वकीलों को जज बनाने का क्या है नियम? सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में नियुक्त करने की मंजूरी दी

Supreme Court Collegium: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की सिफारिश को मंजूरी दे दी है. इससे कई राज्यों के हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है. आइए जान लेते हैं कि वकीलों को जज बनाने का क्या नियम है? एक वकील को जज बनने में कितना समय लगता है और अलग-अलग कोर्ट में इनकी नियुक्ति को लेकर क्या है नियम?

Jul 4, 2025 - 20:14
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वकीलों को जज बनाने का क्या है नियम? सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में नियुक्त करने की मंजूरी दी
वकीलों को जज बनाने का क्या है नियम? सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में नियुक्त करने की मंजूरी दी

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने देश के कई हाईकोर्ट में नए जजों की नियुक्ति की सिफारिश को अपनी मंजूरी दे दी है. इसके जरिए दिल्ली हाईकोर्ट के तीन जजों, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के 10 जजों के साथ ही तेलंगाना, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत कई अन्य राज्यों के हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है.

इससे पहले एक और दो जुलाई को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में कॉलेजियम की बैठक हुई थी, जिसके बाद जजों की नियुक्ति की सिफारिश को मंजूरी दी गई है. आइए जान लेते हैं कि वकीलों को जज बनाने का क्या नियम है?

कैसे बनते हैं जज?

भारत में जिला न्यायिक मजिस्ट्रेट बनने के लिए न्यायिक सेवा परीक्षा पास करनी पड़ती है. इससे पहले कानून की डिग्री धारकों को कम से कम तीन साल प्रैक्टिस करनी होती है. फिर परीक्षा पास करने के बाद तीन साल जिला न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में काम करना होता है. इसके बाद कोई उम्मीदवार जिला जज के रूप में नियुक्ति का हकदार होता है. अनुभव बढ़ने पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज बनने के लिए भी आवेदन किया जा सकता है. इनमें जजों की नियुक्तियां कॉलेजियम सिस्टम से होती है.

हाईकोर्ट में ऐसे होती है न्यायाधीशों की नियुक्ति

देश के हाईकोर्टों में मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीशों की नियुक्तियां संविधान के अनुच्छेद 217 (1) के तहत की जाती है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के मुताबिक, संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार किसी हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए. इसके साथ ही उसे हाईकोर्ट में कम से कम 10 साल तक एडवोकेट रह चुका होना चाहिए. हाईकोर्ट में किसी न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रस्ताव मुख्य न्यायाधीश की ओर से मुख्यमंत्री और राज्यपाल को भेजा जाता है. इसकी प्रतियां सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय को भी भेजी जाती हैं. केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रस्ताव पर विचार के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को उनकी सलाह के लिए भेजा जाता है.

Lawyer To Judge Process In Hindi

भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठम न्यायाधीशों के कोलेजियम की सलाह पर प्रस्तावित व्यक्ति के नाम पर विचार करते हैं. इसके बाद चार हफ्ते के भीतर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अपनी संस्तुति केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय को भेज देते हैं. वहां से तीन सप्ताह के भीतर मुख्य न्यायाधीश की संस्तुति को प्रधानमंत्री को भेजा जाता है, जो नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति को सलाह देते हैं. राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की मंजूरी मिलने पर आगे की प्रक्रिया पूरी की जाती है. ऐसे ही हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भी राज्यपाल की सलाह और कोलेजियम की संस्तुति पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है.

सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की यह है योग्यता

इसी तरह से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्तियां अनुच्छेद 124(2) के तहत राष्ट्रपति करते हैं. वह सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के लिए बाध्य होते हैं. हालांकि भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए किसी से परामर्श करने के लिए वह बाध्य नहीं हैं. संविधान के अनुच्छेद 124 (3) में सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीशों की योग्यताओं के बारे बताया गया है कि वह भारत का नागरिक होना चाहिए. एलएलबी/एलएलएम की डिग्री उसके पास होनी चाहिए. कम से कम पांच साल तक हाईकोर्ट में काम कर चुके जज के अलावा हाईकोर्ट में 10 साल तक प्रैक्टिस कर चुके वकील भी इसके लिए योग्य होते हैं.

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट.

ऐसे भेजी जाती है सिफारिश

सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश की रिक्ति होने पर उसे भरने के लिए मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाला कॉलेजियम न्यायाधीश के नाम की सिफारिश भेजता है. केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री को भेजी गई सिफारिश में देश के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम की सलाह पर की जाती है.

अगर देश के अगले मुख्य न्यायाधीश चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक नहीं होते हैं, तो उन्हें भी कॉलेजियम का हिस्सा बनाया जाता है, क्योंकि न्यायाधीशों के चयन में उनका भी हाथ होना चाहिए. क्योंकि ये न्यायाधीश अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान भी काम करेंगे.

ऐसे होती है नियुक्ति

भारत के मुख्य न्यायाधीश की तरफ से कॉलेजियम की अंतिम सिफारिश मिलने के बाद केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री प्रधानमंत्री को अपनी सिफारिशें भेजते हैं. फिर प्रधानमंत्री इस मामले में राष्ट्रपति को सलाह देते हैं. राष्ट्रपति जैसे ही नियुक्ति को मंजूरी देते हैं, न्याय विभाग में भारत सरकार के सचिव की ओर से भारत के मुख्य न्यायाधीश को सूचित किया जाता है. राष्ट्रपति की तरफ से न्यायाधीशों की नियुक्ति का पत्र जारी किया जाता है और राष्ट्रपति द्वारा अप्वाइंटमेंट के वारंट पर हस्ताक्षर किए जाते हैं. इसके बाद भारत के राजपत्र में जरूरी अधिसूचना जारी कर दी जाती है.

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