किसकी कठपुतली!

एक लंबे अरसे से उद्योगपति गौतम अडाणी का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़कर सरकार पर हमले कर रही कांग्रेस पर भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों से साठगांठ करने का खुलासा हुआ है। यह खुलासा किसी भारतीय ने नहीं, अपितु एक फ्रांसीसी आनलाइन समाचारपत्र ‘मीडियापार्ट’ ने किया है। इसमें दुनिया के कुछ देशों की सरकारों को […]

Dec 15, 2024 - 12:13
Dec 15, 2024 - 12:32
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किसकी कठपुतली!

एक लंबे अरसे से उद्योगपति गौतम अडाणी का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़कर सरकार पर हमले कर रही कांग्रेस पर भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों से साठगांठ करने का खुलासा हुआ है। यह खुलासा किसी भारतीय ने नहीं, अपितु एक फ्रांसीसी आनलाइन समाचारपत्र ‘मीडियापार्ट’ ने किया है। इसमें दुनिया के कुछ देशों की सरकारों को अस्थिर करने के लिए वित्त पोषण करने वाले विवादास्पद अमेरिकी उद्योगपति जॉर्ज सोरोस से कांग्रेस उपाध्यक्ष एंटोनियो माइनो की निकटता और कांग्रेस पर सोरोस के एजेंडे के अनुसार काम करने के आरोप लगे हैं। हालांकि, कांग्रेस ने अभी तक इन आरोपों को न तो नकारा है और न ही कोई स्पष्टीकरण दिया है।
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप सामान्य बात है।

रमेश शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार

सरकार को घेरने के लिए विपक्ष सदैव आरोप लगाता है, संसद के भीतर भी और बाहर भी। लेकिन बीते कुछ वर्षों से कांग्रेस जो आरोप लगा रही है, उसमें सरकार के कामकाज की समीक्षा और भारत के विकास के मुद्दे कम, उद्योगपति अडाणी के बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर व्यक्तिगत हमले अधिक होते हैं। पर अब कांग्रेस अपने ही बुने जाल में उलझती जा रही है। उस पर आरोप लगा है कि वह यह सब भारत विरोधी जॉर्ज सोरोस की योजना के तहत कर रही है। ‘मीडियापार्ट’ के अनुसार, आर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) नामक मीडिया समूह जो भी भारत विरोधी लेख प्रकाशित करता है, उसके लिए उसे अमेरिकी प्रशासन और जॉर्ज सोरोस से पैसे मिलते हैं। ओसीसीआरपी के लेखों के आधार पर कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा पर हमलावर होती है। लेकिन अब भाजपा को कांग्रेस पर हल्ला बोलने का एक बड़ा मौका मिल गया है।

भाजपा का बड़ा हमला

भाजपा का आरोप है कि राहुल गांधी ही नहीं, उनके नेतृत्व में पूरी कांग्रेस सोरोस के एजेंडे पर भारत की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने का कुचक्र रच रही है। भाजपा ने अपने आरोप के समर्थन में जो पत्रक दिखाए, उनमें सोरोस द्वारा वित्त पोषित संस्था ‘फोरम आॅफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक’ (एफडीएल-एपी) का नाम भी है। यह संस्था कश्मीर के एक स्वतंत्र राष्ट्र के विचार का समर्थन करती रही है। भाजपा का आरोप है कि एंटोनियो माइनो इसकी सह-अध्यक्ष हैं और बाकायदा उनकी फोटो भी छपी हुई है। आरोप है कि सोरोस से एंटोनियो माइनो की इस युति के चलते ही कांग्रेस मोदी और सरकार विरोधी अंतरराष्ट्रीय एजेंडे पर काम कर रही है।

जहां तक एंटोनियो माइनो पर लगे आरोपों का प्रश्न है, यह बात नई नहीं है। उन पर तब से आरोप लगते रहे हैं, जब वे गांधी परिवार की ‘बहू’ बनीं। उन पर सबसे पहला आरोप यह लगा था कि वे राजीव गांधी से शादी करने के बावजूद अपना रिटर्न टिकट कटाए बैठी हैं। बाद में पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने उन पर अपनी शैक्षणिक योग्यता और इटली के जन्मस्थान की गलत जानकारी देने का भी आरोप लगाया था। एक आरोप यह भी लगा था कि विवाह के वर्षों बाद तक एंटोनियो माइनो ने इटली की नागरिकता नहीं छोड़ी थी। यह भी कहा जाता है कि 1977 के चुनाव में जब कांग्रेस हार गई थी, तो वे अपने दोनों बच्चों को लेकर इटली दूतावास चली गई थीं।

इसके अलावा, क्वात्रोकी से निकटता, बोफोर्स तोप कमीशन, नेशनल हेराल्ड संपत्ति के दुरुपयोग आदि में भी एंटोनियो माइनो का नाम सुर्खियों में रहा। यही नहीं, अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले में उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल का नाम भी उछला था। लेकिन ताजा आरोप इनसे बहुत अलग हैं। इस बार उन पर भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों से साठगांठ का आरोप लगा है। इस खुलासे के बाद भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी और निशिकांत दुबे खुलकर सामने आए।

कांग्रेस और एंटोनियो माइनो पर लगे इन आरोपों को पुष्ट करने वाले कुछ पत्रक संसद में लहराए गए और मीडिया को भी दिखाए गए। भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने भी राज्यसभा में ये आरोप दोहराए। एफडीएल-एपी को पाकिस्तान समर्थक और भारत विरोधी संस्था माना जाता है। इसके चार सह-अध्यक्ष हैं, जिनमें एंटोनियो माइनो के अतिरिक्त फिलीपींस के पूर्व राष्ट्रपति कोराजोन एक्विनो, नेशनल कांग्रेस आफ न्यू पॉलिटिक्स के अध्यक्ष किम डेंग जुम और पूर्व राष्ट्रपति आस्कर सांचेज का नाम भी शामिल है। इस संस्था के सहयोगी एनजीओ कई देशों में हैं, जिनमें से एक राजीव गांधी फाउंडेशन भी है।

सोरोस के साथ एंटोनियो माइनो के संबंधों को दर्शाता भाजपा द्वारा जारी पत्रक

भारत विरोधी मुहिम का अगुआ

उद्योगपति सोरोस दुनिया में सर्वाधिक विवादित और भारत विरोधी मानसिकता वाला व्यक्ति है। विश्व में भारत की बढ़ती साख से ईर्ष्या रखने वाली जितनी भी संस्थाएं कूटरचित तर्कों से भारत की छवि बिगाड़ने के प्रयासों में जुटी हैं, उन सबके तार सोरोस से जुड़ते हैं। सोरोस खुद भी प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बड़ा आलोचक है। ओसीसीआरपी, जो एक बड़ा मीडिया संगठन है, का वित्त पोषण भी सोरोस ही करता है। इस पर भारत विरोधी समाचार और लेख प्रकाशित किए जाते हैं। ओसीसीआरपी का नेटवर्क 100 से अधिक देशों में है, जिनमें उन देशों के मीडियाकर्मी, वेबसाइट और मीडिया नेटवर्क भी शामिल हैं।

भले ही ओसीसीआरपी खुद को एक ‘गैर लाभकारी सार्वजनिक वित्त पोषित संस्था’ कहे, लेकिन इसे सोरोस द्वारा वित्त पोषित संस्था ही माना जाता है। जिन देशों में ओसीसीआरपी का नेटवर्क है, वहां के कुछ राजनीतिक दलों में भी इसकी पैठ है। इसलिए इसके द्वारा उठाए गए मुद्दे अक्सर सुर्खियां बन जाते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सोरोस ने ओसीसीआरपी के अलावा कुछ अन्य मीडिया कंपनियों में भी निवेश किया है। इनमें अकेले अमेरिका के ही 30 से अधिक मीडिया घराने हैं। इसमें न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, एपी, सीएनएन और एबीसी शामिल हैं।

सोरोस ने फरवरी 2008 में कुछ भारतीय मीडिया संस्थानों में भी निवेश किया था। भारत की राजनीति में हस्तक्षेप के कारण वह लंबे समय से चर्चा में बना हुआ है। उसने बीते एक दशक में विश्व के अनेक मंचों पर प्रधानमंत्री मोदी की खुलकर आलोचना की है। उसने सरकार की जिन नीतियों की आलोचना की, उनमें अंतरराष्ट्रीय नीतियां ही नहीं, भारत के आंतरिक मामले और कानून व्यवस्था से जुड़ी नीतियां भी शामिल रही हैं। इनमें कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने, नागरिकता संशोधन कानून, कथित किसान आंदोलन व खालिस्तान आंदोलन जैसे प्रमुख आंतरिक मुद्दे भी थे। सोरोस यह भी कह चुका है कि ‘मोदी के नेतृत्व में भारत तानाशाही व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।’ गत वर्ष जनवरी माह में हिंडनबर्ग रिसर्च ने जब अडाणी समूह के खिलाफ रिपोर्ट जारी की थी, तब भी सोरोस ने अडाणी के बहाने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि ‘अडाणी के साथ प्रधानमंत्री मोदी के संबंध इतने घनिष्ठ हैं कि दोनों एक-दूसरे के लिए अपरिहार्य हो गए हैं।’

संयोग या प्रयोग

संसद सत्र के दौरान जिस तरह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मुद्दे उछाले जाते हैं, उसकी ‘टाइमिंग’ को देखते हुए इसे संयोग नहीं, बल्कि प्रयोग ही कहा जाएगा। जाहिर है कि इसके पीछे कोई विध्वंसकारी मानसिकता कार्यरत है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ अडाणी का नाम जोड़कर कांग्रेस जिस तरह से मुद्दे उठाती आ रही है, वह जॉर्ज सोरोस की शैली से मेल खाता है। इसे इस प्रकार समझें। किसानों से संबंधित रिपोर्ट 3 फरवरी, 2021 को आई, जबकि संसद का सत्र 29 जनवरी, 2021 से चल रहा था। सांसदों की कथित जासूसी से जुड़ी पेगासस रिपोर्ट 18 जुलाई, 2021 को आई, तब संसद का मानसून सत्र 19 जुलाई, 2021 से शुरू होना था।

इसी तरह, हिंडनबर्ग रिपोर्ट 24 जनवरी, 2023 को आई, जबकि संसद का बजट सत्र 30 जनवरी, 2023 से शुरू होना था। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 17 जनवरी, 2023 को आई और संसद का सत्र 30 जनवरी 2023 से आरंभ होना था। ऐसे ही मणिपुर का वीडियो संसद सत्र शुरू होने से एक दिन पहले 19 जुलाई, 2023 को जारी किया गया। 10 मई, 2024 को जब कोरोना वैक्सीन से संबंधित भ्रामक रिपोर्ट आई तब लोकसभा चुनाव चल रहे थे। बाद में अगस्त 2024 में सेबी के अध्यक्ष के खिलाफ रिपोर्ट आई और हाल ही में 25 नवंबर से भारत का संसद सत्र शुरू होने से पहले 20 नवंबर को अमेरिका में एक रिपोर्ट जारी हो गई।

ये तमाम प्रमाण देकर भाजपा ने यह साबित करने का प्रयास किया है कि कांग्रेस किस प्रकार सोरोस और भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के साथ मिलकर देश और सरकार को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। भाजपा ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एंटोनियो माइनो और सोरोस के बीच साठगांठ को लेकर सवाल उठाए हैं। यह आरोप भी लगाया है कि अमेरिकी डीप स्टेट भारत के आर्थिक विकास को बाधित करने और उसे अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। भाजपा ने इंडि गठबंधन से भी पूछा है कि क्या वह कांग्रेस की इस संबंध की गुत्थी में साझेदार है या नहीं? एंटोनियो माइनो से भी पूछा है कि जिस फोरम आफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक का वित्त पोषण सोरोस करता है, उसमें उन्होंने सह-अध्यक्ष का पद क्यों स्वीकार किया? उन्होंने इस संस्था की गतिविधियों के बारे में देश को कोई जानकारी क्यों नहीं दी? इन आरोपों पर कांग्रेस की चुप्पी बहुत कुछ कहती है।

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