खामेनेई से पहले कैसा था ईरान, रजा पहेलवी क्या चाहते हैं? 5 प्वाइंट में समझें

इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान पूरी तरह बदल चुका है, कभी यहां महिलाओं को आजादी थी और पश्चिमीकरण हावी था. 1979 के बाद सब बदल गया और धार्मिक कट्टरता बढ़ गई. महिलाओं के अधिकार छीन लिए गए. अब ईरान के पूर्व क्राउन प्रिंस रजा पहेलवी ईरान में लोकतांत्रिक शासन चाहते हैं ताकि ईरान फिर से आगे बढ़ सके.

Jul 4, 2025 - 20:28
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खामेनेई से पहले कैसा था ईरान, रजा पहेलवी क्या चाहते हैं? 5 प्वाइंट में समझें
खामेनेई से पहले कैसा था ईरान, रजा पहेलवी क्या चाहते हैं? 5 प्वाइंट में समझें

खामेनेई की इस्लामिक सत्ता से पहले वाले ईरान को वापस लाने के लिए रजा पहेलवी जुटे हुए हैं, वह इन दिनों लंदन में हैं और लगातार ईरान से खामेनेई की सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए ब्रिटेन का समर्थन मांग रहे हैं. दरअसल रजा पहेलवी का दावा है कि वह ईरान की खुशियां वापस लौटाना चाहते हैं, वो खुशियां जो इस्लामिक क्रांति से पहले थीं. वह ईरान में लोकतांत्रिक शासन लाने का भी दावा करते हैं.

रजा पहेलवी ईरान के पूर्व प्रिंस क्राउन हैं, 1979 में जब ईरान में इस्लामी क्रांति हुई थी तब उन्हें अपने वतन को छोड़ना पड़ा था. अब वह वतन वापसी की तैयारी कर रहे हैं, उनके रास्ते में सबसे बड़ा रोढ़ा खामेनेई हैं. रजा पहेलवी चाहते हैं कि ईरान में खामेनेई की सत्ता का अंत हो और यह देश लोकतांत्रिक हो. दरअसल पिछले 45 साल में ईरान में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं, इसने ईरान को बिल्कुल बदल दिया है. आइए समझते हैं कि आखिर ईरान कितना बदला, जिसे रजा पहेलवी ठीक करना चाहते हैं.

1- पश्चिमीकरण पूरी तरह खत्म

इस्लामी क्रांति से पहले शाह मोहम्मद रजा पहेलवी ईरान में व्हाइट रिवॉल्यूशन लाए थे. इससे शहरी क्षेत्रों में पश्चिमी प्रभाव बढ़ा था. लोग उसी तरह जीते थे, जैसे अमेरिका में, फ्रांस में या इजराइल में. हालांकि ऐसे आरोप लगते हैं कि शाह शासन के दौरान ईरान में भ्रष्टाचार भी था. इसी वजह से इस्लामिक क्रांति हुई और देश में कट्टर इस्लामी शासन स्थापित हुआ. इससे पश्चिमी कल्चर पर बैन लगा दिया और बुर्का और हिजाब जैसी चीजें महिलाओं पर थोप दी गईं, धार्मिक स्वतंत्रता तो खत्म हुई ही, सामाजिक आजादी भी छिन गई.

2- पहले पश्चिम आधारित थी शिक्षा अब धर्म आधारित

शाह के शासनकाल में ईरान में शिक्षा प्रणाली का आधुनिकीकरण शुरू हो गया था. यह एजुकेशन सिस्टम धर्म से बिल्कुल अलग था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर यह पश्चिमी मॉडल पर आधारित था. हालांकि इस्लामी क्रांति के बाद इसमें धर्म फिर से शामिल हो गया. धर्मनिरपेक्ष तत्वों को हटा दिया गया. लड़कों और लड़कियों को अलग-अलग शिक्षण संस्थानों में पढ़ने के लिए मजबूर किया गया, और पाठ्यक्रम का इस्लामीकरण कर दिया गया. हालांकि पहले के मुकाबले साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लेकिन महिलाओं की शिक्षा में कमी आई है.

3- कम हुए महिलाओं के अधिकार

शाह के शासनकाल में महिलाओं के पास ज्यादा अधिकार थे. उन्हें मतदान का अधिकार और अधिक आर्थिक अवसर शाह शासनकाल में ही मिले थे. हालांकि इस्लामिक क्रांति के बाद महिलाओं पर पाबंदियां लगा दी गईं. इंटरनेशनल पॉलिसी डाइजेस्ट के मुताबिक इस्लामिक क्रांति के बाद अनिवार्य हिजाब, सार्वजनिक ड्रेस कोड और शरिया कानून लागू हो गया. इससे महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ा. महसा अमीनी इसका उदाहरण हैं, महसा अमीनी की मौत के बाद देश में महिलाओं ने प्रदर्शन किया था, जिसे ईरान ने दबा दिया था.

4- प्रतिबंधों से अर्थव्यवस्था प्रभावित

1970 के दशक में तेल के राजस्व का असमान वितरण शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक बड़ा अंतर पैदा करता था. क्रांति के बाद, सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे गरीबी दर में कमी आई. हालांकि, ईरान की अर्थव्यवस्था अभी भी तेल पर निर्भर है, और पश्चिमी प्रतिबंधों ने भी आर्थिक विकास में बाधा डाली है. आय असमानता भी एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है.

5- धार्मिक निरंकुशता बढ़ी

क्रांति से पहले ईरान में एक संवैधानिक राजशाही थी, हालांकि 1979 में इसे इस्लामी गणराज्य घोषित कर दिया गया और देश की सारी शक्तियां एक सर्वोच्च नेता को दे दी गई. यही सर्वोच्च नेता देश के सभी पहलुओं को नियंत्रित करता है, इससे देश में धार्मिक निरंकुशता बढ़ी है. हालांकि देश में एक संसद और अन्य आधुनिक संस्थान हैं, मगर सर्वोच्च नेता की शक्तियां ही राजनीतिक प्रक्रिया को पूरा करती हैं.

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