गीता जयंती 11 दिसंबर 2024, Geeta Jayanti 11 December 2024, श्रीमद्भगवद्गीता

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गीता जयंती 11 दिसंबर 2024, Geeta Jayanti 11 December 2024, श्रीमद्भगवद्गीता

गीता जयंती 2024: भगवद गीता का महत्व, तिथि, पूजा विधि और उत्सव

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गीता जयंती हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे श्री मद्भगवद्गीता के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 11 दिसंबर 2024 को मनाया जा रहा है। गीता जयंती का संबंध महाभारत के उस महान क्षण से है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में धर्म, कर्म और ज्ञान का दिव्य उपदेश दिया था। गीता जयंती का सारांश गीता जयंती 11 दिसंबर को श्रीमद्भगवद्गीता के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य उपदेश की स्मृति में मनाया जाता है। गीता में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से जीवन के हर पहलू का मार्गदर्शन दिया गया है। इस दिन मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर गीता पाठ, भजन-कीर्तन, और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं। कुरुक्षेत्र में विशेष महोत्सव होता है, जहां शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। गीता का संदेश समय-समय पर प्रासंगिक है, जो हमें जीवन की चुनौतियों का सामना धैर्य और ज्ञान से करने की प्रेरणा देता है।

महाभारत में भगवान कृष्ण को गीता का उपदेश क्यों देना पड़ा?

महाभारत का युद्ध केवल दो कुलों का टकराव नहीं था, बल्कि यह दैवी और आसुरी प्रकृति के बीच संघर्ष का प्रतीक था। यही वह क्षण था, जब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का दिव्य ज्ञान दिया। यह उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं, बल्कि मानव जाति के लिए जीवन की गहरी सच्चाइयों और कर्तव्यों का संदेश है।

राज्य के अधिकार की लड़ाई

पांडवों का जन्म क्षत्रिय धर्म के पालन के लिए हुआ था। उनके राज्य को धृतराष्ट्र ने केवल अस्थायी रूप से संभालने के लिए लिया था, लेकिन उन्होंने उसे लौटाने से इनकार कर दिया। दुर्योधन ने पांच गांव देने से भी मना कर दिया। तब श्रीकृष्ण ने युद्ध को एकमात्र विकल्प माना और अर्जुन को धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित किया।

कुरुक्षेत्र का चयन

युद्ध भूमि के लिए श्रीकृष्ण और अर्जुन कुरुक्षेत्र पहुंचे। यहां एक किसान की पत्नी का अपने बच्चे को मेड पर रखकर खेत की रक्षा करने का दृश्य देखकर श्रीकृष्ण ने कहा, "यह भूमि मोह-माया से परे है। यही धर्मयुद्ध के लिए उपयुक्त स्थान है।"

अर्जुन का संशय

युद्ध के आरंभ में, जब अर्जुन ने अपने गुरु, परिवारजन और शुभचिंतकों को सामने देखा, तो वह विचलित हो गए। उन्होंने हथियार डालने और भिक्षा लेकर जीवन यापन करने की इच्छा प्रकट की। अर्जुन का यह पलायनवादी दृष्टिकोण देखकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्मा, धर्म और कर्म के शाश्वत सत्य का उपदेश दिया।

गीता का उपदेश और मुख्य बातें

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को चार महत्वपूर्ण बातें सिखाईं

  1. आत्मा अजर-अमर है – आत्मा न कभी जन्म लेती है, न कभी मरती है।
  2. शरीर नश्वर है – शरीर समय के साथ नष्ट हो जाता है, पर आत्मा शाश्वत है।
  3. धर्म का पालन – अपने धर्म का पालन करना मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य है।
  4. अज्ञान का नाश – ज्ञान के माध्यम से मोह और अज्ञान को समाप्त करना चाहिए।

गीता का अमर संदेश: अर्जुन को श्रीकृष्ण का उपदेश

महाभारत के युद्ध के मैदान में अर्जुन ने अपने शत्रुओं को देखकर जब अपने हथियार डाल दिए और युद्ध से मुंह मोड़ने की बात की, तब श्रीकृष्ण ने उसे जीवन के सत्य का उपदेश दिया। उनका संदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं था, बल्कि समस्त मानवता के लिए था।

आत्मा का अमरत्व

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि आत्मा अजर-अमर है। यह न जन्म लेती है, न मरती है। शरीर मात्र एक वस्त्र की भांति है, जिसे आत्मा समय-समय पर बदलती है। अर्जुन को यह सत्य समझने के लिए कहा गया कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अनंत और शाश्वत है।

शरीर की नश्वरता

उन्होंने बताया कि यह शरीर नश्वर है और समय के साथ नष्ट हो जाता है। जन्म और मृत्यु के बीच शरीर एक माध्यम है, जिसके द्वारा आत्मा अपने कर्मों को निभाती है। शरीर की मृत्यु से घबराना व्यर्थ है, क्योंकि आत्मा सदैव बनी रहती है।

धर्म का पालन

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसके धर्म की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि एक क्षत्रिय का धर्म है न्याय और सत्य की रक्षा करना। अपने धर्म का पालन करना मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।

अज्ञान का नाश

श्रीकृष्ण ने ज्ञान के महत्व को समझाते हुए कहा कि मोह और अज्ञान इंसान को कमजोर बनाते हैं। अर्जुन को अपनी शंकाओं और मोह को त्यागकर ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

इन उपदेशों ने अर्जुन को ना केवल अपना कर्तव्य निभाने की शक्ति दी, बल्कि पूरी मानवता को धर्म, आत्मा, और ज्ञान का सत्य समझाया। श्रीकृष्ण का यह गीता संदेश आज भी जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन करता है।

आत्मा का सत्य और मन का संयम

श्रीकृष्ण ने समझाया कि आत्मा सत्-चित्-आनंद स्वरूप है। इसे जानने के लिए इंद्रियों और मन का संयम आवश्यक है। वैराग्य और निरंतर अभ्यास से मन एकाग्र होता है और ज्ञान की ज्योति अज्ञान का नाश करती है।

क्या गीता उदासीन बनाती है?

गीता के बारे में अक्सर यह भ्रांति है कि इसका अध्ययन व्यक्ति को सांसारिक जीवन से विमुख कर देता है। परंतु गीता व्यक्ति को पलायन नहीं, बल्कि कर्तव्य और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। अर्जुन का उदाहरण यही दर्शाता है कि गीता जीवन संग्राम में मार्गदर्शन करती है, न कि उससे पलायन का।

गीता का सार्वभौमिक महत्व

गीता केवल हिंदू धर्म का ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह मानव मात्र के लिए जीवन का दर्पण है। यह न केवल धर्म के मूल सत्य को उजागर करती है, बल्कि आदर्श और लोक-कल्याणकारी जीवन जीने का मार्ग भी दिखाती है।

भगवान श्रीकृष्ण का गीता का उपदेश केवल अर्जुन के संशय का समाधान नहीं था, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में सही मार्ग चुनने का संदेश है। गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह जीवन जीने की कला और उद्देश्य को समझने का अमूल्य साधन है।

गीता का महत्व

श्रीमद्भगवद्गीता 700 श्लोकों का एक अद्भुत ग्रंथ है, जिसमें जीवन के हर पहलू के लिए मार्गदर्शन दिया गया है। यह न केवल आध्यात्मिक ग्रंथ है, बल्कि इसे जीवन जीने की कला, कर्म का सिद्धांत और आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्गदर्शक भी माना जाता है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निम्नलिखित मुख्य उपदेश दिए:

  1. कर्मयोग: फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना।
  2. भक्तियोग: ईश्वर में पूर्ण विश्वास और समर्पण।
  3. ज्ञानयोग: आत्मा और ब्रह्म के स्वरूप का ज्ञान।

गीता जयंती का उत्सव

गीता जयंती के अवसर पर मंदिरों और आश्रमों में श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ, भजन-कीर्तन और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं। कई स्थानों पर धार्मिक जुलूस और गीता पर आधारित संगोष्ठियों का भी आयोजन होता है।

विशेष आयोजन

इस दिन कुरुक्षेत्र, हरियाणा में भव्य उत्सव आयोजित किए जाते हैं। यहां गीता महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु और विद्वान भाग लेते हैं। गीता के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

गीता का संदेश आज के समय में

गीता का संदेश समय के पार है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना धैर्य और ज्ञान के साथ करना चाहिए। इस आधुनिक युग में गीता का अध्ययन और उसका अनुसरण करना मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने में सहायक है।

गीता जयंती हमें यह याद दिलाती है कि धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना ही वास्तविक जीवन की सफलता है।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार