संस्कृति के लिये अब कुछ तकनीक को 'न' भी कहना पड़ेगा : सुनील जी आम्बेकर

संस्कृति के लिये अब कुछ तकनीक को 'न' भी कहना पड़ेगा : सुनील जी आम्बेकर, Now we will have to say some technology for sake culture Sunil ji Ambekar,

Jan 28, 2025 - 14:12
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संस्कृति के लिये अब कुछ तकनीक को 'न' भी कहना पड़ेगा : सुनील जी आम्बेकर
प्रयागराज महाकुम्भ में "सनातन संस्कृति में समाहित समष्टि कल्याण के सूत्र" विषयक संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर जी ने कहा कि, सन्तों का आशीर्वचन, सत्संग हम लोगों के लिए हमेशा ही सौभाग्य का विषय रहता है। मनुष्य जीवन में हम सब पराक्रम व पुरुषार्थ तो कर सकते हैं परन्तु सद्बुद्धि का विवेक संतो की कृपा के बिना प्राप्त नहीं होता। उस सद्बुद्धिपूर्ण विवेक के लिए गुरुओं का संतों का आशीर्वाद और उनके सत्संग यह हमेशा आवश्यक होते हैं। भारतवर्ष में संतों की एक लम्बी परम्परा चलती आयी है कि संत हमारे समाज में अत्यंत आदरणीय व्यक्तित्व हैं। सनातन संस्कृति के बारे में जब बात करते हैं तो मुझे लगता है कि अपने त्यागपूर्ण संतो की परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण है। हजारों वर्ष के बीते काल प्रवाह में कितने भी संकट आए, कितने भी उतार चढ़ाव आए परन्तु इस धारा को निरन्तर बनाए रखने में आपका परम व साधना हमारी संस्कृति के लिए ईश्वर की देन है। आप भारत में जन्मे जितने भी मत-संप्रदाय हैं जब हम उनमें से किसी के भी वचन सुनेंगे वे किसी के विरोध में नहीं है बल्कि वे समाज को जोड़ने वाले हैं। हम कैसे एक तत्व हैं, हमारा आपस में क्या परस्पर संबंध है और हमारा एक दूसरे से क्या जुड़ाव है इसको ही इंगित करते हैं।
आम्बेकर जी ने कहा कि, पीढ़ियों के संतों की परम्परा के वचन जब हम सुनेंगे तो दिखेगा कि, जब-जब देश में परम्परा और मानव स्वभाव के कारण विस्मृति आने लगी, तब-तब हमारी सनातन संस्कृति के उस उच्च भाव और विशेषताओं को जागृत रखने का काम इस संत परम्परा ने किया है। इस परंपरा को आधार के साथ बचाए रखने का काम अपने पूर्वजों ने भी किया है। पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे पूर्वजों ने इस त्याग के भाव को सँजोकर रखा कि यदि संत इतना त्याग कर रहे हैं तो हर गृहस्थ को भी अपने जीवन में कुछ न कुछ अंश त्याग का रखना चाहिए। समाज में यह प्रवृत्ति संतों की प्रेरणा के कारण लगातार बनी रही। इसके परिणाम स्वरुप पूर्ण सम्पन्नता के काल में भी हमारे देश का चरित्र विश्व कल्याण का रहेगा। दुनिया भर में रहने वालों के प्रति पराक्रमी भारतीय शासन की दृष्टि सद्भाव की रही है।
आज जिनको हम दुनिया के बड़े-बड़े और संपन्न देश कहते हैं उन्होंने अपने संपन्नता के काल में भी किसी ने दुनिया भर में किसी को गुलाम बनाया, तो किसी ने दुनिया को आर्थिक दृष्टि से लूटा, तो किसी ने दूसरे राष्ट्रों को परास्त करते हुए अत्याचारी शासन किया, तो किसी ने दूसरे की धर्म, संस्कृति और परंपरा को नष्ट करने का काम किया। इसीलिये कुछ मत पंथ सम्प्रदाय जिनका जन्म भारत में नहीं हुआ, जब वे आज भी दुनिया में जाते हैं तो उन्हें कहना पड़ता है कि हमारे कुछ यहां आये थे जिन्होंने अच्छा व्यवहार नहीं किया, जिसके लिए हम माफी माँगते हैं। दुनिया के कुछ देशों के प्रमुख आज भी जब दूसरे देशों में जाते हैं तभी क्षमा मांगते हैं। लेकिन भारत के हजारों वर्ष के इतिहास में किसी मत-पंथ-संप्रदाय के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया गया कि हमारे राष्ट्र के किसी व्यक्ति को दुनिया में जाकर किसी के सामने कहना पड़े की इतिहास में हमारे द्वारा गलती हुई है हमें क्षमा करें। यह प्रवृत्ति जो बनी रही उसमें संतों का बड़ा योगदान है।
आम्बेकर जी ने कहा कि, कोरोना के काल में जब दुनिया में दवाइयां के प्रतिस्पर्धा चल रही थी उसे समय भी हमारे देश भारत ने आवश्यकता अनुसार दूसरे देशों को भी वैक्सीन दी और इसका भारत में किसी ने विरोध भी नहीं किया। उस समय भारत सरकार और भारत का मन एक ही था। भारत पुन: एक समृद्ध देश बन रहे हैं। राजनीतिक दृष्टि से पूरी दुनिया में हमें वह मान्यता मिल रही है। आर्थिक और सैन्य दृष्टि से हम पुन: एक बार सुजलाम सुफलाम परम वैभव की स्थिति में पहुँच रहे हैं। जब अभाव था तब हमारे पास अवसर कम थे और जब आज नए-नए प्रकार की तकनीक और विषय वस्तु हमारे सामने हैं तो ऐसे समय अधिक आवश्यकता है हम अपनी सद्प्रवृत्ति को बनाए रखें। हम प्रभावशाली व्यक्ति, प्रभावशाली परिवार, प्रभावशाली समाज और प्रभावशाली राष्ट्र बनें परन्तु हमारी सद्प्रवृत्ति बनी रहे। इसीलिए हमें आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक यात्रा को भी मजबूती के साथ आगे बढ़ाना आवश्यक है। इसके लिए हर मोर्चे पर हमें कार्य करना आवश्यक है और इसमें संतों का मार्गदर्शन हर दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
हमारे यहां बहुत से ज्ञान की उत्पत्ति हुई। यह ज्ञान हमारे अभाव या अस्तित्व के खतरे और जीवन संघर्ष में काल में उत्पन्न नहीं हुआ, जब हम सभी तरीके से संपन्न थे और मन में एक आश थी कि पूरे विश्व और सृष्टि का कल्याण होना चाहिए। उस सृष्टि के कल्याण का मार्ग क्या होगा-- इसकी खोज में हमारे देश की ज्ञान संपदा, परंपरा और विधायें उत्पन्न हुईं। हजारों वर्ष पहले हमारे गुरुओं की साधना से उत्पन्न योग आज आधुनिक से आधुनिक और विकसित से विकसित देश को भी आवश्यक प्रतीत हो रहा है। हमारे ज्ञान में एकत्व का सूत्र दिया कि आपके अंदर भेद नहीं है आप दिखने में आपका स्वभाव अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन आप सभी के अन्दर ईश्वर का एकत्व है और उसकी धारा को हमारे ऋषि मुनियों ने पहचाना।
एकत्व और अपनत्व के भाव के कारण सबको साथ लेकर चलने की हमारी परंपरा है। बाजार हमारे यहां भी थे लेकिन आज संस्कृति के आधार पर बाजार नहीं बल्कि बाजार के आधार पर हमारी संस्कृति तय हो रही हमने टेक्नोलॉजी के आधार पर अपनी संस्कृति परंपराओं से समझौते किए हैं। आज चुनौती है कि क्या हमारी संस्कृति बाजार और तकनीकी के आधार पर तय होगी? अभी तक हम हर तकनीक को 'हां' ही कहते आए हैं लेकिन अब कुछ तकनीक को 'न' भी बोलना पड़ेगा और न बोलते समय हमें यह भी सोचना पड़ेगा कि आने वाले समय में हमें आगे बढ़ना होगा तो नई तकनीक कैसी हो, नये बाजार कैसे हों? मानवता के कल्याण के लिए ऐसा करते समय हमारे भारत की संस्कृति के अनुसार बढ़ना होगा।
ऐसे समय में परिवार की बड़ी भूमिका है। आज वैवाहिक और पारिवारिक संकट दुनिया में उत्पन्न हुए हैं और उसका प्रभाव आज हमारे देश में भी दिख रहा है। आज एक का तो और प्रेम को परिवार में बढ़ाने के लिए दुनिया के लोग हमारी ओर देखते हैं। प्रेम और एक तत्व के सूत्र हमारी सनातन संस्कृति में ही मिलते हैं।
आज पर्यावरण चिंता की बात पूरी दुनिया में चल रही है लेकिन हम तो पंचतत्व के साथ चलने की बात करते रहे हैं। हम पर्यावरण के तत्वों के साथ जीवन जीने की परंपरा वाले रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के कार्य यदि मानव जीवन को ही केंद्रित रखकर किए जाएंगे तो यह स्थाई समाधान नहीं होगा?
हमारी गुरु परंपरा, हमारे सद्ग्रंथ, हमारे तीर्थ और पर्व पूरे भारत को जोड़ने वाले हैं; यह महाकुंभ भी हमको जोड़ने वाला है अतः इन सब की रक्षा होना जरूरी है।
इस अवसर पर जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज, स्वामी परमात्मानंद जी महाराज समेत उपस्थित सन्तगण व विद्वतवृंद।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,