डूसू चुनाव 2024: भविष्य की राजनीति के सपनों को साकार करेगा आज का छात्र नेतृत्व
दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनावों की सरगर्मियाँ इस समय अपने चरम पर हैं। 27 सितंबर को चार प्रमुख पदों के लिए मतदान होना है।

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनावों की सरगर्मियाँ इस समय अपने चरम पर हैं। 27 सितंबर को चार प्रमुख पदों के लिए मतदान होना है, और इसके लिए सभी छात्र संगठन पूरी ताकत झोंक रहे हैं। विश्वविद्यालय ने 19 सितंबर को उम्मीदवारों की अस्थायी सूची जारी की, जिसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पदों के लिए कुल मिलाकर 21 उम्मीदवारों का नाम शामिल है। यह चुनाव न केवल छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि संगठनात्मक ढांचे में भी एक नई दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा सबसे पहले करके चुनावी दौड़ में बढ़त बनाने की कोशिश की है। संगठन ने ऋषभ चौधरी को अध्यक्ष पद के लिए, भानु प्रताप सिंह को उपाध्यक्ष के लिए, मित्रविन्दा को सचिव के लिए, और अमन कपासिया को संयुक्त सचिव के लिए नामांकित किया है। एबीवीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने चारों पदों पर जीत का दावा करते हुए अपने संगठन की लोकप्रियता और छात्रों के बीच मजबूत समर्थन का हवाला दिया है। संगठन का आत्मविश्वास इस बात पर आधारित है कि वह लगातार छात्रों के मुद्दों को मुखरता से उठाता आया है।
दूसरी तरफ, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) भी पीछे नहीं है। संगठन ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा करते हुए चारों पदों पर जीत का भरोसा जताया है। एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने संगठन के मैनिफेस्टो को 21 सितंबर को लॉन्च करने की योजना बनाई है, जिसमें छात्र कल्याण के विभिन्न मुद्दों पर विशेष जोर दिया जाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि एनएसयूआई किस प्रकार छात्रों को अपनी ओर आकर्षित करती है और एबीवीपी के साथ इस सीधी टक्कर में कैसा प्रदर्शन करती है।
जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है, दोनों प्रमुख संगठनों के बीच प्रचार-प्रसार की गतिविधियाँ तेजी पकड़ रही हैं। इन चुनावों में छात्रों की भागीदारी को बढ़ाने और अपनी ओर खींचने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। इस वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के करीब एक लाख मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, जिससे इस चुनाव की अहमियत और भी बढ़ जाती है। चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए बैनर, पोस्टर, और छपी सामग्री के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई है, जो एक सराहनीय कदम है।
28 सितंबर को चुनाव परिणामों की घोषणा होगी, और यह दिन छात्र संगठनों के लिए निर्णायक साबित होगा। इस बार के चुनावों की प्रतिस्पर्धा पहले से कहीं अधिक तीव्र है, और उम्मीदवारों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। छात्रों के बीच बढ़ती जागरूकता इस चुनाव को और अधिक महत्वपूर्ण बना रही है, क्योंकि यह न केवल विश्वविद्यालय की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि यह छात्रों के सामूहिक आवाज को भी प्रतिबिंबित करेगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय का राजनीतिक माहौल इस समय अत्यंत रोचक और गतिशील हो गया है। सभी संगठन अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ पूरी तरह से तैयार हैं, और छात्रों की सक्रिय भागीदारी इसे और भी रोमांचक बना रही है। अब सबकी निगाहें 27 सितंबर की मतदान प्रक्रिया पर टिकी हुई हैं, जो यह तय करेगी कि अगला छात्र नेतृत्व किस दिशा में जाएगा।
आशुतोष शर्मा
राजनीतिक विश्लेषक
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