न्यायालयों में मुकदमों की सुनवाई में तारीख पे तारीख वाली संस्कृति खत्म हो : सीजेआइ

मुख्य न्यायाधीश ने न्यायाधीशों से कहा, न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या कम होनी चाहिए और सामान्य स्थिति कायम होनी चाहिए।

Mar 3, 2024 - 22:32
Mar 4, 2024 - 12:18
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न्यायालयों में मुकदमों की सुनवाई में तारीख पे तारीख वाली संस्कृति खत्म हो : सीजेआइ

न्यायालयों में मुकदमों की सुनवाई में तारीख पे तारीख वाली संस्कृति खत्म हो: सीजेआइ

  • जिला न्यायाधीशों के सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का आह्वान
  • कहा, तभी लोगों का सोच बदलेगा और न्यायपालिका की छवि सुधरेगी

न्यायालयों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि मुकदमों की सुनवाई में तारीख पे तारीख वाली संस्कृति खत्म होनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने न्यायाधीशों से कहा, न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या कम होनी चाहिए और सामान्य स्थिति कायम होनी चाहिए। इसके लिए न्यायाधीशों को महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी होगी।

The gap he maintained: The dichotomy between CJI Chandrachud's statements  and judgements in 2023

गुजरात के कच्छ में जिला न्यायाधीशों के अखिल भारतीय सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश ने कहा, न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या इस समय न्यायपालिका के लिए बड़ी चुनौती है। क्योंकि न्याय प्रशासन से अपेक्षा होती है कि वह कानूनी विवादों का उचित समयसीमा में निस्तारण करे। कहा, न्याय की अपेक्षा लेकर न्यायालय में आने वाले आम आदमी की सोच बन गई है कि मामलों को लंबित रखना न्यायपालिका की कार्यप्रणाली का हिस्सा है। लेकिन जब भी सुनवाई के लिए तारीख दी जाती

है तो उसके हृदय को चोट लगती है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, आम आदमी का सोच को बदलने की जिम्मेदारी हमारी है। हमें अपनी कार्यशैली में बदलाव करके लंबित मामलों को जल्द निपटाने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए। इससे न केवल आम आदमी का कल्याण होगा बल्कि न्यायपालिका के प्रति उसके विश्वास में बढ़ोतरी होगी। इससे

From CJI Ranjan Gogoi’s autobiography.

न्यायपालिका की भूमिका भी प्रभावी और बेहतर होगी।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, निर्णय लेते समय हमें इंटरनेट मीडिया पर होने वाली टिप्पणियों और विभिन्न तरह की अपीलों के प्रभाव में नहीं आना है। हमें किसी तरह के बाहरी दबाव और जनता के रुख से भी प्रभावित नहीं होना है। हमें संविधान की मूलभावना के अनुरूप कानूनी प्रविधानों के अनुसार ही अपना फैसला देना है। हम ऐसे समय में काम कर रहे हैं जब सामाजिक जीवन में तकनीक का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। तमाम मामलों में न्यायाधीशों को निर्णय के बाद इंटरनेट मीडिया पर आलोचना झेलनी पड़ रही है। इसलिए हमें बहुत सोच-समझकर और किसी तरह के दबाव में आए बगैर मुकदमों का निस्तारण करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि अदालतों में वर्षों से लंबित मुकदमों के बढ़ते बोझ को लेकर सरकार और न्यायापालिका स्तर पर समय-समय पर चिंता जताई जाती रही है। इसके बावजूद समस्या का कोई ठोस समाधान सामने नहीं आया है।

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