विश्व प्रसिद्ध पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक ऐसी अलौकिक घटना होती है, जिसमें महाप्रभु की लौकिक लीला नजर आती है। भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलदेव और बहन सुभद्रा के साथ रथारूढ़ होकर मौसी के घर जाते हैं, इसलिए इसे रथ यात्रा कहा जाता है। शायद विश्व में यह पहली ऐसी घटना होती है, जब भगवान […] The post विश्व प्रसिद्ध पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा appeared first on VSK Bharat.

Jul 6, 2025 - 19:41
 0  13

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक ऐसी अलौकिक घटना होती है, जिसमें महाप्रभु की लौकिक लीला नजर आती है। भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलदेव और बहन सुभद्रा के साथ रथारूढ़ होकर मौसी के घर जाते हैं, इसलिए इसे रथ यात्रा कहा जाता है। शायद विश्व में यह पहली ऐसी घटना होती है, जब भगवान खुद भक्तों से मिलने के लिए अपने मंदिर से बाहर आते हैं। अन्यथा जब कभी ऐसे सार्वजनिक उत्सवों का आयोजन होता है तो मंदिरों में स्थापित प्रतिमा के स्थान पर उत्सव विग्रह को ही विराजमान कराया जाता है। जबकि पुरी के महाप्रभु श्री जगन्नाथ खुद चलकर भक्तों के बीच आते हैं। उनकी इस पावन यात्रा को घोष यात्रा, रथ यात्रा, मौसिमा यात्रा, पतितपावन यात्रा, जैसे कई नामों से पुकारा जाता है। अपने श्रीमंदिर के रत्न सिंहासन को छोड़कर भगवान 9 दिन तक बाहर रहते हैं। रथ यात्रा का यह कालखंड पुरी में उत्सव का समय होता है।

आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन महाप्रभु अपने रत्न सिंहासन से उतरकर पद पहुंड यानी पहंडी यात्रा के जरिए भक्तों के बीच आ पहुँचते हैं और रथारूढ़ होकर अपनी मौसी बाड़ी यानी गुंडीचा मंदिर की यात्रा पर निकल पड़ते हैं। यात्रा को देखने के लिए देश विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है। उस समय पुरी का चौड़ा रास्ता, जिसे स्थानीय भाषा में बडदाण्ड कहा जाता है, वह लोकारण्य हो जाता है। जिधर भी नजर दौड़ाएं, उधर मानव जन-समुदाय ही नजर आता है।

भगवान जगन्नाथ के साथ तीनों विग्रहों के तीन अलग-अलग रथ होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदी घोष कहलाता है, बलदेव जी का रथ तालध्वज एवं देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन या देववेलन कहलाता है।

रथ यात्रा में लोगों द्वारा खींचे जा रहे रथ पर सवार होकर महाप्रभु मौसी बाड़ी पहुंचते हैं। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से प्रारंभ होकर आषाढ़ शुक्ल द्वादशी को संपन्न होती है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को आरम्भ होने वाली यात्रा रथ यात्रा कहलाती है, मौसी बाड़ी में 7 दिन गुजारने के बाद 10वीं तिथि से भगवान वापसी यात्रा करते हैं, जिसे बाहुडा यात्रा कहा जाता है। इसे दक्षिणाभिमुखि यात्रा भी कहते हैं।

स्कंद पुराण के उत्कल खंड में रथयात्रा सहित पुरी का महात्म्य विस्तार से वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार महाप्रभु को आडप मंडप या गुंडीचा मंडप में दर्शन करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

लोककथा के अनुसार, गुंडीचा मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ का जन्म स्थान है। यहीं पर राजा इन्द्रद्युम्न  ने अश्वमेध यज्ञ कार्य संपन्न कराया था। गुंडीचा मंदिर में महाप्रभु को दशावतार वेश से सजाया जाता है। दशमी के दिन गुंडीचा मंदिर से अपने श्रीमंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं, वापसी यात्रा को बाहुडा यात्रा कहा जाता है।

एकादशी के दिन महाप्रभु पुरी के श्रीमंदिर के सम्मुख रथारूढ़ ही रहते हैं और वहां पर भगवान को सोने का वेश कराया जाता है, उन्हें स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। जिसे स्थानीय भाषा में सुनाभेष या स्वर्ण वेश कहा जाता है। इसे राजराजेश्वर वेश भी कहते हैं। स्वर्ण आभूषणों से लदे महाप्रभु का यह वेश देखने रथ यात्रा से भी अधिक संख्या में लोग जुटते हैं।

 

The post विश्व प्रसिद्ध पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा appeared first on VSK Bharat.

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

UP HAED सामचार हम भारतीय न्यूज़ के साथ स्टोरी लिखते हैं ताकि हर नई और सटीक जानकारी समय पर लोगों तक पहुँचे। हमारा उद्देश्य है कि पाठकों को सरल भाषा में ताज़ा, विश्वसनीय और महत्वपूर्ण समाचार मिलें, जिससे वे जागरूक रहें और समाज में हो रहे बदलावों को समझ सकें।