सनातन है सर्पों की दिव्यता

चौथी सदी में अमर सिंह द्वारा लिखे ग्रंथ अमरकोष में सर्प के लिए 37 नाम आए हैं, जिनमें भुजंग, अहि, उरग और पन्नग जैसे प्रसिद्ध नाम हैं। एक नाम है चक्षुःश्रवा, जिसका अर्थ है आंखों से सुनने वाला जीव ।

May 6, 2024 - 17:10
May 7, 2024 - 07:30
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सनातन है सर्पों की दिव्यता
सर्प को रक्षक और संरक्षक के रूप में देखा गया है।

शास्त्री कोसलेंद्रदा, लेखक

गुजरात की एक कोयला खदान में 2004 में पाए गाए जीवाश्म पर किए लंबे अध्ययन और शोध के बाद वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों यह निष्कर्ष निकाला है कि वह जीवाश्म सांप की कोई दुर्लभ प्रजाति है, जो कभी भारत में उत्पन्न हुई थी। यह जीवाश्म वासुकि नामक रार्ष से जुड़ा है, जिसे माला के रूप में भगवान शिव अपने गले में धारण करते हैं।

चक्षुः श्रवा भी है नाम
चौथी सदी में अमर सिंह द्वारा लिखे ग्रंथ अमरकोष में सर्प के लिए 37 नाम आए हैं, जिनमें भुजंग, अहि, उरग और पन्नग जैसे प्रसिद्ध नाम हैं। एक नाम है चक्षुःश्रवा, जिसका अर्थ है आंखों से सुनने वाला जीव। यहां बताया गया है कि अजगर, जल में रहने वाले, बिना विषैले, विषाक्त और रंग-बिरंगे होने से सांपों के अनेक प्रकार हैं। महाभारत की एक कथा के अनुसार कुशा को चाट लेने से सांप दो जीभ वाले हो गए।

सांपों के हैं रूप अनेक
विभिन्न सांस्कृतिक कथाओं में सर्पो को अच्छे और बुरे, दोनों रूपों में चित्रित किया गया है। सर्प को रक्षक और संरक्षक के रूप में देखा गया है। गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी प्रतिमाओं में एक सांप द्वारा संरक्षित दिखाए जाते हैं और सर्प अपने फन से उन पर छत्र भी बनाते हैं। अनेक पुरातन मंदिरों में सर्पाकृति बनी हुई है, जिन्हें खजाने के रक्षक के रूप में चित्रित किया गया है।

समुद्र मंथन में वासुकि
पुरातन आख्यान है कि महादेव के गले में लिपटा वासुकि एक दिव्य नाग है, जिसे भगवान शिव ने आभूषण के रूप में चुना था। माता कद्रु के पुत्र वासुकि के बड़े भाई शेषनाग शैवारूप में हैं, जिन पर क्षीरसागर में भगवान विष्णु लेटे हुए हैं। जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए सागर के मंथन की योजना बनाई तो उन्होंने वासुकि सर्प की रस्सी के रूप में उपयोग में लिया। वासुकि मंदर पर्वत के चारों ओर लिपट गए, जिन्हें एक छोर से देवताओं ने और असुरों ने दूसरे छोर से पकड़ लिया।

वेदों में उल्लेख
भारत में सर्प-पूजन का आरंभ कब हुआ, यह कहना एक कठिन समस्या है। ऋग्वेद में इस विषय में कोई संकेत नहीं मिलता। इतना अवश्य आया है कि देवराज इंद्र अति-शत्रु यानी सों के नाशक हैं। वहां अति- हत्या की चर्चा हुई है। बृहदारण्यक उपनिषद में सांप (पादोदर जिसके पांव शरीर के भीतर होते हैं) के केंचुल का उल्लेख है। अथर्ववेद में तक्षक एवं धृतराष्ट्र रापों के नाम आए हैं। काठकसंहिता ने पित्तरों, सपों, गंधवों, जल एवं ओषधियों को पंचजन कहा है।

गीता में भी है जिक
भगवद्गीता में परमात्मा श्रीकृष्ण ने अपने को सर्पो में वासुकि तथा नागों में अनंत कहा है। सर्प एवं नाग में क्या अंतर किया गया। यह रपट नहीं हो पाता। संभवतः सर्प शब्द सभी रेगने वाले जीवों तथा नाग फण वाले सांप के लिए प्रयुक्त है।

नागकन्या से अर्जुन का विवाह
आश्वलायन-गृह्यसूत्र, पारस्कर गृह्यसूत्र एवं अन्य गृहासूत्रों में श्रवण की पूर्णिमा को सर्पचलि कृत्य किए जाने का विधान है। महाभारत में नागों का उल्लेख है। अर्जुन ने जब 12 वर्ष का
ब्राह्मचर्य व्रत धारण लिया था तो ये नागों के देश में गए और अपनी और आकूट नागकुमारी उलूपी से विवाह किया। अश्वमेध के अश्व की रक्षा में आए हुए अर्जुन से मणिपुर में चित्रांगदा के पुत्र बभ्रुवाहन ने युद्ध किया और अर्जुन को मार डाला। तब अर्जुन संजीवन रख से पुनजीवित किए गए। सपों का संबंध भगवान विष्णु और भगवान शिव, दोनों से है। विष्णु शेष नाग के फण की तैया पर सोते है और शिव नागी को गले में यशोवणीत के रूप में धारण करते हैं। महाभारत के अनुसार आरतीक मुनि का नाम लेने पर सर्प नहीं काटते हैं। आस्तीक मुनि के माना और पिता, दोनों का नाम जरत्कारुवा। राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ में इन्होंने सपों की जलने से बचाया था।

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।