एक रेलवे कर्मचारी कैसे बन गया नामीबिया का राष्ट्रपिता, जिनको श्रद्धांजलि देंगे PM मोदी

PM Modi Namibia Visit: पीएम मोदी 9 जुलाई को नामीबिया के दौरे पर रहेंगे. वो नामीबिया के राष्ट्रपिता डॉ. सैम नुजोमा को श्रद्धांजलि देंगे. इसके अलावा नामीबिया के राष्ट्रपति नेटुम्बो नांदी नदैतवा के साथ द्विपक्षीय बातचीत करेंगे. आइए जान लेते हैं कि कौन थे नामीबिया के राष्ट्रपति फादर डॉ. सैम नुजोमा और कैसा रहा एक रेलवे कर्मचारी से राष्ट्रपति बनने तक का उनका सफर?

Jul 10, 2025 - 04:45
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एक रेलवे कर्मचारी कैसे बन गया नामीबिया का राष्ट्रपिता, जिनको श्रद्धांजलि देंगे PM मोदी
एक रेलवे कर्मचारी कैसे बन गया नामीबिया का राष्ट्रपिता, जिनको श्रद्धांजलि देंगे PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच देशों के अपने दौरे के तहत सबसे अंत में नामीबिया जाएंगे. वहां नामीबिया के फाउंडिंग फादर डॉ. सैम नुजोमा को श्रद्धांजलि देंगे. इसके अलावा नामीबिया के राष्ट्रपति नेटुम्बो नांदी नदैतवा के साथ द्विपक्षीय बातचीत करेंगे. संभावना है कि प्रधानमंत्री मोदी नामीबिया की संसद को भी संबोधित करें. आइए जान लेते हैं कि कौन थे नामीबिया के फाउंडिंग फादर डॉ. सैम नुजोमा?

डॉ. सैम नुजोमा नामीबिया को साल 1990 में दक्षिण अफ्रीका के गोरे शासन से आजादी दिलाने वाले क्रांतिकारी नेता थे. वह देश के पहले राष्ट्रपति बने और 15 सालों तक इस पद पर रहे. इसी साल फरवरी (2025) में 95 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. एटुंडा के एक उत्तरी गांव के एक किसान परिवार के सबसे बड़े बेटे डॉ. सैम नुजोमा ने प्राइमरी से कुछ ही ज्यादा स्कूली शिक्षा हासिल की थी. उनकी पत्नी का नाम Kovambo Theopoldine Katjimune था, जिनसे उनके चार बच्चा हुए.

हिंसा और लूटपाट का शिकार था देश

नामीबिया को पहले साउथ वेस्ट अफ्रीका कहा जाता था, जो दशकों तक यूरोपीय लोगों की लूटपाट और साम्राज्यवादी हिंसा का शिकार रहा. इसकी शुरुआत साल 1904 में हुई थी, जब जर्मनी की साम्राज्यवादी ताकतों ने नामीबिया के हजारों लोगों का संहार किया था. जर्मनी ने तब काले अफ्रीकियों का इस्तेमाल इस रोंगटे खड़ी कर देने वाली वारदात के लिए किया था. बाद में होलोकॉस्ट के दौरान नाजियों ने भी ऐसा ही किया. नामीबिया साल 1884 से 1915 तक जर्मनी के कब्जे में रहा.

पहला विश्व युद्ध हारने के साथ ही जर्मनी के हाथों से निकल कर नामीबिया गोरों के दक्षिण अफ्रीका के शासन के अधीन आ गया. तत्कालीन दक्षिण अफ्रीकी शासन ने यहां भी नस्लीय भेदभाव जारी रखा और नामीबिया के काले लोगों को किसी भी तरह का राजनीतिक अधिकार देने से मना कर दिया. साथ ही सामाजित और आर्थिक स्वाधीनता भी सीमित कर दी.

Dr. Sam Shafiishuna Nujoma

30 साल की उम्र में डॉ. नुजोमा को देश से निष्कासित कर दिया गया. फोटो: Jean Bernard Vernier/Sygma via Getty Images

ऐसे मिली थी प्रेरणा

गुलामी के दौर में रेलवे कर्मचारी के रूप में काम करते हुए डॉ. नुजोमा की राजनीति में गहरी रुचि थी. वह अपने देश के लोगों को अन्याय और साम्राज्यवादी शासन से मुक्त देखना चाहते थे. यह साल 1966 की बात है. नामीबिया में स्वीधानता के लिए गुरिल्ला युद्ध छिड़ गया. तब तक गोरी सरकार के खिलाफ लड़ाई में डॉ. सैम नुजोमा अहम हिस्सा बन चुके थे.

उनको इसकी प्रेरणा नामीबिया की आजादी के लिए लड़ने वाले पहले के नेताओं जैसे Hendrik Witbooi से मिली, जिन्होंने 1880 के दशक में जर्मनी के खिलाफ लड़ा था. साल 1959 तक आते-आते वह नामीबिया की आजादी के लिए आंदोलन कर रहे Owamboland Peoples organisation के मुखिया बन गए.

Dr Sam Shafiishuna Nujoma Life Story In Hindi

क्रांतिकारी दल के मुखिया बनते ही निर्वासित किए गए

संगठन का मुखिया बनने के एक साल बाद ही 30 साल की उम्र में डॉ. नुजोमा को देश से निष्कासित कर दिया गया. बिना किसी पासपोर्ट के वह अलग-अलग रूपों में ट्रेनों और विमानों से यात्रा करते-करते जांबिया और फिर तंजानिया पहुंचे. नामीबिया के लोगों की स्वाधीनता के समर्थक अफसरों की मदद से वह न्यूयॉर्क पहुंचे और संयुक्त राष्ट् में नामीबिया की आजादी के लिए याचिका दाखिल की पर दक्षिण अफ्रीका ने मना कर दिया. साथ ही दक्षिण अफ्रीका ने उनको मार्क्सवादी आतंकी की संज्ञा दे दी.

25 सालों की लड़ाई के बाद मिली आजादी

इसी बीच पड़ोसी देश अंगोला में लड़ रहे क्यूबा के बलों की मदद से नामीबिया के गुरिल्ला लड़ाकों ने नामीबिया में दक्षिण अफ्रीका के बेस पर हमला करना शुरू कर दिया. उधर, डॉ. नुजोमा निर्वासन के बाद नामीबिया पहुंचे तो दक्षिण अफ्रीकी अफसरों ने उन्होंने फिर से गिरफ्तार कर छह साल के लिए जांबिया भेज दिया. वहीं से वह गुरिल्ला लड़ाकों की अगुवाई करते रहे. अंतत: साल 1988 में दक्षिण अफ्रीका नामीबिया की आजादी के लिए तैयार हो गया. इसके एक साल बाद 1989 में डॉ. नुजोमा स्वदेश लौटे. 25 सालों की आजादी की लड़ाई के बाद साल 1990 में नामीबिया को आजादी मिल गई.

साल 1990 में पहली बार बने थे राष्ट्रपति

साल 1990 में ही पहली बार नामीबिया में लोकतांत्रिक चुनाव हुए. डॉ. नुजोमा के दल ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और वह देश के पहले राष्ट्रपति बनाए गए. इसके बाद उन्होंने अपने देश के निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ी. वह अपने देश में बच्चों की दुर्दशा देखकर काफी चिंतित रहते थे. इसलिए उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण के लिए भत्ते का प्रावधान किया. महिलाओं की दशा सुधारने के लिए उन्होंने पारंपरिक रूप से चली आ रही पितृसत्तात्मक व्यवस्था को तोड़ने के लिए कदम उठाए. पति के निधन के बाद विधवाओं को घर से निकालने की प्रथा पर रोक लगाई. देश के विकास के लिए वह स्थिरता बनाए रखने की हर संभव कोशिश करते रहे.

साल 1994 और 1999 में वह दो बार फिर राष्ट्रपति चुने गए थे. साल 2005 में उन्होंने सत्ता छोड़ दी और साल 2007 में अपनी पार्टी के मुखिया का पद भी छोड़ दिया और सत्ता अपने उत्तराधिकारी Hifikepunye Pohamba को सौंप दी थी.

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