श्री फखरुद्दीन अली अहमद

खरुद्दीन के पिता जी भारतीय सेना की चिकित्सा-सेवा में काम करते थे

Mar 19, 2024 - 22:08
Mar 19, 2024 - 22:10
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श्री फखरुद्दीन अली अहमद

श्री फखरुद्दीन अली अहमद


२४ अगस्त सन् १९७४ को देश के पांचवे राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले श्री फखरुद्दीन अली अहमद का जन्म १३ मई सन् १९०५ को हुआ था। उनका परिवार मूलतः आसाम के गोलाघाट क्षेत्र के करबरि हाट का निवासी था। परन्तु श्री फखरुद्दीन के पिता जी भारतीय सेना की चिकित्सा-सेवा में काम करते थे, अतः अकसर उनका ट्रान्सफर हुआ करता था। इसलिए अहमद साहब की शिक्षा-दीक्षा देश के विभिन्न भागों में हुई।

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श्री अहमद की प्रारम्भिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हुई। जिस समय अहमद साहब राजकीय हाई स्कूल गोंडा में सातवीं कक्षा में पढ़ रहे थे उनके पिता कर्नल अहमद का स्थानान्तरण हो गया और बालक फखरुद्दीन भी उनके साथ दिल्ली पहुँच गये। उन्होने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद श्री फखरुद्दीन साहब स्टीफेन्स कालेज दिल्ली में भरती हुए। थोड़े दिनों बाद ही उन्हे विदेश जाने का अवसर मिला, जिससे लाभ उठाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंगलैण्ड चले गये। वहां उन्होने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सेन्ट कैथरीन्स कालेज में दाखिला लिया। सन् १९२७ में बी० ए० पास करने के बाद उन्होंने कानून की शिक्षा प्राप्त की।


सन् १९२८ के अन्त में अहमद साहब भारत लौटे और उन्होंने पंजाब उच्ब न्यायालय में वकालत शुरू की। परन्तु शीघ्र ही कर्नल अहमद का एक बार फिर ट्रान्सफर हुआ और फखरुद्दीन साहब को आसाम जाना पड़ा। वहाँ भी थोड़े ही दिन रहकर वकालत करने की मंशा से कलकत्ता चले गये, जहाँ उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की।जहाँ तक समाज-सेवा का ताल्लुक है फखरुद्दीन साहब बबपन से ही दीन-दुखियों की सहायता करने में रुचि लेने लगे थे। सन् १९३१मे वे सक्रिय राजनीति में आये। सन् १९३५ में उन्होंने आसाम विधान-मण्डल का चुनाव जीता। सन् १९३८ में श्री गोपीनाथ बारदलोई के मुख्य-मंत्रित्व में बने कांग्रेस मंत्रिमण्डल में उन्होंने वित्त एवं राजस्व मंत्री का पद ग्रहण किया।

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद - विकिपीडिया
इस सुअवसर का उन्होने पूरा लाभ उठाया और जनता की भरपूर सेवा की। गरीब किसानों की दशा सुधारने वाले अनेक क्रान्तिकारी कदम उन्होंने उठाये। आसाम के किसानों का मालगुजारी महसूल (लगान) उन्होने एकदम आधा कर दिया और बड़े किसानों पर कृषि-आय-कर लगाया। इन सब कामों से अहमद साहब की लोकप्रियता में चार-चाँद लग गये।
सन् १९४० मे जब महात्मा गांधी ने पूरी आजादी के लिए 'सत्याग्रह आन्दोलन' शुरू किया तो सारे देश मे जागरण की नयी लहर दौड़ गयी। श्री फखरुद्दीन भी उसमें शरीफ होकर जेल गये। साल भर बाद जेल से छूटे ही थे कि फिर से गिरफ्तार कर लिये गये। इस बार वे साढ़े तीन वर्ष तक नजरबन्दी में रखे गये और सन् १९४५ में जेल से रिहा हुए।


सन् ४५ से ६२ तक वे कांग्रेस में रहकर विभिन्न रूपों में देश की सेवा करते रहे। सन् १९६२ में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस की कार्य-समिति और कांग्रेस संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया। धीरे-धीरे अहमद साहब एक राष्ट्रीय नेता के रूप में जाने- माने लगे। और राष्ट्रीय स्तर के अनेक पदों पर सफलतापूर्वक काम करने के बाद अहमद साहब अगस्त सन् १९७४ में देश के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित किये गये यानी वे राष्ट्रपति बने।


श्री अहमद सन् १९३१ से लेकर अपने जीवन की अन्तिम घड़ी तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। कांग्रेस हाई- कमान में भी उनका हमेशा महत्वपूर्ण स्थान रहा। यह और बात है कि जीवन के आखिरी दिनों में कांग्रेस के कुछ नेताओं के क्रिया-कलापों से वे थोड़ा दुखी हो गये थे। फिर भी उन्होंने अपनी पार्टी और उसके नेताके प्रति वफादारी निभाई और खुलकर कभी कुछ नहीं कहा।
फखरूद्दीन साहब एक सच्चे मुसलमान थे फिर भी उनमे कठमुल्लापन न था। वे उदार और सच्चे इन्सान थे। वे सभी धर्मों का समान आदर करते थे। ईद हो या होली-दोनों त्योहारों को वे समान सुख और उल्लास से मानते थे। वे जनतंत्र के कट्टर समर्थक थे। वे सत्यनिष्ठ और दृढ़व्रती थे। देश के प्रति उनकी निष्ठा उच्च कोटि की थी। कर्तव्य परायणता तो उनके स्वभाव का अंग बन गयी थी।
श्री अहमद हमेशा मीठी बानी बोलते थे। अपनी आलोचना भी शान्तिपूर्वक सुनते थे। विरोधी की सही बातों को मान लेने से परहेज नहीं करते थे। फलस्वरूप विरोधी दलों के नेता भी उनके पास निस्संकोच आते और सलाह-मशविरा करते थे। दरअसल अहमद साहब इतने नेकदिल इन्सान थे कि किसी का भी दिल दुखाना पाप समझते थे।


अहमद साहब खेल-कूद में पर्याप्त दिलबस्पी रखते थे । खिलाड़ी-भावना, जिसे अंग्रेजी में 'स्पोर्टस्मैनस्पिरिट' कहते हैं, उनमें कूट-कूट कर भरी थी। वे हर खेल से प्यार करते थे और हार-जीत के नतीजों से ऊपर उठकर सिर्फ खेल-भावना से खेलना पसन्द करते थे। विरोधी टीम के अच्छे खिलाड़ी की भरपूर तारीफ करते थे।


देश में खेल-कूद के प्रचार-प्रसार के लिये उन्होंने जो कुछ किया वह शायद ही किसी दूसरे नेता ने किया हो। वैसे तो उन्हें हर खेल से प्यार था परन्तु 'लान-टेनिस', 'फुटबाल' और 'क्रिकेट'

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