बांग्लादेश मे हिन्दू के साथ हो रहा है गुस्से में भारतीय हिंदू

गत 1 दिसंबर को करीमगंज (असम) में ‘सनातनी एक्य मंच’ ने एक आंदोलन हुआ। इसका नाम रखा गया- ‘चलो बांग्लादेश।’ यह आंदोलन करीमगंज कॉलेज परिसर से एक विशाल बाइक रैली के साथ शुरू हुआ। इसमें हजारों लोगों ने भाग लिया। यह आंदोलन सुतारकांडी सीमा पर समाप्त हुआ। इस आंदोलन को ‘सनातनी एक्य मंच’ के समन्वयक

Dec 10, 2024 - 10:58
Dec 11, 2024 - 10:29
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बांग्लादेश  मे हिन्दू के साथ हो रहा है गुस्से  में भारतीय हिंदू

गत 1 दिसंबर को करीमगंज (असम) में ‘सनातनी एक्य मंच’ ने एक आंदोलन हुआ। इसका नाम रखा गया- ‘चलो बांग्लादेश।’ यह आंदोलन करीमगंज कॉलेज परिसर से एक विशाल बाइक रैली के साथ शुरू हुआ। इसमें हजारों लोगों ने भाग लिया। यह आंदोलन सुतारकांडी सीमा पर समाप्त हुआ।

इस आंदोलन को ‘सनातनी एक्य मंच’ के समन्वयक शांतनु नाइक, सिल्चर स्थित शंकर मठ और मिशन के प्रमुख आशित चक्रवर्ती, बलागिरि आश्रम के विज्ञानानंद महाराज और शिवब्रत साहा आदि ने संबोधित किया। करीमगंज कॉलेज परिसर से आंदोलनकारी बांग्लादेश की सीमा की ओर पैदल बढ़े, लेकिन बीएसएफ और असम पुलिस ने उन्हें सीमा से आधा किलोमीटर पहले ही रोक दिया।

आंदोलनकारियों का कहना था कि संत चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है इसलिए उन्हें तुरंत रिहा किया जाए। ‘सनातनी एक्य मंच’ ने बांग्लादेश सरकार से मांग की कि वह इन जघन्य कृत्यों को तुरंत रोके और हिंदू समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

इसी प्रकार 3 दिसंबर को कोरबा में सनातन संस्कृति रक्षा मंच ने विरोध प्रदर्शन किया। सुभाष चौक पर धरना प्रदर्शन कर कोसाबाड़ी तक आक्रोश रैली निकाली गई। तत्पश्चात् जिला प्रशासन को राष्ट्रपति के नाम एक मांग पत्र सौंपा गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता साध्वी गिरिजेश नंदनी ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या कर उनकी संपत्ति लूटी जा रही है, उन्हें सरकारी नौकरी से जबरन निकाला जा रहा है।

4 दिसंबर को अमदाबाद, भोपाल, जयपुर में भी लाखों हिंदुओं ने बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या को लेकर जबरदस्त प्रदर्शन किया। वक्ताओं ने कहा कि यदि बांग्लादेश की सरकार हिंदुओं की रक्षा नहीं कर सकती तो भारत सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए, क्योंकि वहां के हिंदू भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं।

बांग्लादेशी मरीजों का बहिष्कार

पश्चिम बंगाल में इलाज के लिए आने वाले बांग्लादेशियों का बहिष्कार होने लगा है। बहिष्कार करने वालों में सिलीगुड़ी के ई.एन.टी. विशेषज्ञ डॉ. शेखर बंद्योपाध्याय का नाम प्रमुख है। वे नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज में ई.एन.टी. विभाग में विशेष चिकित्सा अधिकारी हैं।

उन्होंने अपने निजी क्लिनिक में तिरंगा लगाकर लिखा है, ‘‘भारत का राष्ट्रीय ध्वज हमारी मां के समान है। कृपया क्लिनिक में प्रवेश करने से पहले तिरंगे को सलाम करें। विशेषकर बांग्लादेशी रोगी। अगर वे तिरंगे को सलाम नहीं करते, तो उन्हें अंदर आने नहीं दिया जाएगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं जिस सरकारी अस्पताल में काम करता हूं, वहां इलाज से इनकार नहीं कर सकता, लेकिन निजी क्लिनिक में तिरंगा लगाया है। जो इसका सम्मान नहीं कर सकते, वे मुझसे इलाज की उम्मीद न करें।’’ डॉ. शेखर का यह भी कहना है कि एक चिकित्सक को किसी मरीज का इलाज करने से मना नहीं करना चाहिए, लेकिन भारत में आने वालों को भारत का सम्मान करना ही होगा। कुछ अन्य डॉक्टर भी डॉ. शेखर की इस पहल का अनुसरण करने लगे हैं।

29 नवंबर को कोलकाता के एक अस्पताल ने विरोध स्वरूप बांग्लादेशी मरीजों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। कोलकाता के प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. इंद्रनील साहा ने भी बांग्लादेशियों का विरोध किया है।

करीमगंज में बांग्लादेश के विरोध में सड़कों पर उतरे हिंदू

28 नवंबर की रात डॉ. साहा ने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें बांग्लादेश में भारतीय झंडे का अपमान दिखाया गया था। डॉ. साहा ने कहा, ‘‘ढाका में बीयूईटी यूनिवर्सिटी के प्रवेश द्वार पर जमीन पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज बनाया गया है! मैं फिलहाल चैंबर में बांग्लादेशी मरीजों को देखना बंद कर रहा हूं। देश पहले, आय बाद में। मुझे उम्मीद है कि रिश्ते सामान्य होने तक दूसरे डॉक्टर भी ऐसा ही करेंगे।’’

ऐसे ही मालदा में वहां के होटल मालिकों ने बांग्लादेशियों को कमरे देने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि भारत का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

संत चिन्मय को नहीं मिला वकील

इन दिनों इस्कॉन के संत चिन्मय कृष्ण दास बांग्लादेश की एक जेल में हैं। अंतरिम सरकार ने उन पर कई तरह के फर्जी आरोप लगाए हैं। उन्होंने न्यायालय में जमानत की अर्जी लगाई थी, जिस पर 3 दिसंबर को सुनवाई होनी थी। लेकिन उनके वकील के साथ कट्टरपंथियों ने मारपीट की और उन्हें अदालत नहीं पहुंचने दिया।

इसलिए उनकी अर्जी पर कोई सुनवाई ही नहीं हुई। अब जिहादी तत्वों के डर से कोई भी वकील उनका मुकदमा नहीं लड़ना चाहता। इस कारण न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 2 जनवरी, 2025 की तारीख तय की है।

चिन्मय कृष्ण दास को नवंबर में उस समय गिरफ्तार किया गया था, जब वे चटगांव में आयोजित एक रैली में भाग लेने जा रहे थे।

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