राज्यसभा और लोकसभा सांसद में क्या है अंतर, किसके पास ज्यादा अधिकार? राष्ट्रपति ने 4 नए सदस्य मनोनीत किए

Rajya Sabha MP: राज्यसभा के नए सदस्य के तौर पर वकील उज्जवल देवराव निकम, पूर्व विदेश सचिव रहे हर्ष वर्धन श्रृंगला, समाजसेवी सी. सदानंदन मास्टर और शिक्षाविद डॉ मीनाक्षी जैन को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मनोनीत किया है. इसी बहाने आइए जानते हैं, राज्यसभा और लोकसभा सांसद में क्या है अंतर? कैसे होता है इनका चुनाव और इनके अधिकार क्या हैं?

Jul 14, 2025 - 05:49
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राज्यसभा और लोकसभा सांसद में क्या है अंतर, किसके पास ज्यादा अधिकार? राष्ट्रपति ने 4 नए सदस्य मनोनीत किए
राज्यसभा और लोकसभा सांसद में क्या है अंतर, किसके पास ज्यादा अधिकार? राष्ट्रपति ने 4 नए सदस्य मनोनीत किए

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्य सभा के लिए चार नए सदस्यों को मनोनीत किया है. इनमें मशहूर वकील उज्जवल देवराव निकम, पूर्व विदेश सचिव रहे हर्ष वर्धन श्रृंगला, समाजसेवी एवं शिक्षाविद सी. सदानंदन मास्टर, शिक्षाविद डॉ मीनाक्षी जैन के नाम शामिल हैं. इनका कार्यकाल छह साल का होगा. इस मनोनयन के बहाने आइए जानते हैं कि राज्यसभा और लोकसभा सांसद में क्या अंतर होता है? इनके सदस्यों का चुनाव की प्रक्रिया क्या है? इनके अधिकार क्या हैं? इन दोनों ही सदन का देश के विकास में क्या महत्व है? इन सदस्यों को हर साल क्षेत्र के विकास के लिए कितनी रकम मिलती है?

भारतीय संसद दो सदनों से मिलकर बनी है. राज्यसभा यानी ऊपरी सदन और लोकसभा यानी निचला सदन. ये दोनों सदन भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ हैं, जिनका गठन, कार्य, अधिकार और जिम्मेदारियां अलग-अलग हैं.

राज्यसभा और लोकसभा सांसद में क्या अंतर है?

राज्यसभा और लोकसभा, दोनों ही संसद के सदस्य होते हैं, लेकिन इनकी भूमिका, चयन प्रक्रिया, कार्यकाल और अधिकारों में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं. लोकसभा को जनता का सदन कहा जाता है, क्योंकि इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं. राज्यसभा को राज्यों का सदन कहा जाता है, क्योंकि इसके सदस्य राज्यों की विधानसभाओं द्वारा चुने जाते हैं और यह राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं. राज्य सभा में राष्ट्रपति के पास यह अधिकार है कि वे देश के किसी भी ऐसे नागरिक को सदस्य मनोनीत कर सकते हैं, जो अपने क्षेत्र के एक्सपर्ट हों.

लोकसभा संसद का निचला सदन है, जिसे ‘हाउस ऑफ द पीपल’ भी कहा जाता है और राज्य सभा संसद का ऊपरी सदन है, जिसे ‘काउंसिल ऑफ स्टेट्स’ कहा जाता है.

दोनों सदन में सदस्यों की संख्या

लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं, जिसमें 530 सदस्य राज्यों से, 20 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों से और दो सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते रहे हैं (अब यह प्रावधान समाप्त हो चुका है) वर्तमान में लोकसभा में 543 निर्वाचित सदस्य हैं. राज्यसभा में अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिसमें 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से निर्वाचित होते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए नामित किए जाते हैं. वर्तमान में राज्यसभा में 245 सदस्य हैं.

लोकसभा सदस्य एवं राज्यसभा सदस्यों के चयन की प्रक्रिया

लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं. भारत को कई संसदीय क्षेत्रों में बांटा गया है, प्रत्येक क्षेत्र से एक सदस्य चुना जाता है. चुनाव ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली के तहत होते हैं, यानी जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, वही विजेता होता है. लोकसभा का कार्यकाल प्रायः पाँच साल होता है. राज्यसभा के सदस्य राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य चुनते हैं. चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत के आधार पर होते हैं. राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्य बिना चुनाव के सीधे नियुक्त किए जाते हैं.

कितना होता है कार्यकाल?

लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है. यदि आवश्यक हो तो राष्ट्रपति आपातकाल की स्थिति में इसे बढ़ा सकते हैं, लेकिन सामान्यतः पांच वर्ष बाद लोकसभा भंग कर दी जाती है और नए चुनाव होते हैं. राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसे कभी भंग नहीं किया जाता. इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं और उनकी जगह नए सदस्य चुने जाते हैं. प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष का होता है.

लोकसभा के अध्यक्ष एवं राज्य सभा के सभापति सदन के मुखिया होते हैं. लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सदन के सदस्य मिलकर करते हैं जबकि राज्य सभा के सभापति का चुनाव नहीं होता. देश के उप राष्ट्रपति ही सभापति के रूप में राज्य सभा का संचालन करते हैं. उनकी मदद के लिए उप सभापति के रूप में वरिष्ठ सदस्यों को चुना जाता है.

अधिकार और कार्य क्षेत्र की सीमा

लोकसभा के पास वित्तीय मामलों में अधिक अधिकार हैं. बजट, धन विधेयक (Money Bill) आदि केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं. लोकसभा सरकार को गिराने या बनाए रखने का अधिकार रखती है, क्योंकि प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं. अविश्वास प्रस्ताव भी केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है. राज्यसभा के पास कुछ विशेष अधिकार हैं, जैसे संविधान के अनुच्छेद 249 के तहत यदि राज्यसभा दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करती है कि किसी राज्य विषय पर संसद को कानून बनाना चाहिए, तो संसद को उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है.

सामान्य विधेयकों के मामले में दोनों सदनों की समान भूमिका होती है, लेकिन धन विधेयकों के मामले में लोकसभा का वर्चस्व है. यदि दोनों सदनों में मतभेद हो, तो संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है, जिसमें लोकसभा का बहुमत निर्णायक होता है.

विकास के लिए इन्हें हर साल कितनी रकम मिलती है?

भारत सरकार सांसदों को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (MPLADS) के तहत धनराशि देती है. इसके तहत राज्यसभा एवं लोकसभा के हर सदस्य को हर वर्ष पांच करोड़ रुपए दिए जाते हैं. इस राशि का उपयोग सांसद अपने क्षेत्र में सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों, सामुदायिक भवनों आदि के निर्माण और विकास कार्यों के लिए कर सकते हैं. यह राशि सीधे जिला प्रशासन को दी जाती है, और सांसद केवल अनुशंसा कर सकते हैं कि किस कार्य के लिए पैसा खर्च किया जाए. राज्यसभा सांसद अपने राज्य के किसी भी जिले में यह राशि खर्च कर सकते हैं, जबकि लोकसभा सांसद केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही खर्च कर सकते हैं। इसी तरह राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत सांसद अपने कोटे की रकम देश के किसी भी हिस्से में विकास के लिए दे सकते हैं.

राज्यसभा और लोकसभा, दोनों ही भारतीय लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं. लोकसभा जनता की सीधी आवाज है, जबकि राज्यसभा राज्यों के हितों की रक्षा करती है. दोनों सदनों की संरचना, कार्यकाल, चयन प्रक्रिया और अधिकारों में भिन्नता होते हुए भी, इनका उद्देश्य देश के कानून निर्माण, नीति निर्धारण और लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करना है. सांसदों को मिलने वाली विकास निधि से वे अपने क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन दोनों सदनों की संतुलित भूमिका और पारदर्शिता ही भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का आधार है.

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