कोहिनूर हीरे का इतिहास बहुत पुराना है

कोहिनूर हीरे: भारतीय इतिहास का रत्न, महाराजा ने उसे तीन लाख रु0 नकद तथा 50,000 रु0 की जागीर देकर कोहनूर प्राप्त कर लिया।

Jun 1, 2024 - 06:15
Jun 1, 2024 - 06:16
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कोहिनूर हीरे का इतिहास बहुत पुराना है

कोहिनूर हीरे: भारतीय इतिहास का रत्न

  1. कोहिनूर हीरे का इतिहास: कोहिनूर हीरा बहुत प्राचीन है, और इसे महाभारत काल की प्रसिद्ध स्यमंतक मणि के रूप में भी जाना जाता है।

  2. गोलकुंडा का खान: इस हीरे का मूल उत्पादन गोलकुंडा के खान से हुआ था।

  3. सत्ता के परिवर्तन: कोहिनूर हीरे का स्वामित्व कई शासकों के हाथों से गुजरा, जैसे कि मुगल शासकों, नादिरशाह, अफगान सत्ताधारियों, और अंत में फतेह खान के पास पहुंचा।

  4. महाराजा रणजीत सिंह का योगदान: महाराजा रणजीत सिंह ने शाह शुजा को सत्ता में लौटाने में मदद की, परंतु फतेहखान ने फिर उसे हराकर शाह महमूद को गद्दी पर बैठा दिया।

  5. फतेहखान का आगमन: फतेहखान ने कश्मीर जीतने के लिए महाराजा से सहायता मांगी, जिससे शाह परिवार को धनदारी का खतरा लगा।

  6. सन्धि की बातचीत: महाराजा रणजीत सिंह ने सन्धि की परिक्रिया को प्राथमिकता दी, परन्तु यह सामझा गया कि उसे धोखा दिया गया है।

  7. शाह शुजा की बेगम का प्रस्ताव: शाह शुजा की बेगम ने कोहिनूर हीरे की जगह उसे देने का प्रस्ताव रखा, जिससे जीवन बचाया जा सकता था।

  8. हीरे का पुनरावर्तन: 1813 में, महाराजा रणजीत सिंह ने कोहिनूर हीरे को प्राप्त किया, परंतु दुर्भाग्यवश, यह अंग्रेजों के हाथों चला गया।

  9. महाराजा की हानि: इस प्रयास में महाराजा को काफी नुकसान हुआ, उनके 1,000 सैनिक मारे गए और उनका खजाना खाली हो गया।

  10. उच्चतम समापन: महाराजा रणजीत सिंह ने तीन लाख रुपये और 50,000 रुपये की जागीर के साथ कोहिनूर हीरे को प्राप्त किया।

1,000 सैनिक मारे गये तथा खजाना भी लगभग खाली हो गया। शुजा लाहौर आकर अपनी बेगम से मिला। अब महाराजा ने शर्त के अनुसार कोहनूर की मांग कीपर बेगम उसे देने में हिचक रही थी। अंततः महाराजा ने उसे तीन लाख रु0 नकद तथा 50,000 रु0 की जागीर देकर कोहनूर प्राप्त कर लिया।
 
इस प्रकार एक जून, 1813 को यह दुर्लभ हीरा फिर से भारत को मिला;पर दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद यह अंग्रेजों के पास चला गया और तब से आज तक वहीं है। 

कोहिनूर हीरे का इतिहास बहुत पुराना है। कुछ लोग इसे महाभारत काल की प्रसिद्ध स्यमंतक मणि मानते हैं। गोलकुंडा की खान से निकला यह हीरा अपनी अत्यधिक चमक के कारण "प्रकाश का पर्वत" (कोह-ए-नूर) कहलाया। हर राजा की इसे प्राप्ति की इच्छा रही है। यह हीरा पहले भारतीय मुगल शासकों के पास था, फिर अफगानिस्तान के शासकों के हाथों चला गया। इसके बाद यह कई अफगान शासकों के पास पहुंचा, जैसे कि अहमद शाह अब्दाली, तैमूर, शाह जमन, और शाह शुजा। अंत में, यह हीरा महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंचा।

उस समय, पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह शासन कर रहे थे। शाह शुजा ने उनसे सहायता मांगी, और महाराजा ने उसे सत्ता दिलाने के लिए अपनी सेना भेजी, परंतु कुछ समय बाद फतेहखान ने फिर से उसके छोटे भाई को गद्दी पर बैठा दिया। शुजा भाग गया, पर उसे बंदी बनाकर रावलपिंडी भेज दिया गया। इस बीच, उसका बड़ा भाई जमन भी बंदी था, जिसकी आंखें महमूद ने निकाल दी थीं।

कुछ समय बाद, रणजीत सिंह ने इन दोनों भाइयों को लाहौर बुलवाया। वहां, अफगान प्रधानमंत्री फतेहखान ने कश्मीर जीतने के लिए मदद मांगी। उसने महाराजा को लूट का आधा माल और नौ लाख रुपये के साथ सहायता की शर्त रखी। इससे शुजा के परिवार को लगा कि वे फतेहखान की मार से बच सकते हैं, इसलिए उन्होंने कोहिनूर हीरा महाराजा को देने का प्रस्ताव रखा।

1812 की वसंत ऋतु में, अफगान और हिन्दू सेनाएं कश्मीर में प्रवेश किया, पर फतेहखान ने कुछ सेना को पंजाब में भी भेज दिया। उसने कश्मीर के दो किलों को जीता और उसका खजाना हिन्दू सेना को नहीं दिया। महाराजा को इसकी जानकारी मिली, पर उन्होंने सन्धि की बातचीत को प्राथमिकता दी।

उस समय, शाह शुजा शेरगढ़ के किले में बंद था। फतेहखान ने उसे मारने की योजना बनाई, पर महाराजा के सेनापति मोहकमचंद ने उसे बचा लिया।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,