छात्रों के लिए बोझ बनी शिक्षा
युवा आबादी निवास करती है। सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि भारतीय युवा विशेषकर किशोर भारी शैक्षणिक दबाव से गुजरते हैं।
छात्रों के लिए बोझ बनी शिक्षा
सृजन पाल सिंह
यदि भारत को अपनी युवा आबादी का लाभ उठाना है तो शिक्षा के तौर-तरीकों और साथ ही युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से ध्यान देना होगा
राजस्थान के कोटा शहर में मेडिकल और इंजीनियरिंग परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के आत्महत्या करने की खबरें थम नहीं रहीं। पिछले दिनों एक दिन के अंतराल से दो छात्रों के आत्महत्या करने की खबर आई। कोटा में इस वर्ष अब क आठ विद्यार्थी अपनी जान दे चुके हैं। 16 साल के ऐसे ही एक लड़के ने आत्महत्या करने के पहले एक नोट छोड़ा, जिसमें लिखा था, 'सारी पापा, आइआइटी नहीं हो पाएगा।' हम नियमित रूप से स्कूली बच्चों, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों और यहां तक कि आइआइटी जैसे शिक्षण संस्थानों में ऐसी घटनाओं के विषय में सुनते रहते हैं, जहां दबाव से निपटने में मुश्किलों का सामना करने के कारण छात्र अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं। नए भारत में बुझते इन युवा दीपकों से अधिक निराशाजनक और कुछ नहीं हो सकता।
हालिया आंकड़ों के अनुसार एक साल में 1,70,000 से अधिक भारतीयों ने आत्महत्या की। वर्ष 2022 में प्रति एक लाख जनसंख्या पर आत्महत्या की दर बढ़कर 12.4 हो गई है। आत्महत्या के मामले में यह अभी तक की सबसे ऊंची दर है। भारत की आत्महत्या दर वैश्विक दर से 20 प्रतिशत अधिक है। भारत में आत्महत्याएं अस्वाभाविक मृत्यु का सबसे बड़ा कारण हैं।
आत्महत्या से होने वाली जनहानि सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों से भी छह गुना अधिक है। और भी चिंताजनक बात यह है कि भारत की युवा पीढ़ी जीवन के दबाव को सहने में भारी कठिनाई महसूस कर रही हैं। हर वर्ष आत्महत्या की मनोवृत्ति ने 10,000 से अधिक ऐसे लोगों को अपनी चपेट में लिया, जिनकी आयु 18 वर्ष से कम रही। यह भी उल्लेखनीय है कि देश में आत्महत्या करने वालों में लगभग 70,000 की आयु 30 वर्ष से कम थी।
निया की सबसे बड़ी युवा आबादी निवास करती है। सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि भारतीय युवा विशेषकर किशोर भारी शैक्षणिक दबाव से गुजरते हैं। हम एक ऐसी शिक्षा प्रणाली में विकसित हो गए हैं, जहां 99 प्रतिशत अंक प्राप्त करना भी किसी छात्र को श्रेष्ठ कालेजों में प्रवेश दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। हाल में मैंने छठी कक्षा के छात्रों के लिए सिविल सेवा परीक्षा की कोचिंग के विज्ञापन देखे। जिस उम्र में बच्चों को सपने देखने चाहिए, हम उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की राह पर धकेल दे रहे हैं।
सृजन पाल सिंह यदि भारत को अपनी युवा आबादी का लाभ उठाना है तो शिक्षा के तौर-तरीकों और साथ ही युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से ध्यान देना होगा
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