रामलला की अकल्पनीय छवि का दिव्य स्वरूप, जल्द बनाएं दर्शन का प्लान
रामलला, बनारस से लाए गए वस्त्र ‘पीताम्बर धोती तथा लाल रंग के पटुके’ में सुशोभित हैं। इन वस्त्रों पर शुद्ध स्वर्ण से जड़ित तारों से डिजाइन उकेरा गया। जिनमें वैष्णव के शुभ प्रतीक चिन्ह- पद्म,शंख, चक्र और मयूर अंकित हैं।
![रामलला की अकल्पनीय छवि का दिव्य स्वरूप, जल्द बनाएं दर्शन का प्लान](https://bharatiya.news/uploads/images/202401/image_870x_65aea82c4e941.jpg)
अयोध्या में प्रभु श्रीराम की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। रामलला अपने अलौकिक दिव्य-भव्य छवि के साथ सम्पूर्ण विश्व के सामने हैं। रामलला की छवि आप ऊपर देख ही रहें है। जिसकी कल्पना करना आम जनमानस के लिए असंभव सा प्रतित लगता है। भगवान श्रीरामलला के दिव्य बालस्वरूप को कई दिव्य आभूषणों और पौराणिक कथाओं में वर्णित के अनुसार ही वस्त्रों से सुसज्जित किया गया है।
ऐसे हुआ दिव्य आभूषणों का निर्माण
इन दिव्य आभूषणों का निर्माण शास्त्रसम्मत शोभा के अनुरूप शोध और अध्ययन के बाद चिन्हित किया गया है। अयोध्या के रहने वाले मशहूर लेखक यतींद्र मिश्र ने इससे संबंधित जरूरी शोध के साथ परिकल्पना और निर्देशन दिया था, और इसी के आधार पर इन विशेष आभूषणों का निर्माण अंकुर आनन्द के संस्थान हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स, लखनऊ द्वारा किया गया है।
वस्त्र निर्माण की ये है खासियत
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि, रामलला पर बनारस से लाए गए वस्त्र ‘पीताम्बर धोती तथा लाल रंग के पटुके’ में सुशोभित हैं। इन वस्त्रों पर शुद्ध स्वर्ण से ज़री तारों से डिजाइन उकेरा गया। जिनमें वैष्णव के शुभ प्रतीक चिन्ह- पद्म,शंख, चक्र और मयूर अंकित हैं। इन मनमोहक वस्त्रों का निर्माण अयोध्या धाम में रहकर दिल्ली के वस्त्र निर्माता मनीष त्रिपाठी ने द्वारा किया गया।
शास्त्रों में वर्णन के अनुसार पहने हैं आभूषण
रामलला के आभूषण वास्तुकला की बात करे। तो बता दें कि, रामलला पौराणिक वर्णनों के अनुसार ही शीश पर भव्य मुकुट, गले में सोने की कंठा, हृदय में कौस्तुभमणि, वैजयन्ती या विजयमाल, कमर में कांची या करधनी पहन रखी है। उनके हर आभूषण की एक अलग ही खासियत है। तो चलिए जानते है।
शीष पर किरीटः यह उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार, स्वर्ण द्वारा निर्मित किया गया है। जिसमें माणिक्य, पन्ना सहित हीरे मनमोहक रूप से सजाए गया है। मुकुट के ठीक मध्य में भगवान सूर्य भी विराजमान हैं। मुकुट के दायीं ओर मोतियों की अद्भुत लड़ियाँ पिरोई गयी हैं।
कुण्डलः मुकुट के अनुसार उसी डिजाईन के क्रम में कर्ण-आभूषण बनाये गये हैं। जिनमें मयूर आकृतियां उकेरी गई हैं। और यह भी सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से सुशोभित है।
कण्ठाः गले में अर्द्ध चन्द्राकार रत्नों से जड़ित कण्ठा भी डाले हुए, जिसमें मांगलिक सोने की दमक पुष्प बने हैं और मध्य में सूर्य देव बने हैं। यह कण्ठा हीरे, माणिक्य और पन्नों से जड़ित बताया जा रहा जिसमें कण्ठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गयी हैं.
कौस्तुभमणिः भगवान के कोमल हृदय में कौस्तुभमणि धारण कराया गया। जिसे एक बड़े माणिक्य और हीरों से सजाया गया है। यह शास्त्र विधान है कि भगवान विष्णु तथा उनके अवतार हृदय में कौस्तुभमणि धारण करते हैं। इसलिए इसे प्राथमिक रूप से धारण कराया गया।
वैजयन्ती मालाः यह रामलला को पहनाया गया तीसरा और सबसे लम्बा स्वर्ण से निर्मित हार है। जिसमें कहीं-कहीं माणिक्य सुशोभित किए गए हैं। इसे विजय के प्रतीक के रूप में पहनाया जाता है, जिसमें वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिन्ह सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल-कलश दर्शाया गया है. इसमें पांच प्रकार के देवताओं को प्रिय पुष्पों का भी अलंकरण किया गया है, जो क्रमशः कमल, चम्पा, पारिजात, कुन्द और तुलसी हैं.
कमर में कांची या करधनी: भगवान के कमर में करधनी धारण करायी गयी है, जिसे रत्नजडित बनाया गया है. स्वर्ण पर निर्मित इसमें प्राकृतिक सुषमा का अंकन है, और हीरे, माणिक्य, मोतियों और पन्ने यह अलंकृत है. पवित्रता का बोध कराने वाली छोटी-छोटी पाँच घण्टियों को भी इसमें लगाया गया है. इन घण्टियों से मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियों भी लटक रही हैं.
भुजबन्ध या अंगदः भगवान की दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित मुजबन्ध पहनाये गये हैं.
कंकण/कंगनः दोनों ही हाथों में रत्नजडित सुन्दर कंगन पहनाये गये हैं.
मुद्रिकाः बाएं और दाएं दोनों हाथों की मुद्रिकाओं में रत्नजड़ित मुद्रिकाएं सुशोभित हैं, जिनमें से मोतियां लटक रही हैं.
पैरों में छड़ा और पैजनियां: पैरों में छड़ा पहनाये गये हैं. साथ ही स्वर्ण की पैजनियाँ पहनायी गयी हैं.
बाएं हाथ में स्वर्ण धनुष और गले में वनमाला
भगवान के बाएं हाथ में स्वर्ण का धनुष है, जिनमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकने लगी हैं, इसी तरह दाहिने हाथ में स्वर्ण का बाण धारण कराया गया है. भगवान के गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला धारण कराई गई है, जिसका निर्माण हस्तशिल्प के लिए समर्पित शिल्पमंजरी संस्था ने किया है. भगवान के मस्तक पर उनके पारम्परिक मंगल-तिलक को हीरे और माणिक्य से रचा गया है. भगवान के चरणों के नीचे जो कमल सुसज्जित है, उसके नीचे एक स्वर्णमाला सजाई गई है.
What's Your Reaction?
![like](https://bharatiya.news/assets/img/reactions/like.png)
![dislike](https://bharatiya.news/assets/img/reactions/dislike.png)
![wow](https://bharatiya.news/assets/img/reactions/wow.png)
![sad](https://bharatiya.news/assets/img/reactions/sad.png)