आस्थावान का बना विधान

आंध्र प्रदेश स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसादम् में मिलावट से उपजे विवाद के बाद नवगठित तिरुमला तिरुपति देवस्थानम् (टीटीडी) ने एक बड़ा निर्णय लिया है। अब से मंदिर बोर्ड में केवल हिंदू कर्मचारी ही काम करेंगे। टीटीडी ने मंदिर में कार्यरत गैर-हिंदू कर्मचारियों के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है। इसके अनुसार, मंदिर बोर्ड […]

Dec 6, 2024 - 11:06
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आस्थावान का बना विधान

आंध्र प्रदेश स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसादम् में मिलावट से उपजे विवाद के बाद नवगठित तिरुमला तिरुपति देवस्थानम् (टीटीडी) ने एक बड़ा निर्णय लिया है। अब से मंदिर बोर्ड में केवल हिंदू कर्मचारी ही काम करेंगे। टीटीडी ने मंदिर में कार्यरत गैर-हिंदू कर्मचारियों के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है। इसके अनुसार, मंदिर बोर्ड में कार्यरत गैर-हिंदू कर्मचारियों को या तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेनी होगी या राज्य के अन्य सरकारी विभागों में स्थानांतरण का विकल्प चुनना होगा।

तिरुमला तिरुपति देवस्थानम् एक स्वतंत्र सरकारी ट्रस्ट है, जो तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर का प्रबंधन करता है। टीटीडी के अध्यक्ष बीआर नायडू ने कहा कि 18 नवंबर को हुई बैठक में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। उन्होंने कहा कि टीटीडी ने कुछ गैर-हिंदू कर्मचारियों की पहचान की है, जिनसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर वीआरएस लेने को कहा जाएगा। यदि वे नहीं माने तो उन्हें अन्य सरकारी विभागों जैसे-राजस्व या नगरपालिका या किसी निगम में स्थानांतरित किया जाएगा या प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाएगा। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम् एक हिंदू धार्मिक संस्था है और बोर्ड को लगता है कि मंदिर में गैर-हिंदुओं की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए।

बोर्ड की एक आधिकारिक विज्ञप्ति में गैर-हिंदू कर्मचारियों के विरुद्ध उचित कदम उठाने के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखने की बात भी कही गई है। हालांकि टीटीडी अध्यक्ष नायडू ने यह नहीं बताया कि बोर्ड में कितने गैर-हिंदू कर्मचारी कार्यरत हैं। उन्होंने बस इतना कहा कि बोर्ड गैर-हिंदू कर्मचारियों का पता लगाकर उन्हें सरकार को सौंप देगा। एक अनुमान के अनुसार, बोर्ड में 7,000 कर्मचारी काम करते हैं, जिनमें 300 गैर-हिंदू हैं। इसके अलावा, लगभग 14,000 संविदा कर्मचारी भी हैं।

बता दें कि टीटीडी अध्यक्ष के पद पर बीआर नायडू की नियुक्ति गत 31 अक्तूबर को हुई थी। पद संभालते ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि मंदिर का संचालन केवल हिंदुओं द्वारा ही किया जाना चाहिए। बोर्ड के प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि मंदिर से जुड़े लोग किसी तरह का राजनीतिक बयान नहीं देंगे और यदि कोई ऐसा बयान देता है या उसे प्रचारित करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, प्रसादम् की शुद्धता भी सुनिश्चित की गई है। अब से प्रसादम् के लिए उन्नत गुणवत्ता वाला घी ही प्रयोग में लाया जाएगा।

इसके अलावा, बोर्ड ने श्री वेंकटेश्वर आलयाला निर्माणम् ट्रस्ट (श्रीवानी) का टीटीडी में विलय करने और विभिन्न राज्यों के पर्यटन निगमों को दिया गया दर्शन कोटा बंद करने का निर्णय भी लिया है, क्योंकि बड़े पैमाने पर कोटे में अनियमितता की शिकायतें मिल रही हैं। श्रीवानी ट्रस्ट की स्थापना सितंबर 2019 में हुई थी। यह टीटीडी से संबद्ध ट्रस्ट है, जिसका कार्य देश के अलग-अलग हिस्सों में श्री वेंकटेश्वर स्वामी के मंदिरों का निर्माण, रखरखाव व सुरक्षा, धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और धार्मिक कार्यों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना है।

ट्रस्ट ने देश के अलग-अलग शहरों, कस्बों और गांवों में नए मंदिर बनाने की योजना बनाई है। यही नहीं, बोर्ड ने एक विशेषज्ञ समिति की बैठक के बाद विशाखा सारदा पीठम् मठ का पट्टा भी रद्द करने का फैसला किया है, क्योंकि इसमें कथित तौर पर टीटीडी नियमों का उल्लंघन हुआ है। अभी तक टीटीडी अधिनियम में तीन संशोधन हो चुके हैं। इन संशोधनों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि मंदिर बोर्ड और उससे संबद्ध संस्थानों का प्रबंधन हिंदुओं द्वारा ही किया जाए।

1989 में इस बाबत एक आदेश भी जारी किया गया था कि टीटीडी प्रशासित पदों पर केवल हिंदुओं की ही नियुक्ति हो। लेकिन गैर-हिंदुओं की नियुक्ति जारी रही। इसे लेकर हिंदुओं ने शिकायतें भी कीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इस वर्ष जून में जब चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में आंध्र प्रदेश में नई सरकार बनी तो इस दिशा में प्रयास शुरू हुए। दरअसल, टीटीडी का अपना अलग संविधान है, जो संविधान के अनुच्छेद 16(5) पर आधारित है।

इसमें धार्मिक प्रकृति वाले संस्थानों को यह अधिकार दिया गया है कि वे बोर्ड आदि में अपने धर्म के मानने वालों को नियोजित कर सकते हैं। आंध्र प्रदेश धर्मार्थ एवं हिंदू धार्मिक संस्थान व बंदोबस्ती सेवा नियमों के नियम 3 में भी कहा गया है कि धार्मिक संस्थानों के कर्मचारी हिंदू होंगे। नवंबर 2023 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय भी कह चुका है कि ट्रस्ट बोर्डों को सेवा शर्तों को अनिवार्य रूप से लागू करने का अधिकार है।

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