RSS के कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी का विश्लेषण

RSS पर अब तक तीन बार बैन लग चुका है—पहली बार गांधी की हत्या के बाद, दूसरी बार आपातकाल के दौरान, और तीसरी बार बाबरी विध्वंस के समय। इन बैन के बावजूद, संघ की गतिविधियों पर से प्रतिबंध हटा लिया गया था

Jul 24, 2024 - 17:49
Jul 24, 2024 - 19:40
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RSS के कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी का विश्लेषण

RSS के कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी  एक विश्लेषण

हाल ही में मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में आधिकारिक तौर पर भाग लेने की अनुमति दे दी है। यह निर्णय संघ के शताब्दी वर्ष की तैयारी के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस निर्णय के राजनीतिक और प्रशासनिक मायने क्या हैं, आइए उन्हें विस्तार से समझते हैं।

1. प्रशासनिक ढांचे में संघ की एंट्री

इस फैसले से संघ की पहुंच केवल राजनीतिक ढांचे तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि प्रशासनिक ढांचे में भी बढ़ेगी। वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा के अनुसार, संघ की राजनीतिक पहुंच 1950 में ही स्थापित हो गई थी, जब जनसंघ का गठन हुआ था। अब सरकारी कर्मचारियों की संघ के कार्यक्रमों में शिरकत की अनुमति मिलने से संघ की पहुंच प्रशासनिक स्तर पर भी बढ़ेगी।

पहले, सरकारी कर्मचारी संघ के कार्यक्रमों में निजी रूप से शामिल होते थे, लेकिन अब वे खुलेआम संघ की गतिविधियों में भाग ले सकेंगे। इसका सीधा असर संघ की नेटवर्किंग पर पड़ेगा, जिससे संघ को अपने विचारों को लागू करने में आसानी होगी। इसके अलावा, इस फैसले से प्रशासनिक ढांचे में संघ के विचारों को फैलाना आसान होगा, क्योंकि भारत की कार्यपालिका में ब्यूरोक्रेसी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

2. स्वीकार्यता में वृद्धि

RSS पर अब तक तीन बार बैन लग चुका है—पहली बार गांधी की हत्या के बाद, दूसरी बार आपातकाल के दौरान, और तीसरी बार बाबरी विध्वंस के समय। इन बैन के बावजूद, संघ की गतिविधियों पर से प्रतिबंध हटा लिया गया था, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों से दूर रहने का आदेश अब तक लागू था।

सरकारी कर्मचारियों पर से बैन हटने से संघ की स्वीकार्यता में वृद्धि होगी, विशेष रूप से उन वर्गों में जो देश के निर्णय निर्माण प्रक्रिया में शामिल हैं। संघ इस साल अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी कर रहा है, और वह नहीं चाहता कि इस अवसर पर कोई प्रतिबंध उसकी राह में रुकावट बने।

इस आदेश के माध्यम से संघ की कोशिश है कि वह भारतीय लोकतंत्र में सभी वर्गों में आसानी से स्वीकार किया जाए। इससे संघ को अपने शताब्दी वर्ष की तैयारी में भी मदद मिलेगी, और वह नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार कर सकेगा।

संघ को मिलने वाले लाभ

  1. शाखाओं की संख्या में वृद्धि: संघ की योजना 2025 तक 1 लाख शाखाएं स्थापित करने की है। वर्तमान में संघ की 73 हजार शाखाएं हैं। सरकारी कर्मचारियों पर से बैन हटने से संघ को शाखाओं की संख्या बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

  2. कर्मचारी संख्या तक पहुंच: भारत में केंद्रीय स्तर पर 33 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। राज्यों के कर्मचारियों को जोड़ने पर यह संख्या 1 करोड़ से ज्यादा हो जाती है। इस आदेश से संघ के लिए इन कर्मचारियों तक पहुंचना आसान होगा।

  3. दलित वर्ग में पैठ: सरकारी नौकरी में करीब 17 प्रतिशत दलित हैं। संघ लंबे समय से दलित वर्ग में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है। इस आदेश के बाद संघ को दलित वर्ग को साधने में आसानी हो सकती है।

सरकारी कर्मचारियों की संघ के कार्यक्रमों में भागीदारी की अनुमति देने का यह निर्णय संघ की रणनीतिक पहल के तहत आता है, जिसका उद्देश्य न केवल अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना है बल्कि प्रशासनिक ढांचे में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराना है। यह निर्णय संघ के शताब्दी वर्ष की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और भारतीय राजनीति तथा प्रशासन में संघ की स्थिति को मजबूत कर सकता है।

आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) पर तीन बार बैन लग चुका है:

  1. 1948: पहले बैन का कारण महात्मा गांधी की हत्या थी। हत्या के बाद, संघ पर आरोप लगा कि उसमें शामिल लोगों ने गांधीजी की हत्या की साजिश की थी। इस बैन के बाद संघ को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था, लेकिन इसे कुछ समय बाद फिर से अनुमति मिल गई थी।

  2. 1975: दूसरे बैन का कारण आपातकाल (Emergency) था, जिसे इंदिरा गांधी द्वारा लागू किया गया था। इस दौरान, संघ के नेताओं और कार्यकर्ताओं को राजनीतिक गतिविधियों और संघ के कार्यों को सीमित करने के लिए दबाया गया। आपातकाल के खत्म होने के बाद, संघ ने फिर से अपनी गतिविधियों को शुरू किया।

  3. 1992: तीसरे बैन का कारण बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराना था। संघ के सदस्य और अन्य हिंदू संगठनों द्वारा इस ढांचे को गिराने के बाद, देशभर में विवाद और हिंसा फैली। इसके परिणामस्वरूप, संघ की गतिविधियों को कुछ समय के लिए नियंत्रित किया गया।

ये बैन आमतौर पर राजनीतिक और सामाजिक कारणों से लगाए गए थे, और हर बार संघ ने अपनी गतिविधियों को पुनः शुरू किया और संगठन को सक्रिय किया।

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