क्या है तिब्बत के रक्षक देवता की दोलग्याल साधना? जिसे दलाई लामा ने समाज विरोधी बताया

Dolgyal practice: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने सार्वजनिक रूप से डोरजे शुगदेन साधना का विरोध किया. इसे दोलग्याल साधना भी कहते हैं. यह पहला मौका नहीं है जब उन्होंने इसे समाज विरोधी बताया है. जानिए क्या है दोलग्याल साधना, यह किस देवता से जुड़ी है, इसके समर्थक साधना को क्यों जरूरी मानते हैं और दलाई लामा ने इसका विरोध क्यों किया है.

Jul 12, 2025 - 19:27
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क्या है तिब्बत के रक्षक देवता की दोलग्याल साधना? जिसे दलाई लामा ने समाज विरोधी बताया
क्या है तिब्बत के रक्षक देवता की दोलग्याल साधना? जिसे दलाई लामा ने समाज विरोधी बताया

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने दोलग्याल साधना को समाज विरोधी बताया है. उनके समर्थक इसे समाज-विरोधी, विभाजनकारी और धार्मिक सहिष्णुता के विरुद्ध मानते हैं. दोलग्याल साधना या Dorje Shugden Practice पूजा तिब्बती बौद्ध धर्म के भीतर एक अत्यंत विवादास्पद धार्मिक परंपरा है, जो मुख्यतः गेलुग्पा संप्रदाय से जुड़ी है. इस साधना में डोरजे शुगदेन नामक एक रक्षक देवता की पूजा की जाती है, जिसे कुछ अनुयायी तिब्बती बौद्ध धर्म की शुद्धता और परंपरा की रक्षा करने वाला मानते हैं.

जानिए क्या है दोलग्याल साधना, यह किस देवता से जुड़ी है, इसके समर्थक साधना को क्यों जरूरी मानते हैं और दलाई लामा ने इसका विरोध क्यों किया है.

कैसे और कब शुरू हुई दोलग्याल साधना?

डोरजे शुगदेन की पूजा की शुरुआत 17वीं शताब्दी में मानी जाती है, जब तिब्बती बौद्ध धर्म के भीतर विभिन्न संप्रदायों के बीच प्रतिस्पर्धा और मतभेद उभरने लगे थे. गेलुग्पा परंपरा के कुछ अनुयायियों ने डोरजे शुगदेन को एक ऐसे रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित किया, जो उनकी परंपरा की रक्षा करता है.

इस साधना के अनुयायी मानते हैं कि डोरजे शुगदेन की पूजा से न केवल व्यक्तिगत, बल्कि संप्रदायिक कल्याण और सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है. 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, जब तिब्बत पर चीनी नियंत्रण बढ़ा और तिब्बती समाज निर्वासन में गया, तब डोरजे शुगदेन साधना का महत्व और विवाद, दोनों ही बढ़ गए. कई तिब्बती बौद्ध भिक्षु और साधक इस पूजा को अपनी पहचान और परंपरा से जोड़कर देखने लगे.

Dorje Shugden Dolgyal Practice History

दलाई लामा का विरोध और उसके कारण

1996 में, 14वें दलाई लामा ने सार्वजनिक रूप से डोरजे शुगदेन साधना का विरोध किया. उन्होंने इसे तिब्बती समाज के लिए हानिकारक और समाज-विरोधी करार दिया. दलाई लामा के अनुसार, यह साधना तिब्बती बौद्ध धर्म के भीतर गहरे विभाजन को जन्म दे रही है. उनके अनुसार, डोरजे शुगदेन की पूजा करने वाले अनुयायी अन्य बौद्ध संप्रदायों, विशेषकर न्यिंगमा परंपरा, की निंदा करते हैं और धार्मिक सहिष्णुता की भावना को कमजोर करते हैं.

दलाई लामा ने तिब्बती समुदाय से आग्रह किया कि वे इस साधना का त्याग करें, ताकि समाज में एकता और समन्वय बना रहे. उनका मानना था कि तिब्बती समाज को बाहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए आंतरिक एकता की आवश्यकता है, और डोरजे शुगदेन साधना इस एकता के लिए खतरा है.

समाज में विवाद और विभाजन

दलाई लामा के विरोध के बाद तिब्बती समाज में गहरा विवाद उत्पन्न हुआ. कई अनुयायियों ने डोरजे शुगदेन की पूजा छोड़ दी, लेकिन कुछ समूह इससे अलग हो गए और स्वतंत्र रूप से अपनी साधना जारी रखी. इन समूहों ने दलाई लामा पर धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का आरोप लगाया और कहा कि उन्हें अपनी आस्था के अनुसार पूजा करने का अधिकार है.

इस विवाद ने तिब्बती समाज को दो हिस्सों में बांट दिया. एक ओर वे लोग जो डोरजे शुगदेन साधना को पारंपरिक और पवित्र मानते हैं, और दूसरी ओर वे जो दलाई लामा के मार्गदर्शन को मानकर इसे त्याग चुके हैं. इस विभाजन ने न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर भी गहरे प्रभाव डाले.

तिब्बती परिवारों की पीड़ा और संघर्ष

डोरजे शुगदेन साधना के अनुयायियों को कई बार समाज में बहिष्कार, भेदभाव और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा. कई परिवारों ने दलाई लामा के सम्मेलनों में अपनी पीड़ा अनेक बार साझा भी की. उन्होंने कहा कि वर्षों से चली आ रही परंपरा को छोड़ना उनके लिए असंभव है, लेकिन समाज में उन्हें संदेह की नजर से देखा जाता है.

कुछ परिवारों को सामुदायिक आयोजनों से बाहर कर दिया गया, बच्चों को धार्मिक स्कूलों में प्रवेश नहीं मिला, और व्यापारियों को बायकॉट का सामना करना पड़ा. एक बुजुर्ग महिला ने दलाई लामा के सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, हमने अपने विश्वास के कारण सब कुछ खो दिया. रिश्तेदार, मित्र, सम्मान…उसने सवाल किया क्या यही धर्म है? यह बयान तिब्बती समाज में व्याप्त गहरे भावनात्मक और सामाजिक संघर्ष को दर्शाता है.

आस्था बनाम आज्ञाकारिता का द्वंद्व

कई तिब्बती अनुयायी इस द्वंद्व में फँस गए कि वे अपने गुरु दलाई लामा की आज्ञा मानें या अपने पारंपरिक रक्षक देवता की पूजा जारी रखें. उनके लिए डोरजे शुगदेन न केवल एक देवता, बल्कि पूर्वजों की परंपरा और पहचान का प्रतीक है. ऐसे में, साधना छोड़ना उनके लिए अपनी जड़ों से कट जाने जैसा था.

Dalai Lama Original Name

वर्तमान में 14वें दलाई लामा हैं और उनका नाम है तेनजिन ग्यात्सो. फोटो: Getty Images

दलाई लामा ने सबको सुना और की अपील

दलाई लामा ने इन परिवारों की पीड़ा को सुना और संवेदना व्यक्त की, लेकिन वे अपने रुख पर दृढ़ रहे. उन्होंने कहा कि मेरा उद्देश्य किसी को आहत करना नहीं है. परंतु यह साधना दीर्घकालीन रूप से तिब्बती समाज को विभाजित कर रही है. मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि एकजुट रहने के लिए हमें कुछ गलतियों से ऊपर उठना होगा.

चीन की लाभ लेने की कोशिश और वैश्विक संदर्भ

डोरजे शुगदेन विवाद केवल धार्मिक या सामाजिक स्तर तक सीमित नहीं रहा. चीन सरकार ने भी इस विवाद का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की. चीन ने डोरजे शुगदेन अनुयायियों को समर्थन देकर तिब्बती निर्वासित सरकार और दलाई लामा के नेतृत्व को कमजोर करने का प्रयास किया. इससे विवाद और भी जटिल हो गया, क्योंकि अब यह तिब्बती पहचान, धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीतिक संघर्ष का प्रतीक बन गया.

दोलग्याल (डोरजे शुगदेन) साधना का विवाद तिब्बती समाज, धर्म और राजनीति के जटिल ताने-बाने को उजागर करता है. यह केवल एक धार्मिक मतभेद नहीं, बल्कि पहचान, आस्था, परंपरा और नेतृत्व के बीच की गहरी खींचतान है. दलाई लामा के अनुसार, समाज की एकता और सहिष्णुता सर्वोपरि है, जबकि डोरजे शुगदेन के अनुयायियों के लिए यह साधना उनकी आत्मा और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है. यह विवाद आज भी तिब्बती समाज में गूंजता है, और शायद आने वाले समय में भी तिब्बती पहचान और धर्म के विमर्श का हिस्सा बना रहेगा.

उम्मीद की जा सकती है कि दलाई लामा की सेहत और उनके उत्तराधिकारी के चयन के बीच चीन इस मामले को अपने तरीके से तूल दे सकता है क्योंकि उसे पता है कि दलाई लामा के बाद जो भी तिब्बती धर्म गुरु बनेगा, उसका वह प्रभाव नहीं बन पाएगा. ऐसे में इस मौके का लाभ उठाते हुए चीन तिब्बत को पूरी तरह से अपने में शामिल कर लेने से पीछे नहीं हटेगा चाहे उसे दोलग्याल साधना करने वालों को अपनी ओर शामिल करने के भी कुछ ठोस प्रयास करना पड़े. इस सूरत में यह विवाद अभी और आगे जाने की संभावना है.

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