धर्मशाला में एलईडी स्क्रीन पर दोहरा खर्च:स्मार्ट सिटी ने 2.15 करोड़ में लगाई, निगम ने अलग से दिया ठेका

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के धर्मशाला स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में सार्वजनिक धन के उपयोग पर सवाल खड़े हो गए हैं। स्मार्ट सिटी ने शहर में 2.15 करोड़ रुपए की लागत से 10 एलईडी स्क्रीन लगाई हैं। इन स्क्रीन का उद्देश्य पर्यटकों को शहर की जानकारी देना और विज्ञापनों से आय अर्जित करना था। इधर धर्मशाला नगर निगम ने एक निजी ठेकेदार को 250 रुपए प्रति स्क्वायर फीट प्रति माह के हिसाब से एलईडी स्क्रीन लगाने का एग्रीमेंट दे दिया। ठेकेदार ने स्मार्ट सिटी की स्क्रीन के सामने ही अपनी एलईडी स्क्रीन लगा दी। इससे एक ही स्थान पर दो-दो स्क्रीन लग गई। प्रशासनिक स्तर पर तालमेल की कमी प्रशासनिक स्तर पर तालमेल की कमी भी सामने आई है। नगर निगम के ज्वाइंट कमिश्नर सुरिंद्र कटोच ने कहा कि उन्हें स्मार्ट सिटी की एलईडी स्क्रीन की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि निगम की तरफ से दी गई अनुमति नियमों के अनुसार है। हालांकि उन्होंने कहा कि अगर कहीं स्मार्ट सिटी की स्क्रीन के सामने निजी स्क्रीन लगी मिली, तो उन्हें हटवा दिया जाएगा। सार्वजनिक धन की बर्बादी यह मामला प्रशासनिक समन्वय की कमी, सार्वजनिक धन की बर्बादी और पारदर्शिता के अभाव को उजागर करता है। एक तरफ करोड़ों खर्च कर एलईडी लगाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उसी स्थान पर दूसरी एजेंसी को व्यवसायिक लाभ के लिए एलईडी लगाने की अनुमति दे दी जाती है। इससे स्मार्ट सिटी की मूल योजना और उद्देश्य को ठेस पहुंचती है। शहर के विकास की दिशा भटकी धर्मशाला जैसे पर्यटन स्थल में स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत की जा रही विकास योजनाएं अगर ऐसे ही विरोधाभासों और असंगठित कार्यप्रणाली से गुजरती रहीं, तो न केवल सार्वजनिक धन का दुरुपयोग होगा, बल्कि शहर के विकास की दिशा भी भटक सकती है। जरूरी है कि नगर निगम और स्मार्ट सिटी प्रबंधन के बीच स्पष्ट संवाद और तालमेल हो, ताकि ऐसी दोहरी योजनाएं भविष्य में न दोहराई जाए।

Apr 30, 2025 - 11:53
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धर्मशाला में एलईडी स्क्रीन पर दोहरा खर्च:स्मार्ट सिटी ने 2.15 करोड़ में लगाई, निगम ने अलग से दिया ठेका
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के धर्मशाला स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में सार्वजनिक धन के उपयोग पर सवाल खड़े हो गए हैं। स्मार्ट सिटी ने शहर में 2.15 करोड़ रुपए की लागत से 10 एलईडी स्क्रीन लगाई हैं। इन स्क्रीन का उद्देश्य पर्यटकों को शहर की जानकारी देना और विज्ञापनों से आय अर्जित करना था। इधर धर्मशाला नगर निगम ने एक निजी ठेकेदार को 250 रुपए प्रति स्क्वायर फीट प्रति माह के हिसाब से एलईडी स्क्रीन लगाने का एग्रीमेंट दे दिया। ठेकेदार ने स्मार्ट सिटी की स्क्रीन के सामने ही अपनी एलईडी स्क्रीन लगा दी। इससे एक ही स्थान पर दो-दो स्क्रीन लग गई। प्रशासनिक स्तर पर तालमेल की कमी प्रशासनिक स्तर पर तालमेल की कमी भी सामने आई है। नगर निगम के ज्वाइंट कमिश्नर सुरिंद्र कटोच ने कहा कि उन्हें स्मार्ट सिटी की एलईडी स्क्रीन की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि निगम की तरफ से दी गई अनुमति नियमों के अनुसार है। हालांकि उन्होंने कहा कि अगर कहीं स्मार्ट सिटी की स्क्रीन के सामने निजी स्क्रीन लगी मिली, तो उन्हें हटवा दिया जाएगा। सार्वजनिक धन की बर्बादी यह मामला प्रशासनिक समन्वय की कमी, सार्वजनिक धन की बर्बादी और पारदर्शिता के अभाव को उजागर करता है। एक तरफ करोड़ों खर्च कर एलईडी लगाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उसी स्थान पर दूसरी एजेंसी को व्यवसायिक लाभ के लिए एलईडी लगाने की अनुमति दे दी जाती है। इससे स्मार्ट सिटी की मूल योजना और उद्देश्य को ठेस पहुंचती है। शहर के विकास की दिशा भटकी धर्मशाला जैसे पर्यटन स्थल में स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत की जा रही विकास योजनाएं अगर ऐसे ही विरोधाभासों और असंगठित कार्यप्रणाली से गुजरती रहीं, तो न केवल सार्वजनिक धन का दुरुपयोग होगा, बल्कि शहर के विकास की दिशा भी भटक सकती है। जरूरी है कि नगर निगम और स्मार्ट सिटी प्रबंधन के बीच स्पष्ट संवाद और तालमेल हो, ताकि ऐसी दोहरी योजनाएं भविष्य में न दोहराई जाए।

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