सिलक्यारा सुरंग में 400 घंटों की जंग के बाद जीतीं 41 जिंदगियां, श्रमिकों ने खुली हवा में ली सांस

सुरंग के बाहर देश-विदेश से आए तमाम विशेषज्ञ

Nov 28, 2023 - 23:20
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सिलक्यारा सुरंग में 400 घंटों की जंग के बाद जीतीं 41 जिंदगियां, श्रमिकों ने खुली हवा में ली सांस

देश-दुनिया के करोड़ों लोग जिस घड़ी का पिछले 17 दिन से बेसब्री के साथ इंतजार कर रहे थे, वह आखिरकार मंगलवार को आ ही गई। यह घड़ी थी उत्तराखंड के सिलक्यारा (उत्तरकाशी) स्थित निर्माणाधीन सुरंग में 12 नवंबर से फंसे 41 श्रमिकों के 'भारत माता की जय' के उद्घोष और आतिशबाजी के बीच सकुशल बाहर आने की।

जिंदगी की एक जंग सुरंग में फंसे श्रमिक लड़ रहे थे और दूसरी सुरंग के बाहर देश-विदेश से आए तमाम विशेषज्ञ, जनप्रतिनिधि, श्रमिकों के स्वजन और स्थानीय ग्रामीण। जंग को मंजिल तक पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने पूरी ताकत झोंक रखी थी।

आखिरकार जिंदगी की हुई जीत

लगभग 400 घंटे चली राहत एवं बचाव की जंग में आखिरकार जिंदगी की जीत हुई और सुरंग में कैद श्रमिकों ने खुली हवा में सांस ली। सुरंग से सकुशल बाहर आने के बाद श्रमिकों के चेहरे पर जो खुशी थी, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। भले ही जिंदगी की जंग श्रमिकों ने जीती थी। मगर विजय के भाव बाहर डटी मशीनरी के नायकों के चेहरे पर भी तैर रहे थे।

यह भाव थे बेहद जटिल अभियान के मंजिल तक पहुंचने की खुशी के, जिसके लिए हर कोई दुआ मांग रहा था। संभवत: यह देश का पहला ऐसा बड़ा अभियान है, जो इतनी लंबी अवधि तक चला और बावजूद इसके सभी पीड़ितों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।

जिंदगी की जीत का बिगुल

17 दिन से चली आ रही राहत एवं बचाव की अनवरत जंग में जिंदगी की जीत का बिगुल मंगलवार दोपहर करीब डेढ़ बजे तब बजा, जब 57 मीटर पर निकास सुरंग का आखिरी स्टील पाइप मलबे को भेदकर अंदर फंसे श्रमिकों तक पहुंचा। हालांकि, अभियान में शुरू से खड़ी हो रही बाधाओं का दौर अब भी जारी था।

श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान निकास सुरंग से भीतर दाखिल हुए तो मालूम चला कि जिस स्थान पर पाइप आर-पार हुआ, वहां पानी जमा था। ऐसे में पाइप को और आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया, ताकि पानी या ऊपर से ताजा मलबा आने की दशा में श्रमिक सुरक्षित रहें।

इसके बाद निकास सुरंग में तीन मीटर पाइप और जोड़कर आगे धकेला गया। इस काम में करीब तीन घंटे और लग गए। सभी व्यवस्था पुख्ता किए जाने के बाद एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान फिर से सुरंग में दाखिल हुए और बिना पल गंवाए स्ट्रेचर ट्राली से एक-एक कर श्रमिकों को बाहर निकालना शुरू किया।

करीब डेढ़ घंटे में सभी श्रमिकों को निकास सुरंग से दूसरे छोर पर सुरंग के खुले हिस्से में पहुंचा दिया गया। यहां श्रमिकों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए पहले से मेडिकल कैंप तैयार था। राहत की बात रही कि सभी श्रमिकों का स्वास्थ्य सामान्य पाया गया। जिंदगी की जंग जीतकर आए श्रमिकों के लिए दीपावली जैसा माहौल था।

सभी ने श्रमिकों के हौसले को किया सैल्यूट

मजदूरों के स्वागत और हौसला अफजाई के लिए स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल (सेनि.) वीके सिंह और तमाम अधिकारी फूलमाला लेकर खड़े थे। सभी ने श्रमिकों के हौसले को सैल्यूट किया और फिर उन्हें स्वास्थ्य के पुख्ता परीक्षण के लिए पहले से खड़ी एंबुलेंस के माध्यम से चिन्यालीसौड़ स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया।

इस अविस्मरणीय घड़ी का साक्षी बनने के लिए सुरंग क्षेत्र में श्रमिकों के स्वजन समेत बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण भी मौजूद थे। उनके चेहरे पर विज्ञान और आस्था के संगम से मिली जीत के प्रति संतोष व आभार के भाव तैर रहे थे तो आंखों में खुशी व राहत की चमक थी। क्योंकि, इन 17 दिनों में पल-पल बदलते हालात और बाधाओं ने सभी के धैर्य की कड़ी परीक्षा जो ली थी।

सुबह से बदला था सिलक्यारा का नजारा

सिलक्यारा में मंगलवार सुबह की शुरुआत बाकी दिनों से अलग उम्मीद, उत्साह और जोश के साथ हुई। दिन चढ़ने तक यह तय हो गया था कि सुरंग में फंसे श्रमिक जल्द ही खुली हवा में सांस ले पाएंगे। क्योंकि, तब तक राहत एवं बचाव मशीनरी की गहमागहमी तेज होने के साथ ही अभियान को संपन्न कराने की व्यवस्था जोर पकड़ने लगी थी। एंबुलेंस का काफिला सुरंग की तरफ बढ़ चला था और एनडीआरफ के साथ एसडीआरएफ के जवानों ने मोर्चा संभाल लिया था। सुरंग में कैद श्रमिकों का बाहर आते ही स्वास्थ्य परीक्षण करने के लिए सुरंग के अंदर मेडिकल कैंप तैयार किया गया था।

रैट माइनर्स ने मंजिल तक पहुंचाया

निकास सुरंग बना रही औगर मशीन का 46.9 मीटर हिस्सा 24 नवंबर की शाम ड्रिलिंग के दौरान फंस गया था। इसे काटकर निकालना ही एकमात्र विकल्प था। ऐसे में शेष नौ से 12 मीटर निकास सुरंग मैनुअल तैयार करने का निर्णय लिया गया। इस काम के लिए रैट माइनर्स की 28 सदस्यीय टीम को मोर्चे पर उतारा गया। 800 मिमी व्यास के पाइप के अंदर जाकर इस बेहद चुनौतीपूर्ण काम को रैट माइनर्स ने 24 घंटे के भीतर पूरा कर दिखाया। इस टीम ने सोमवार शाम से गैस कटर, प्लाज्मा कटर, लेजर कटर और हैंड ड्रिलर की मदद से लोहे को काटने व खोदाई का काम शुरू कर दिया था।

बाधाओं ने खूब ली परीक्षा, हौसले ने मंजिल तक पहुंचाया

सुरंग में कैद जिंदगियों को बचाने की यह जंग किसी भी दौर में आसान नहीं रही। 12 नवंबर की सुबह करीब साढ़े पांच बजे जब उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर सिलक्यारा में यमुनोत्री राजमार्ग पर चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की निर्माणाधीन सुरंग में भूस्खलन हुआ तो वहां काम कर रहे आठ राज्यों के 41 श्रमिक भीतर ही फंस गए थे।

श्रमिकों और सुरंग के मुख्य द्वार की तरफ खुले स्थान के बीच भारी मलबे की 60 मीटर की बाधा खड़ी हो गई थी। श्रमिकों को बचाने का अभियान तत्काल बाद श्रमिकों को पानी की चार इंच की पाइप लाइन से आक्सीजन पहुंचाने के साथ ही शुरू कर दिया गया था।

धैर्य की पल-पल परीक्षा

सुरंग में बाधा बने मलबे को हटाने के साथ शुरू किए गए इस अभियान में तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह इतना लंबा चलेगा और धैर्य की पल-पल परीक्षा लेगा। शुरुआत में जब सुरंग का निर्माण कर रही कंपनी नवयुग और कार्यदायी संस्था एनएचआइडीसीएल ने मलबा हटाना शुरू किया तो उतना ही मलबा पहाड़ी की तरफ से नीचे आता गया। यह स्थिति बता रही थी कि सुरंग का यह हिस्सा पूरी तरह ध्वस्त भी हो सकता है।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पीएमओ ने तत्काल राहत एवं बचाव की कमान अपने हाथ में ली और केंद्र व राज्य की तमाम एजेंसियों को सिलक्यारा में उतार दिया।

औगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू होने के बाद बढ़ी उम्मीदें

सुरंग में फंसे श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने की पहली उम्मीद तब परवान चढ़ी, जब 21 नवंबर की रात पौने एक बजे 17 नवंबर से बंद पड़ी औगर मशीन ने दोबारा ड्रिलिंग शुरू की। श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए निकास सुरंग की ड्रिलिंग 22 नवंबर की मध्य रात्रि के आसपास 45 मीटर तक पूरी की जा चुकी थी।

श्रमिकों तक पहुंचने के लिए 12 से 15 मीटर की दूरी ही शेष थी, तभी सुरंग के बाधित भाग को भेदने में सर्वाधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ गया। क्योंकि, इस भाग में न सिर्फ मोटे सरिया थे, बल्कि मोटे पाइप, भारी तारों का जाम और सुरंग की छत की मजबूत रिब व तमाम गार्डर थे।

45 मीटर ड्रिलिंग के बाद औगर मशीन में भारी कंपन हुआ और लोहे के मजबूत अवरोधों को भेदते समय मशीन का एक पुर्जा टूट गया। साथ ही 800 मिमी व्यास का पाइप भी आगे से बुरी तरह मुड़ गया। भारी दबाव के चलते औगर मशीन का प्लेटफार्म भी अपनी जगह से खिसक गया था।

24 नवंबर की शाम दोबारा शुरू ड्रिलिंग

इन चुनौतियों को दूर कर 24 नवंबर की शाम दोबारा ड्रिलिंग शुरू की गई लेकिन, 2.5 मीटर बाद ही लोहे की बाधाओं ने फिर समस्या पैदा कर दी। इस बार औगर मशीन ही फंस गई, जिसके 46 मीटर से अधिक भाग को काटकर निकालना पड़ा। साथ ही निकास सुंरग के पाइप को भी दो मीटर काटा गया। इसमें अधिकतर काम मैनुअल ही किया गया, जो अंतिम चरण तक जारी रहा।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार