानियों के साथ भी संबंध हैं।

ऐसे में क्या यह प्रश्न नहीं उठता कि राहुल गांधी देश विरोधी लोगों से क्यों मिलते-जुलते हैं? क्या वे भारत को अस्थिर करने के षड्यंत्र में जुटे सोरोस के साथ हैं? भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी कहते हैं कि जॉर्ज सोरोस के संगठन से जुड़े लोग राहुल गांधी के साथ ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भी शामिल थे। कांग्रेस को स्पष्ट करना होगा कि क्या एंटोनियो माइनो और राहुल गांधी भारत में जॉर्ज सोरोस के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं?

क्या राहुल गांधी से यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर क्यों फ्रैंक इस्लाम, माजिद अली, नियाज खान, जावेद सैयद, मोहम्मद असलम, मीनाज खान, अकील मोहम्मद जैसे कट्टरपंथी अमेरिका में उनके लिए कार्यक्रम आयोजित करते हैं? लंदन में पाकिस्तानी मूल के प्रोफेसर कमल मुनीर के साथ मंच साझा करते हुए राहुल गांधी द्वारा भारत के लोकतंत्र और संस्थाओं पर हमला करने का क्या मतलब है? क्या राहुल गांधी यह नहीं जानते कि मुनीर के आईएसआई के साथ संबंध हैं?

डीप स्टेट से पैसे लेकर ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग रिसर्च जैसी संस्थाएं भारत विरोधी रिपोर्ट और लेख प्रकाशित करती हैं और उसके आधार पर राहुल गांधी और समूचा कांग्रेस इकोसिस्टम अडाणी, प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और भारत पर हमले करता है। यह संयोग तो नहीं हो सकता। क्या राहुल गांधी इसी के लिए बार-बार विदेश जाते हैं? कुल मिलाकर इससे भारत के आर्थिक विकास को पटरी से उतारने के लिए और भारत को अस्थिर करने के लिए डीप स्टेट किस स्तर पर काम कर रहा है, यह पता चलता है।

आईएसआई के प्यादे राहुल के कार्यक्रम के आयोजक

मई 2023 में जब राहुल गांधी 10 दिवसीय अमेरिका दौरे पर गए थे, तब आईएसआई के दो प्यादा संगठनों ने उनके लिए कार्यक्रम आयोजित किए थे। इनमें एक इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) और दूसरा इस्लामिक सर्किल आफ नॉर्थ अमेरिका (आईसीएनए) था। ये दोनों संगठन आईएसआई के एजेंडे पर काम करते हैं। आईएएमसी का नेतृत्व रशीद अहमद करता है, जो 2008 से 2017 तक इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन आफ नॉर्थ अमेरिका (आईएमएएनए) का कार्यकारी निदेशक था। आईएएमसी ने अमेरिका में भारत विरोधी गतिविधियों का ठेका फिदेलिस गवर्नमेंट रिलेशंस (एफजीआर) को दिया था।

इसके लिए 2013-14 में आईएएमसी ने उसे 40,000 डॉलर दिए थे। यही नहीं, एफजीआर बर्मा टास्क फोर्स यानी बीटीएफ के लिए भी काम कर चुका है। बीटीएफ की स्थापना शैक उबैद ने की थी। उबैद ने 2018 और 2020 के बीच अमेरिकी कांग्रेस के साथ भारत विरोधी मुहिम छेड़ने के लिए एफजीआर को 2,67,000 डॉलर दिए थे। बीटीएफ आईएसआई एजेंट गुलाम नबी फई की मेजबानी कर चुका है। वही फई जिसे एफबीआई ने 2011 में एफबीआई ने अमेरिका से पाकिस्तान में 3.5 मिलियन डॉलर हस्तांंतरित करने का दोषी पाया था।

यह संगठन आईएसआई के इशारे पर कश्मीरी अलगाववादियों के लिए लॉबिंग एजेंट का काम करता था। दूसरी ओर, 2005 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उनकी अमेरिका यात्रा को रोकने में आईसीएनए ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका आॅपरेशनल निदेशक जाहिद महमूद पाकिस्तानी नौसेना का पूर्व अधिकारी है। बीटीएफ वास्तव में आईसीएनए की ही एक इकाई है। आईसीएनए का पुराना नाम हलका-ए-अहबाब-ए-इस्लामी है, जिसकी स्थापना 1968 में की गई थी। यही नहीं अशरफुल जमान खान आईसीएनए क्वींस के न्यूयॉर्क चैप्टर का हिस्सा रह चुका है, जो 1971 में पूर्वी बंगाल में नरसंहार का आरोपी था। जमान खान बीटीएफ के सह-संस्थापकों में से एक था।

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