आदिवासियों की कोरी चिंता, कागज में सिमटा रहा पेसा कानून

राष्ट्रीय कांफ्रेंस में उभरी चिंता, अब भी कानून के तहत मिले अधिकारों से अनजान हैं आदिवासी अधिसूचित 10 राज्यों में से सिर्फ तीन राज्यों में 2014 से पहले कानून लागू हो सका। पांच राज्यों में 2014 के बाद नियमावली बन सकी, जबकि झारखंड और ओडिशा में अब नियमावली बनने जा रही है।

Sep 27, 2024 - 18:10
Sep 27, 2024 - 18:12
 0
आदिवासियों की कोरी चिंता, कागज में सिमटा रहा पेसा कानून

आदिवासियों की कोरी चिंता, कागज में सिमटा रहा पेसा कानून 

राष्ट्रीय कांफ्रेंस में उभरी चिंता, अब भी कानून के तहत मिले अधिकारों से अनजान हैं आदिवासी अधिसूचित 10 राज्यों में से सिर्फ तीन राज्यों में 2014 से पहले लागू हो सका 1996 का कानून  

चुनावों के समय हर राजनीतिक दल की चिंता के केंद्र में रहने वाले आदिवासियों के प्रति सरकारें वास्तव में कितनी फिक्रमंद रही हैं, इसका प्रमाण पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम (पेसा कानून) देता है। जनजाति वर्ग को सामाजिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार देने के लिए 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून को लागू करने में सरकारों ने रुचि ही नहीं ली। अधिसूचित 10 राज्यों में से सिर्फ तीन राज्यों में 2014 से पहले कानून लागू हो सका। पांच राज्यों में 2014 के बाद नियमावली बन सकी, जबकि झारखंड और ओडिशा में अब नियमावली बनने जा रही है।

पंचायतीराज मंत्रालय के राष्ट्रीय सम्मेलन  में उभरी चिंता इस बात को लेकर थी कि कानून कागज में सिमटा रहा और इस कानून के तहत मिले अधिकारों से आदिवासी समाज अब तक अनजान है। पेसा कानून को धरातल पर उतारते हुए प्रभावी बनाने पर गुरुवार को पंचायतीराज मंत्रालय ने नई दिल्ली के डा. आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें पेसा कानून के तहत अधिसूचित 10 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और गुजरात के त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों, अधिकारियों ने भाग लिया। यह विमर्श आदिवासी बहुल पंचायतों के प्रतिनिधियों को पेसा कानून के प्रति जागरूक और प्रोत्साहित करने के लिए था।

मगर, मंच से बताए गए तथ्यों में यह स्वीकारने को लेकर कतई संकोच नहीं था कि इस कानून को लागू करने के प्रति सरकारों के स्तर से बेहद उदासीनता बरती गई। केंद्रीय पंचायतीराज राज्य मंत्री प्रो एसपी सिंह बघेल ने दो टूक कहा कि 1996 में अटल सरकार ने यह कानून बनाया, लेकिन फिर आदिवासियों के लिए सरकारी वनवास हो गया। खास तौर पर 2004 से 2014 तक इस कानून को लागू कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। बीते 10 वर्षों से काम शुरू हुआ है। मध्य प्रदेश के पंचायतीराज एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल ने भी कहा कि यह विचार-विमर्श का विषय है कि 1996 में बने इस कानून को लागू होने में इतनी देर क्यों लगी। हालांकि, उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में इसे 2022 में नियमावली बनाकर लागू कर दिया गया। मंत्रालय के सचिव विवेक भारद्वाज ने भी चिंता जताई कि 28 वर्षों तक इस कानून को लागू करने के लिए नियमावली नहीं बनाई गई। पेसा अब भी सिर्फ कागज पर है। आदिवासियों को उनके अधिकार ही नहीं मालूम। उन्होंने बताया कि अब तेजी से इस पर काम हो रहा है। 

झारखंड: 2011-2023 में नियमावली का मसौदा अधिसूचित किया।
• ओडिशा: 1997-2023 में नियमावली का मसौदा अधिसूचित किया।
• तेलंगाना: (2014 में
अलग राज्य बनने पर आंध प्रदेश की 2011 की नियमावली को अधिसूचित किया) 

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

सम्पादक देश विदेश भर में लाखों भारतीयों और भारतीय प्रवासियों लोगो तक पहुंचने के लिए भारत का प्रमुख हिंदी अंग्रेजी ऑनलाइन समाचार पोर्टल है जो अपने देश के संपर्क में रहने के लिए उत्सुक हैं। https://bharatiya.news/ आपको अपनी आवाज उठाने की आजादी देता है आप यहां सीधे ईमेल के जरिए लॉग इन करके अपने लेख लिख समाचार दे सकते हैं. अगर आप अपनी किसी विषय पर खबर देना चाहते हें तो E-mail कर सकते हें newsbhartiy@gmail.com