कंगना रनौत की फिल्म 'इमरजेंसी' के खिलाफ याचिकाएं और विवाद: सिख समुदाय की नाराज़गी और सीबीएफसी

कंगना रनौत की फिल्म "इमरजेंसी" को लेकर देशभर में याचिकाएं दायर की जा रही हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सिख संगठनों ने फिल्म के खिलाफ याचिका दी है, और सीबीएफसी द्वारा फिल्म के प्रमाणीकरण में देरी को लेकर विवाद खड़ा हुआ है।

Sep 4, 2024 - 10:05
Sep 4, 2024 - 10:27
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कंगना रनौत की फिल्म 'इमरजेंसी' के खिलाफ याचिकाएं और विवाद: सिख समुदाय की नाराज़गी और सीबीएफसी
कंगना रनौत की फिल्म

कंगना रनौत की फिल्म "इमरजेंसी" के खिलाफ देशभर में याचिकाएं दाखिल हो रही हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में भी जबलपुर सिख संगत और गुरु सिंह सभा इंदौर ने फिल्म के खिलाफ याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट नरेंद्र पाल सिंह रूपरा ने कोर्ट में दलीलें पेश कीं। सुनवाई के दौरान रूपरा कोर्ट में इमोशनल हो गए और कहा, "मीलॉर्ड, हमारे छोटे बच्चे पगड़ी पहनकर स्कूल जाते हैं, जहां उन्हें खालिस्तानी कहकर चिढ़ाया जाता है।" इस फिल्म को लेकर सिख समुदाय में गहरा आक्रोश है, और वे इसे अपमानजनक मान रहे हैं।

  1. इमरजेंसी' की रिलीज को लेकर बढ़ रहा है विवाद
  2. 6 सितंबर को रिलीज होना था कंगना की फिल्म
  3. सिख संगठन लगातार कर रहे हैं विरोध

कंगना रनौत की फिल्म "इमरजेंसी" की रिलीज़ डेट को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। फिल्म के सह-निर्माता ने बंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें फिल्म की रिलीज़ डेट पर रोक लगाने की मांग की गई है। इस मामले की सुनवाई आज होनी है। यह याचिका उस समय दायर की गई जब फिल्म की रिलीज़ को लेकर असहमति उत्पन्न हुई। कंगना रनौत की यह फिल्म इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित है और इसे लेकर पहले से ही कई विवाद चल रहे हैं।

क्यों लगी थी इमरजेंसी का इतिहास 

भारत में आपातकाल का इतिहास 25 जून 1975 को शुरू हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति और राजनीतिक विरोध के चलते देश में आपातकाल घोषित किया। इस दौरान नागरिक स्वतंत्रता, प्रेस की आज़ादी, और राजनीतिक विरोधियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए। लगभग 21 महीने तक चले इस आपातकाल में हजारों लोगों को बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया, और विपक्षी नेताओं को दबाया गया। आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में देखा जाता है। इसे 21 मार्च 1977 को समाप्त किया गया, जब इंदिरा गांधी ने चुनाव करवाए और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या किसने की थी 

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके अपने ही सुरक्षा गार्ड्स, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह, ने की थी। यह घटना 31 अक्टूबर 1984 को हुई थी। दोनों गार्ड्स ने इंदिरा गांधी पर गोलियां चलाईं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इस हत्या के पीछे का कारण ऑपरेशन ब्लू स्टार था, जिसे इंदिरा गांधी ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से खालिस्तानी आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए आदेश दिया था। इस ऑपरेशन के चलते सिख समुदाय में नाराजगी बढ़ी, और इसी के परिणामस्वरूप इंदिरा गांधी की हत्या हुई।

राजीव गंधी की हत्या किसने की थी 

राजीव गांधी की हत्या 21 मई 1991 को लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) नामक आतंकवादी संगठन द्वारा की गई थी। उनकी हत्या एक आत्मघाती बम विस्फोट के माध्यम से की गई थी, जब वे तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली को संबोधित करने जा रहे थे। हमलावर महिला, जिसका नाम धनु था, ने अपनी कमर पर बम बांध रखा था। जैसे ही उसने राजीव गांधी के पास जाकर उन्हें माला पहनाई, उसने बम विस्फोट कर दिया, जिससे राजीव गांधी सहित 16 अन्य लोगों की भी मौत हो गई। यह हत्या लिट्टे द्वारा उनके खिलाफ भारतीय सैन्य हस्तक्षेप और श्रीलंका में शांति सेना भेजने के प्रति रोष के चलते की गई थी।

सिख दंगे कब और क्यों हुआ थे

सिख दंगे, जिन्हें 1984 के सिख विरोधी दंगों के रूप में भी जाना जाता है, 31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए थे। ये दंगे मुख्य रूप से दिल्ली और भारत के अन्य भागों में सिख समुदाय के खिलाफ हुए थे।

1984 सिख दंगों का मुख्य कारण क्या था 

इंदिरा गांधी ने जून 1984 में "ऑपरेशन ब्लू स्टार" का आदेश दिया था, जिसमें भारतीय सेना ने अमृतसर स्थित सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया और वहां छिपे हुए उग्रवादियों को मार गिराया। इस ऑपरेशन के दौरान मंदिर को नुकसान हुआ और बड़ी संख्या में लोग मारे गए, जिससे सिख समुदाय में भारी नाराजगी फैल गई।

दंगों की शुरुआत कब और क्यों हुआ था यह सब 

31 अक्टूबर 1984 को, इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के बाद, पूरे देश में सिखों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी। खासकर दिल्ली में, सिखों के घरों, दुकानों, और गुरुद्वारों को जलाया गया, और बड़ी संख्या में सिखों को मारा गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इन दंगों में लगभग 2,800 सिख मारे गए थे, जबकि सिख संगठनों के अनुसार यह संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।

दंगों का के कारण  आज सिख भाई   

1984 के सिख दंगे भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय माने जाते हैं। इन दंगों ने देश में सांप्रदायिकता और राजनीति के बीच के संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला। दंगों के बाद कई जांच आयोग बने और कई रिपोर्टें भी आईं, लेकिन न्याय की प्राप्ति में अब भी सिख समुदाय असंतुष्ट है। कई राजनीतिक नेता और अन्य लोग, जिन पर दंगों में शामिल होने का आरोप था, अभी भी कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं।

इन दंगों का भारतीय समाज और राजनीति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा, और यह घटना आज भी कई लोगों के दिलों में गहरे घाव छोड़ गई है।

फिल्म सर्टिफिकेशन विवाद  सीबीएफसी पर अवैध रोक का आरोप

कंगना रनौत की नई फिल्म को लेकर एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया है कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने जानबूझकर फिल्म के प्रमाणीकरण को रोक दिया है। याचिका में दावा किया गया है कि सीबीएफसी सेंसर सर्टिफिकेट के लिए तैयार है, लेकिन इसे अवैध और मनमाने ढंग से जारी नहीं किया जा रहा है।

यह फिल्म 25 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक भारत में लागू किए गए 21 महीनों के आपातकाल पर आधारित है। कंगना रनौत इस फिल्म की डायरेक्टर और प्रोड्यूसर भी हैं। फिल्म के प्रमाणीकरण में हो रही देरी को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है कि यह फिल्म की रिलीज को प्रभावित कर सकती है।

इस मामले की सुनवाई की जिम्मेदारी जस्टिस बी पी कोलाबावाला और जस्टिस फिरदोश पूनीवाला की खंडपीठ ने ले ली है। याचिका की तत्काल सुनवाई की मांग की गई है, जिससे फिल्म के प्रमाणीकरण में हो

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार