इस्लामी कट्टरपंथ की फांस में बांग्लादेश

शेख हसीना सरकार के तख्तापलट को जाहिर तौर पर कुछ शक्तियों का समर्थन प्राप्त था। उनका मानना था कि सरकार जिस तरह से काम कर रही थी, उसमें कुछ ‘लोकतांत्रिक कमी’ थी। हालांकि, बांग्लादेश को दिया गया उपचार इस बीमारी से भी बदतर है। ढाका में अब ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था है, जिसमें वैधता या संवैधानिक […]

Dec 11, 2024 - 15:04
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इस्लामी कट्टरपंथ की फांस में बांग्लादेश

शेख हसीना सरकार के तख्तापलट को जाहिर तौर पर कुछ शक्तियों का समर्थन प्राप्त था। उनका मानना था कि सरकार जिस तरह से काम कर रही थी, उसमें कुछ ‘लोकतांत्रिक कमी’ थी। हालांकि, बांग्लादेश को दिया गया उपचार इस बीमारी से भी बदतर है। ढाका में अब ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था है, जिसमें वैधता या संवैधानिक वैधता का अभाव है।

आलोक बंसल
निदेशक इंडिया फाउंडेशन

अमेरिका और उसके कुछ सहयोगियों को शायद यह लगा था कि जनवरी 2024 में चुनी गई शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थी। लेकिन वर्तमान व्यवस्था का लोगों से जनादेश या औपचारिक मंजूरी के लिए प्रस्ताव पारित करने का भी कोई इरादा नहीं है। यहां तक कि उसे न्यायिक जांच के अधीन होने में भी कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि असहमत न्यायाधीशों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया, जिससे न्यायपालिका इस प्रशासनिक व्यवस्था की सहायक कंपनी बन गई है, जिसकी कोई संवैधानिक वैधता नहीं है।

दरअसल, मौजूदा व्यवस्था जनादेश मांगने से इतना डरती है कि वह देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी पर ही प्रतिबंध लगाना चाहती है और जनादेश मांगने के बारे में सोचने से पहले बिना किसी समयसीमा के ‘चुनावी प्रणाली, संविधान और न्यायपालिका को पूरी तरह से सुधारना’ चाहती है। इसने पिछली सरकार पर पिछले 15 वर्ष में देश के शासन ढांचे को पूरी तरह से नष्ट करने का आरोप लगाया है, जबकि इस अवधि के दौरान देश ने शानदार आर्थिक विकास हासिल किया और अपनी एचडीआई रैंकिंग में अभूतपूर्व सुधार किया! दरअसल, बांग्लादेश पर शासन करने वाली वर्तमान मनमानी व्यवस्था न तो अंतरिम है और न ही तटस्थ, बल्कि इसमें कट्टरपंथी इस्लामिस्ट और ऐसे तत्वों का वर्चस्व है, जिन्होंने कभी बांग्लादेश की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं किया।

शेख हसीना सरकार ने 2016 में ढाका के गुलशन इलाके में होली आर्टिसन बेकरी पर हुए आतंकी हमले के बाद इस्लामी आतंकी संगठनों पर कार्रवाई की थी। इससे यह साफ हो गया था कि आईएस और अल-कायदा से जुड़े संगठनों ने बांग्लादेश में कितनी गहरी पैठ बना ली है। लेकिन सरकार की कार्रवाई के बाद कुछ कट्टरपंथी भूमिगत हो गए, जबकि अन्य यह दिखावा करते हुए विभिन्न राजनीतिक और सरकारी संगठनों में शामिल हो गए कि उनका आतंकी संगठनों से कोई संबंध नहीं है।

विडंबना यह है कि कई तो शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग में ही शामिल हो गए। हालांकि, सरकार के पतन के साथ ये सभी तत्व, विशेष रूप से जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लामी से जुड़े लोग अपना असली रंग दिखा रहे हैं और धीरे-धीरे सरकारी तंत्रों पर कब्जा कर रहे हैं। जेल में बंद आतंकियों और कट्टरपंथियों को रिहा किया जा रहा है। तख्तापलट के दौरान और उसके बाद 3,000 से अधिक पुलिसकर्मियों की निर्ममता से हत्या कर दी गई हैं।

होली आर्टिसन बेकरी पर आतंकवादी हमले में जान देने वाले पुलिसकर्मियों की याद में बने स्मारक को तोड़ दिया गया और प्रतिबंधित वैश्विक आतंकी संगठन हिज्ब उत-तहरीर ने वहां अपने पोस्टर लगा दिए। बांग्लादेश के उथल-पुथल भरे माहौल को और बिगाड़ने के लिए अंतरिम सरकार के अटॉर्नी जनरल, जो बीएनपी का नेता है, ने यहां तक कहा कि 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी के साथ संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ के लिए कोई जगह नहीं है। इससे विशेष रूप से पांथिक अल्पसंख्यकों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है, जिन्हें प्राय: अवामी लीग समर्थक माना जाता था।

अभी तक हिंसा में कई हिंदू नेता मारे गए हैं, हिंदू मंदिरों और बौद्ध मठों में तोड़फोड़ की गई है, चर्चों को ध्वस्त कर दिया गया है। यहां तक कि शिया और अहमदिया जैसे समुदायों को भी निशाना बनाया गया और उनके उपासना स्थलों को तोड़ा गया। कट्टरपंथी मुसलमानों ने हिंदुओं की मौत व विनाश के लिए सड़क पर आंदोलन किए। जब अल्पसंख्यकों ने विरोध किया तो प्रशासन ने इस्कॉन पर ही प्रतिबंध लगाने की धमकी दी। जमात के नेतृत्व वाले कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने कभी बांग्लादेश के निर्माण और इस्लामिक उम्माह के विभाजन का समर्थन नहीं किया। उनमें से कई अभी भी बांग्लादेश को पाकिस्तान का उपनिवेश बनाने का सपना संजोए हुए हैं, जबकि लगभग हर सामाजिक-आर्थिक संकेतक में बांग्लादेश पाकिस्तान से बहुत आगे है।

प्रशासन की कई कार्रवाइयां साफ तौर पर उनकी मंशा को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान से आयातित वस्तुओं की पूर्ण भौतिक जांच की आवश्यकता वाले नियम को हटा दिया गया है, जो बांग्लादेश में पाकिस्तान समर्थक तत्वों को हथियारों और गोला-बारूद के अवैध हस्तांतरण की सुविधा प्रदान कर सकता है। जिन अधिकारियों और नागरिक समाज के सदस्यों ने इस्लामी आतंक और 1971 के पाकिस्तानी सहयोगियों के खिलाफ आवाज उठाई थी, उन सभी की नौकरी चली गई। उन्हें झूठे आरोपों में जेल में डाल दिया गया। पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश को बड़ी मात्रा में तोपखाने के गोलों की आपूर्ति करने की खबरें पहले से ही हैं।

प्रशासन का पाकिस्तान समर्थक व इस्लामिस्ट रुझान बांग्लादेश को न केवल भारत विरोधी ताकतों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह के रूप में बदल सकता है, बल्कि 2001 में अफगानिस्तान की तरह अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े आतंकी संगठनों के लिए गढ़ भी बन सकता है। यहां पहले से ही अशिक्षित बच्चों की हिंसक नस्ल को भीड़ की घटनाएं पैदा करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। हिज्ब उत-तहरीर से जुड़े तीन सदस्य अब शक्तिशाली मंत्रालयों को नियंत्रित करने वाले ‘सलाहकार’ हैं।

देश में पश्चिम समर्थित वैश्विक वित्तीय संस्थानों के उदार समर्थन के बावजूद वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने या आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के सभी प्रयास विफल हो गए हैं। ये कट्टरपंथी विचारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और उन्हें बढ़ावा दे रहे हैं। बांग्लादेश के हालात को देखते हुए भारत को लगता है कि पूर्वोत्तर में सुरक्षा स्थिति बिगड़ सकती है, क्योंकि विभिन्न विद्रोही संगठनों को भारत विरोधी अन्य तत्वों से समर्थन हासिल करने और प्रशिक्षण आधार स्थापित करने के लिए बांग्लादेशी क्षेत्र उपलब्ध कराया जा सकता है। इससे भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ खतरे में पड़ जाएगी, क्योंकि भारत ने बांग्लादेश के साथ कई परिवहन संपर्क स्थापित किए हैं। बांग्लादेश में भारतीय निवेश खतरे में पड़ जाएगा, उसके साथ व्यापार भी प्रभावित होगा।

बांग्लादेश का कट्टरपंथ भारत में भी ऐसी ताकतों को नैतिक व भौतिक समर्थन प्रदान कर मजबूत करेगा। ‘कट्टरपंथी बांग्लादेश’ जिहाद के लिए खाद-पानी उपलब्ध कराने के अलावा जिहादियों को भारतीय क्षेत्र में सीमा पार आतंकी हमले शुरू करने के लिए सुरक्षित भूमि भी प्रदान कर सकता है। जो ताकतें बांग्लादेश को पाकिस्तान का लटकन बनाना चाहती हैं, वे पंथनिरपेक्षता व समाजवाद से ओत-प्रोत बंगाली राष्ट्रवाद के आदर्शों के आधार पर शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा बनाए गए प्रगतिशील राज्य को नष्ट कर रही हैं। फिलहाल इस्लामी ताकतें अपनी स्थिति मजबूत करने की प्रक्रिया में हैं। थोड़े से प्रयासों से उन्हें आसानी से हटाया जा सकता है, किंतु एक बार वे खुद को मजबूत कर लेंगी तो उन्हें हटाना मुश्किल होगा।

उधर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह समझना होगा कि डॉ. यूनुस के नेतृत्व वाली वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था की कोई संवैधानिक वैधता नहीं है। हालांकि, नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। कहने को वे अंतरिम सरकार के मुखिया हैं, पर वास्तविक शक्ति इस्लामवादियों के पास है। अवामी लीग व बीएनपी सहित सभी राजनीतिक दलों को इस अलोकतांत्रिक ढांचे को हटाने के लिए एक साथ आने की जरूरत है। मुक्ति वाहिनी के योद्धाओं, जिन्होंने बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त कराया और एक संप्रभु देश बनाया, उसे दूसरा अफगानिस्तान या पाकिस्तानी कठपुतली बनने से रोकने के लिए कहीं एक और मुक्ति संग्राम न लड़ना पड़ जाए।

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