15 अप्रैल को जन्मे कुछ महान व्यक्तित्वों के बारे में जानकारी हैं

तिब्बती धर्मगुरु और विरोधी लीडर, दलाई लामा, भारत में नामित किए गए थे।

Apr 14, 2024 - 22:17
Apr 14, 2024 - 23:06
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15 अप्रैल को जन्मे कुछ महान व्यक्तित्वों के बारे में जानकारी  हैं

15 अप्रैल को जन्मे कुछ महान व्यक्तित्वों के बारे में जानकारी  हैं

  • 1912: RMS Titanic, जो दुनिया का सबसे बड़ा यातायात जहाज था, अपनी पहली यात्रा के दौरान एक आईसबर्ग से टकरा गया।

  • 1989: तिब्बती धर्मगुरु और विरोधी लीडर, दलाई लामा, भारत में नामित किए गए थे।

  • 2013: दुर्भाग्यपूर्ण दिन के रूप में जाना जाता है, क्योंकि बॉस्टन में मराठवाड़ा हुआ।

  • 2019: नोट्र डैम से ब्रेडिंग बारिज का पानी छोड़ने की वजह से न्यूजीलैंड के तायरा के पास एक बड़ा आपात संघटित हो गया था।

15 अप्रैल को इन घटनाओं का उल्लेख आज के इतिहास में किया जाता है।

  1. लेओनार्दो डा विंची - इतालवी कलाकार, वैज्ञानिक, अविष्कारक

लेओनार्डो डा विंची (Leonardo da Vinci) एक अद्वितीय प्रतिभा थे, जिनका जीवन 15वीं और 16वीं सदी के इतालवी कलाकार, वैज्ञानिक, अविष्कारक के रूप में बेहद प्रभावशाली रहा। उनका जन्म 1452 में विंची, इटली में हुआ था और उनकी मृत्यु 1519 में फ्रांस में हुई।

वह एक रोमांचक कलाकार, अविष्कारक, वैज्ञानिक, इंजीनियर, लेखक और मुद्राकर्ता थे। उनके जीवन के दौरान, वे कार्यकर्ता मानव आत्मचिंतन, विज्ञान, शिल्प, शास्त्र, अध्ययन और प्राकृतिक विज्ञानों में अनुसंधान करते रहे।

उनका प्रसिद्धतम काम में से कुछ हैं "मोनालिसा" और "अलस्टर द विंची कोड", जो उनकी चित्रकला का अद्वितीय उदाहरण हैं। उन्होंने विभिन्न विज्ञानिक अविष्कारों और अनुसंधानों की भी अनेक की। वे हवाई यान के अविष्कार, मानव शरीर के अंतर्दृष्टि की शोध, चित्रकला, विज्ञान, यातायात, और इंजीनियरिंग में भी कार्य करते थे।

उनकी उपलब्धियों के बावजूद, लेओनार्डो डा विंची का जीवन और कार्य अक्सर रहस्यमय होता है, जिसकी वजह से उन्हें "रानी के रहस्य" कहा जाता है।

2- एम्मानुएल कांत - प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक

एम्मानुएल कांत का जीवन परिचय दार्शनिक और विचारक के रूप में उनके महत्वपूर्ण कामों के माध्यम से बहुत ही रोचक है। उनका जन्म 22 अप्रैल 1724 को प्रसिया के केनिग्सबर्ग (अब कलिनिंग्राड, रूस) में हुआ था। उनके पिता और दादा दोनों ही पंचमहाल के कर्मचारी थे।

कांत का शिक्षा के क्षेत्र में रूचि था, और उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ केनिग्सबर्ग में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने फिर बर्लिन और हाले यूनिवर्सिटी में अध्ययन जारी रखा, जहां उन्होंने विभिन्न विषयों में अध्ययन किया, जैसे की न्यायशास्त्र, विज्ञान, और मैट्रिक्स के सिद्धांत। उनकी दार्शनिक अनुसंधान के कारण उन्हें 'आज के पितामह' भी कहा जाता है।

कांत का कार्य फिलॉसफी और नैतिकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। उन्होंने 'प्योर रीजन' के सिद्धांत पर अपनी विचारधारा विकसित की, जिसने बाद में उनके 'क्रिटिक ऑफ प्योर रीजन' में सार्वभौमिक रूप से प्रसिद्ध हो गया।

उनका दार्शनिक विरोध काफी महत्वपूर्ण है, जैसे की उनके नैतिकता के सिद्धांत 'कैटेगोरिकल इम्पेरेटिव' और अन्य उनकी प्रारूपिक लोजिक के नियम।

कांत का मृत्यु हुआ 12 फरवरी 1804 को, लेकिन उनके कामों का आधार बनकर आज भी उनका महत्व बना हुआ है। उनके विचार और सिद्धांतों का प्रभाव आज भी फिलॉसफी और उसके अन्य क्षेत्रों में महसूस किया जाता है।

3- निकोला टेस्ला - प्रसिद्ध सर्बियन-अमेरिकी वैज्ञानिक, अविष्कारक

निकोला टेस्ला, एक प्रसिद्ध सर्बियन-अमेरिकी वैज्ञानिक और अविष्कारक थे, जिन्होंने अपने योगदानों के लिए विशेष मान्यता प्राप्त की है। टेस्ला का जन्म 10 जुलाई 1856 को सर्बिया के स्मिलजना ग्रामीण क्षेत्र में हुआ था।

टेस्ला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा को करगुज निकोला टेस्ला तकनीकी विद्यालय (Karlovac Technical School) में प्राप्त किया, और फिर उन्होंने प्राचीन सार्वजनिक पाठशाला (Graz University) में अध्ययन किया। उन्होंने बाद में प्राग में कार्ल फराडे के निजी लेक्चर्स का अध्ययन किया, और वहां उन्होंने अपनी वैज्ञानिक दिशा को बढ़ाया।

टेस्ला ने अपने कैरियर के दौरान बेहद महत्वपूर्ण अविष्कार किए, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध हैं विद्युत वायुमंडल के विकास के लिए उनकी योजना, विद्युत धारिता का अविष्कार, और विद्युत प्रेरणा के तरल धारिता का प्रयोग। उन्होंने विद्युतीय मोटर, टेस्ला कोइल, और टेस्ला ट्रांसफॉर्मर जैसी तकनीकी उपकरणों का भी अविष्कार किया।

टेस्ला का योगदान विद्युत और इंजीनियरिंग क्षेत्र में व्यापक था, और उनके आविष्कारों का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है। वे एक समर्थ अनुप्रयोगी भी थे और अन्य वैज्ञानिकों के साथ समर्थ काम किया।

निकोला टेस्ला की मृत्यु 7 जनवरी 1943 को हुई, लेकिन उनके वैज्ञानिक और अविष्कारी योगदानों का प्रभाव आज भी दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। 

4- किम इल-सुंग - पूर्व उत्तर कोरिया के नेता

किम इल-सुंग, जिन्हें नॉर्थ कोरिया में "सुप्रीम लीडर" के रूप में जाना जाता है, पूर्व उत्तर कोरिया के नेता थे। उनका जन्म 16 फरवरी 1941 को प्योंगयांग, ब्रिटिश मंडेट ग्राहम, जो की अब उत्तर कोरिया में है, में हुआ था।

किम इल-सुंग का नेतृत्व 1994 में उनके पिता, किम इल-सोंग, के मृत्यु के बाद आरंभ हुआ। उन्होंने अपने पिता के पद को रोका और एक स्वायत्त उत्तर कोरिया की अधिकारिक राष्ट्रपति के रूप में 1998 में स्थान लिया।

किम इल-सुंग के नेतृत्व के दौरान, उन्होंने उत्तर कोरिया के नियंत्रण को मजबूत किया, लेकिन उनके शासन के दौरान अनेक विवाद और अत्याचार की चर्चाएं थीं। उनका शासन अटल एकतावाद, सेना पर आधारित विचारधारा, और प्रतिनिधि गणराज्य के स्थान पर नामकरण के लिए जाना जाता है।

2011 में किम इल-सुंग की मृत्यु के बाद, उनके बेटे किम जोंग-उन ने नेतृत्व संभाला, जिससे कोरिया की राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कई बदलाव आए।

5- एम्मानुएल साहीज़ादा - भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता

एम्मानुएल साहीज़ादा एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे, जिनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम के लिए अनमोल योगदान दिया। उनका जन्म 1889 में भारत के उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ था।

साहीज़ादा ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने गांधीजी की आंदोलनों में भाग लेने के साथ ही कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया।

साहीज़ादा ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में भी अपना योगदान दिया और स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय राजनीति में भी उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

साहीज़ादा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने साहसिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं, और उनके संघर्ष और प्रेरणा की कई कहानियाँ हैं। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अविस्मरणीय है।

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