28 अप्रैल का इतिहास भारत के सभी बड़ी जानकारी

28 अप्रैल का इतिहास: जानिए 28 अप्रैल को घटित महत्वपूर्ण घटनाएँ, इस दिन जन्मे और निधन हुए प्रसिद्ध व्यक्तित्वों के बारे में। साथ ही जानें 28 अप्रैल के प्रमुख अवसर और विश्व श्रम सुरक्षा एवं स्वास्थ्य दिवस का महत्व। 28 अप्रैल का इतिहास भारत के सभी बड़ी जानकारी, History of 28 April All important information about India,

Apr 28, 2025 - 05:10
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28 अप्रैल  का इतिहास भारत के सभी बड़ी जानकारी

28 अप्रैल का इतिहास: प्रमुख घटनाएँ, जन्म, निधन और महत्त्वपूर्ण अवसर

28 अप्रैल 1945 - मुसोलिनी और उनकी प्रेमिका की हत्या
28 अप्रैल 1945 को इटली के देशभक्त सैनिकों ने तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी और उसकी प्रेमिका क्लारा पेटाची की गोली मारकर हत्या कर दी। मुसोलिनी, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर का सहयोगी था, देश में बढ़ते असंतोष और हार के चलते भागने की कोशिश कर रहा था। उसे और क्लारा को इटली के लेक कोमो के पास पकड़ा गया और तुरंत फांसी दे दी गई। बाद में उनके शव मिलान शहर में सार्वजनिक रूप से लटकाए गए। यह घटना यूरोप में फासीवाद के अंत का एक बड़ा प्रतीक बनी।


28 अप्रैल 1999 - मानव क्लोनिंग की घोषणा और चेर्नोबिल वायरस का हमला
28 अप्रैल 1999 को अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. रिचर्ड सीड ने एक वर्ष के भीतर मानव क्लोन बनाने की घोषणा की, जिससे विश्वभर में नैतिक और वैज्ञानिक बहस छिड़ गई। इसी दिन, चेर्नोबिल वायरस ने हजारों कंप्यूटरों को प्रभावित किया, जिससे वैश्विक स्तर पर भारी तकनीकी नुकसान हुआ। यह वायरस विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम को नुकसान पहुंचाने के लिए डिजाइन किया गया था। वायरस का नाम 1986 की चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के नाम पर रखा गया था। इस हमले ने साइबर सुरक्षा की बढ़ती जरूरत को दुनिया के सामने उजागर कर दिया।


28 अप्रैल 2001 - पहला अंतरिक्ष सैलानी रवाना
28 अप्रैल 2001 को अमेरिकी करोड़पति डेनिस टीटो पहले अंतरिक्ष सैलानी के रूप में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए रवाना हुए। टीटो ने रूसी अंतरिक्ष यान सोयुज टीएम-32 के माध्यम से यात्रा की और करीब आठ दिन अंतरिक्ष में बिताए। इस यात्रा के लिए उन्होंने लगभग 20 मिलियन डॉलर का भुगतान किया। टीटो की यात्रा ने अंतरिक्ष पर्यटन के एक नए युग की शुरुआत की, जिससे आम नागरिकों के लिए भी भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा की संभावनाएँ खुलने लगीं। उनकी इस ऐतिहासिक उड़ान को विश्वभर में खूब सराहा गया।


28 अप्रैल 2002 - बुकर पुरस्कार का नया नाम और पाकिस्तान में जनमत संग्रह
28 अप्रैल 2002 को प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार का नाम बदलकर 'मैन बुकर प्राइज फॉर फिक्शन' रखा गया। "मैन ग्रुप" के प्रायोजन के चलते यह बदलाव किया गया था। इसी दिन पाकिस्तान की सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ द्वारा कराए गए जनमत संग्रह को वैध करार दिया। इस जनमत संग्रह के जरिए मुशर्रफ ने अपने राष्ट्रपति पद को औपचारिक वैधता दिलाई थी। हालांकि विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए थे। दोनों घटनाएँ अपने-अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

28 अप्रैल 2004 - थाबो मबेकी बने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति, थाईलैंड में हमला
28 अप्रैल 2004 को थाबो मबेकी ने लगातार दूसरी बार दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली। नेल्सन मंडेला के उत्तराधिकारी मबेकी ने देश के सामाजिक और आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। इसी दिन थाईलैंड के दक्षिणी हिस्से में पुलिस चौकियों पर आतंकवादी हमलों में 122 लोगों की मौत हो गई। हमले इस्लामी अलगाववादी विद्रोहियों द्वारा किए गए थे, जिससे देश में सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता उत्पन्न हुई। यह दिन अफ्रीका की राजनीति और एशिया में बढ़ते उग्रवाद दोनों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण रहा।


28 अप्रैल 2008 - इसरो ने रचा इतिहास, मलेशिया और पाकिस्तान में उपलब्धियाँ
28 अप्रैल 2008 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पीएसएलवी-सी9 के जरिए एक साथ 10 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर नया इतिहास रच दिया। इस उपलब्धि ने भारत को अंतरिक्ष तकनीक में अग्रणी देशों की सूची में ला खड़ा किया। इसी दिन मलेशिया में भारतीय मूल के दस सांसदों ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली, जो प्रवासी भारतीय समुदाय के लिए गर्व का विषय बना। इसके अलावा, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को मरणोपरांत प्रतिष्ठित टिपरी इंटरनेशनल पुरस्कार प्रदान किया गया, जो उनके लोकतंत्र और मानवाधिकारों के संघर्ष को सम्मानित करता है। 

अनुप्रिया पटेल (जन्म: 1981)
अनुप्रिया पटेल भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो सत्रहवीं लोकसभा में मिर्जापुर से सांसद हैं और नरेंद्र मोदी सरकार में युवा मंत्री के रूप में कार्य कर चुकी हैं। वे अपना दल (एस) की अध्यक्ष भी हैं। अनुप्रिया ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में काम किया है। तेज-तर्रार और जमीन से जुड़ी नेता मानी जाने वाली अनुप्रिया ने अपने राजनीतिक करियर में युवाओं और पिछड़े वर्गों के उत्थान पर विशेष ध्यान दिया है। उनकी नेतृत्व क्षमता और सक्रियता ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक मजबूत पहचान दिलाई है।


समीर रंजन बर्मन (जन्म: 1940)
समीर रंजन बर्मन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ राजनेता रहे हैं। त्रिपुरा की राजनीति में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार के शासन से पहले राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उनका कार्यकाल सामाजिक कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार के प्रयासों के लिए याद किया जाता है। समीर रंजन बर्मन ने त्रिपुरा के विकास और कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके राजनीतिक अनुभव और प्रशासनिक कौशल को देश भर में सराहा गया है।


भानु अथैया (जन्म: 1929)
भानु अथैया भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध ड्रेस डिज़ाइनर थीं। उन्होंने फिल्म 'गांधी' के लिए सर्वश्रेष्ठ कॉस्ट्यूम डिज़ाइन का ऑस्कर पुरस्कार जीता, जिससे वे ऑस्कर जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। भानु ने भारतीय फिल्मों में परिधान डिजाइनिंग के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए। उन्होंने गुरुदत्त, राज कपूर और यश चोपड़ा जैसे कई महान फिल्मकारों के साथ काम किया। उनके डिज़ाइन भारतीय संस्कृति की गहराई को सटीकता से दर्शाते थे। उनके योगदान ने भारतीय फिल्म उद्योग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में मदद की। भानु अथैया एक कालजयी कलाकार थीं।


हरि सिंह नलवा (जन्म: 1791)
हरि सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष और सिख साम्राज्य के सबसे प्रतिष्ठित जनरलों में से एक थे। वे अफगान आक्रमणों को रोकने में बेहद सफल रहे और उत्तर-पश्चिमी सीमा पर भारतीय प्रभाव स्थापित किया। नलवा ने काबुल, पेशावर और कश्मीर सहित कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। उनकी बहादुरी और सैन्य रणनीति के किस्से आज भी सिख इतिहास में गौरव के साथ गाए जाते हैं। हरि सिंह नलवा ने रणभूमि में वीरता और संगठन क्षमता का जो प्रदर्शन किया, वह भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।


केनेथ कौंडा (जन्म: 1924)
केनेथ कौंडा ज़ाम्बिया के पहले राष्ट्रपति थे और अफ्रीकी महाद्वीप में स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में से एक रहे। उन्होंने ज़ाम्बिया को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1964 से 1991 तक देश का नेतृत्व किया। कौंडा ने शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन के लिए अनेक योजनाएँ शुरू कीं। वे शांतिप्रिय नेता थे और अफ्रीका में नस्लीय समानता तथा न्याय के प्रबल समर्थक माने जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्होंने अफ्रीकी एकता और शांति स्थापना के प्रयासों में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनका जीवन संघर्ष और सेवा का प्रतीक रहा।


ये जियानयिंग (जन्म: 1897)
ये जियानयिंग चीन के प्रमुख सैन्य नेता और राजनेता थे। वे चीन की जनमुक्ति सेना के वरिष्ठ अध्यक्ष रहे और देश के राजनीतिक जीवन में भी बड़ी भूमिका निभाई। माओत्से तुंग के बाद चीन के राजनीतिक सुधारों में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने देश के स्थायित्व और विकास में अहम भूमिका निभाई। ये जियानयिंग को चीन में आधुनिक सैन्य संरचना के विकास का श्रेय दिया जाता है। उनके संतुलित दृष्टिकोण और समझौतावादी राजनीति ने चीन को कठिन दौर से बाहर निकालने में मदद की। उनका जीवन नेतृत्व और दूरदृष्टि का उदाहरण है। 

सलीम गौस (निधन: 2022)
सलीम गौस भारतीय टेलीविजन, बॉलीवुड, दक्षिण भारतीय और अंग्रेज़ी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। वे अपने गंभीर अभिनय और दमदार संवाद अदायगी के लिए जाने जाते थे। 'सरफरोश', 'स्वदेस' जैसी फिल्मों और 'बारिस्ते' जैसे टीवी धारावाहिकों में उनके अभिनय को खूब सराहा गया। सलीम गौस ने रंगमंच पर भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने भारतीय सिनेमा में बहुमुखी प्रतिभा का उदाहरण प्रस्तुत किया। 28 अप्रैल 2022 को उनके निधन से भारतीय फिल्म जगत ने एक अनुभवी और प्रतिभाशाली कलाकार को खो दिया, जिनकी यादें उनके शानदार कार्यों के जरिए हमेशा जीवित रहेंगी।


विनायक कृष्ण गोकाक (निधन: 1992)
विनायक कृष्ण गोकाक कन्नड़ भाषा के प्रमुख साहित्यकार थे और उन्हें 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। वे एक बहुभाषी लेखक, विद्वान और शिक्षाविद् थे। गोकाक ने कन्नड़ साहित्य को एक नई दिशा दी और आधुनिक कन्नड़ कविता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी गहरा प्रभाव डाला। उनकी रचनाएँ मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक चेतना से परिपूर्ण थीं। 28 अप्रैल 1992 को उनके निधन के साथ ही भारतीय साहित्य ने एक महान चिन्तक और सृजनधर्मी व्यक्तित्व को खो दिया।


टी. वी. सुन्दरम अयंगर (निधन: 1955)
टी. वी. सुन्दरम अयंगर भारतीय उद्योग जगत के अग्रणी उद्यमियों में से एक थे। उन्होंने ऑटोमोबाइल क्षेत्र में क्रांति लाते हुए 'टीवीएस ग्रुप' की स्थापना की, जो आज भारत की प्रमुख औद्योगिक कंपनियों में से एक है। अयंगर ने परिवहन सेवाओं के माध्यम से देश में व्यावसायिक और औद्योगिक विकास को गति दी। उनकी दूरदर्शिता और उद्यमशीलता ने दक्षिण भारत में आर्थिक प्रगति के नए रास्ते खोले। 28 अप्रैल 1955 को उनके निधन के साथ भारतीय उद्योग क्षेत्र ने एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व और महान स्वप्नदृष्टा को खो दिया।


बाजीराव प्रथम (निधन: 1740)
बाजीराव प्रथम मराठा साम्राज्य के महान सेनानायक थे, जिन्होंने अपने नेतृत्व में मराठा शक्ति को उत्तर भारत तक फैलाया। वे अपराजित योद्धा माने जाते हैं और उनकी सैन्य रणनीतियाँ आज भी अध्ययन का विषय हैं। पेशवा बाजीराव ने कई सफल युद्ध अभियानों का नेतृत्व किया, जिससे मराठों का प्रभाव पूरे भारत में बढ़ा। उनकी जीवन गाथा वीरता, रणनीति और समर्पण का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1740 को उनके निधन के साथ मराठा साम्राज्य ने अपना सबसे सक्षम और विजयी सेनापति खो दिया। उनकी वीरता भारतीय इतिहास में अमर है।


मस्तानी (निधन: 1740)
मस्तानी, बाजीराव प्रथम की दूसरी पत्नी थीं, जो अपनी सुंदरता, कला प्रेम और वीरता के लिए प्रसिद्ध थीं। वह एक मुस्लिम राजकुमारी थीं और बाजीराव के साथ उनके प्रेम संबंध इतिहास में एक अमर कथा बन गए। मस्तानी ने न केवल बाजीराव का दिल जीता, बल्कि कठिनाइयों के बावजूद अपने प्रेम को दृढ़ता से निभाया। बाजीराव की मृत्यु के बाद वह भी गहरे दुःख में चली गईं और कुछ समय बाद उनका निधन हो गया। मस्तानी का जीवन प्रेम, संघर्ष और बलिदान की अनूठी कहानी है, जिसे इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है।


फ़र्रुख़सियर (निधन: 1719)
फ़र्रुख़सियर मुग़ल सम्राट बहादुर शाह प्रथम के पुत्र थे और 1713 से 1719 तक मुग़ल सम्राट रहे। उनके शासनकाल के दौरान सैयद बंधुओं का प्रभाव अत्यधिक बढ़ गया था। हालांकि शुरूआत में उन्होंने शासन में कई सुधार करने के प्रयास किए, लेकिन बाद में आंतरिक संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता के कारण उनका पतन हुआ। अंततः सैयद बंधुओं द्वारा उन्हें गद्दी से हटाकर बंदी बनाया गया और उनकी हत्या कर दी गई। 28 अप्रैल 1719 को उनके निधन के साथ एक अशांत और संघर्षपूर्ण युग का अंत हुआ।

28 अप्रैल के महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव
28 अप्रैल को दुनियाभर में 'विश्व श्रम सुरक्षा एवं स्वास्थ्य दिवस' (World Day for Safety and Health at Work) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य कार्यस्थलों पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के महत्व को उजागर करना और श्रमिकों के लिए बेहतर कार्य परिस्थितियों को सुनिश्चित करना है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने इस दिवस की शुरुआत 2003 में की थी। इसके अलावा कुछ देशों में 28 अप्रैल को 'मृत श्रमिकों की स्मृति दिवस' (Workers' Memorial Day) भी मनाया जाता है, जिसमें काम के दौरान जान गंवाने वाले श्रमिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।

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