समाज से छुआछूत, जातिवाद और सामाजिक भेदभाव को पूरी तरह समाप्त कर ना – डॉ. मोहन भागवत जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के उस विचार को संदर्भित करता है जिसमें वे समाज से छुआछूत, जातिवाद और सामाजिक भेदभाव को पूरी तरह समाप्त करने का आह्वान करते हैं। यह शीर्षक उनके उस संदेश को प्रकट करता है जो समानता, एकता, और समरसता को बढ़ावा देने की दिशा में है।

Sep 16, 2024 - 19:47
Sep 16, 2024 - 19:54
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समाज से छुआछूत, जातिवाद और सामाजिक भेदभाव को पूरी तरह समाप्त कर ना – डॉ. मोहन भागवत जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत का आह्वान: समाज में समरसता और पर्यावरण संरक्षण की जरूरत

अलवर, 15 सितंबर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को अलवर के इंदिरा गांधी खेल मैदान में आयोजित नगर एकत्रीकरण में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना होगा। इस अवसर पर संघ प्रमुख ने कहा कि छुआछूत और ऊंच-नीच का भाव समाज में स्वार्थ के कारण पनपा है, और इसे समाप्त करने के लिए सभी हिंदुओं को एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए। उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं से पांच प्रमुख मुद्दों को अपने जीवन में उतारने की अपील की: सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब प्रबोधन, स्व का भाव, और नागरिक अनुशासन।

भागवत ने कहा, "जहां संघ का काम प्रभावी है, वहां मंदिर, पानी और श्मशान सभी हिंदुओं के लिए खुले होते हैं। हमें समाज का मन बदलते हुए इस दिशा में आगे बढ़ना है।" उन्होंने आगे कहा कि अगले वर्ष संघ अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा है और हमें इस बात को समझना होगा कि संघ की कार्यशैली और उसके विचारों को सही रूप में समाज तक पहुंचाना है।

समाज में बदलाव की अपील  सरसंघचालक ने बताया कि हिंदू धर्म वास्तव में मानव धर्म है और इसके मूल्यों में सभी के कल्याण की भावना निहित है। "हिंदू धर्म का अर्थ है, विश्व का सबसे उदार मानव, जो सभी के प्रति सद्भावना रखता है," उन्होंने कहा। साथ ही उन्होंने हिंदू समाज के दायित्व को भी रेखांकित किया कि यह समाज इस राष्ट्र का कर्ताधर्ता है और राष्ट्र की उन्नति या गिरावट इसी समाज पर निर्भर करती है।

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में संघ की पहल  
पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए भागवत ने कहा कि हिंदू परंपरा प्रकृति में हर जगह चैतन्य देखती है, और इसलिए पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें अपने जीवन में छोटी-छोटी पहल करनी चाहिए। "पानी बचाओ, पौधे लगाओ, अपने घर को हरित बनाओ, और सामाजिक रूप से अधिक पेड़ लगाओ," उन्होंने कहा।

कुटुंब प्रबोधन की अहमियत   नए माध्यमों के दुरुपयोग से पारिवारिक संस्कारों पर पड़ रहे खतरे का जिक्र करते हुए संघ प्रमुख ने परिवार के सदस्यों को सप्ताह में एक बार एकत्रित होकर संस्कारों को मजबूत करने की बात कही। उन्होंने कहा कि "कुटुंब में भजन-पूजन और साथ में भोजन करने की परंपरा से नई पीढ़ी अपने मूल्यों को फिर से आत्मसात कर सकेगी।"

स्वदेशी अपनाने और मितव्ययता पर जोर   स्वदेशी उत्पादों के उपयोग और मितव्ययता को लेकर भागवत ने कहा कि हमें अपने जीवन में स्वदेशी वस्त्र और सामानों को प्राथमिकता देनी चाहिए और जो भी खरीदें, उसे अपनी शर्तों पर खरीदना चाहिए। साथ ही उन्होंने समाज सेवा को अपना कर्तव्य मानते हुए उसे जीवन का अहम हिस्सा बनाने की अपील की।

2842 स्वयंसेवकों की भागीदारी   इस कार्यक्रम में संघ के चार उपनगरों की 40 बस्तियों से 2842 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। भागवत के संबोधन ने न केवल स्वयंसेवकों बल्कि समूचे समाज को सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और राष्ट्र निर्माण के प्रति प्रेरित किया।

आगे की राह   डॉ. भागवत के भाषण से स्पष्ट है कि संघ का ध्यान सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और पारिवारिक मूल्यों को सुदृढ़ करने पर केंद्रित है। उन्होंने स्वयंसेवकों से इन सिद्धांतों को अपनाकर समाज में व्यापक परिवर्तन लाने की अपील की। 

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