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Jan 15, 2025 - 15:06
Jan 15, 2025 - 15:09
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हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका क्या है  आज के इस ब्लॉग मे जाने 

kya hai hindi patrakarita ki bhumika

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हिन्दी पत्रकारिता की भूमिका” के अन्तर्गत निम्नलिखित इकाईयाँ हैं :-

1- भाषायी पत्रकारिता अर्थ, स्वरूप एवं स्थति

2- भारत के संविधान में हिन्दी

3- हिन्दी भाषी प्रदेशों की हिन्दी पत्रकारिता

4- गैर हिन्दी राज्यों की हिन्दी पत्रकारिता

5- प्रयोजनमूलक हिन्दी और पत्रकारिता प्रशिक्षण केन्द्र भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है।

प्रजातंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में ज्ञात पत्रकारिता का भाषायी स्वरूप अत्यंत ही गौरवशाली रहा है। अंग्रेजी पत्रकारिता की ‘जी हुजूरी’ से हटकर भाषायी पत्रकारिता ने ‘करो या मरो’ तथा ‘आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ को सार्थक किया। पत्रकारिता द्वारा जन- चेतना का जागरण हुआ फलतः राष्ट्रभाषा हिन्दी को प्रतिष्ठापित किया गया।

भारत के संविधान में हिन्दी के चतुर्दिक विकास हेतु ठोस कदम उठाए गए। हिन्दी भाषी प्रदेशों ने हिन्दी पत्रकारिता को सर्वांशेन सुपुष्ट किया। भारत के गैर हिन्दी राज्यों ने राष्ट्रभाषा को गौरवान्वित किया तथा अनेक साप्ताहिक, पाक्षिक पत्रों के प्रकाशन द्वारा हिन्दी पत्र-जगत को समृद्ध किया। हिन्दी के प्रयोजनमूलक स्वरूप को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद तथा मोटूरि सत्यनारायण ने आगे बढ़ाया। कामकाजी, व्यवहारपरक प्रयोजनमूलक हिन्दी की समृद्धि द्वारा हिन्दी सेवकों ने राष्ट्रभाषा को जन-जन की भाषा बनायी।

लोकतन्व के चौथे स्तम्भ के रूप की पत्रकारिता का कदाचित् सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप है भाषायी पत्रकारिता। भारत में भाषायी पत्रकारिता का ऐतिहासिक योगदान रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसने सांस्कृतिक उत्थान का कार्य किया। भारतीय नवजागरण काल के समाज-सुधारकों ने भाषायी पत्रकारिता को एक मजबूत हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। राजा राममोहन राय, केशव चन्द्र सेन, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महादेव गोविन्द रानाडे, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, देवेन्द्रनाथ टैगोर आदि अनेक समाज सुधारक-नेताओं ने भाषायी पत्रों के माध्यम से देश की जनता और समाज को नई दिशा दी। स्वतंत्रता संग्राम को और गति देने के लिए राष्ट्रीय चेतना के प्रसार की ऐतिहासिक जरूरत थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने राष्ट्रीय चेतना के प्रसार के लिए भाषागी पत्रों का उपयोग किया।

आज स्वाधीनता की स्थिति में हमें भाषायी पत्रकारिता के ऐतिहासिक योगदान को भूलना नहीं चाहिए। भारतीय परतन्त्रता के दौरान अपने ऐतिहासिक दायित्व को निभाने के बाद भाषायी पत्रकारिता ने भारत की स्वतंत्रता के बाद, अपने स्वरूप को बदलकर महत्वपूर्ण प्रगति की है। स्वतन्त्रता के बाद विभित्र भारतीय भाषाओं में पत्र-पत्रिकाओं की प्रगति उल्लेखनीय है। भारतीय भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं ने अपना विस्तार कर अंग्रेजी पत्र- पत्रिकाओं के वर्चस्व को तोड़ा है।

प्रसार संख्या की दृष्टि से भारतीय भाषाओं की पत्र- पत्रिकाओं ने सर्वाधिक प्रसार संख्या का दावा करने वाली अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं के दावे पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। उदारीकरण, निजीकरण, भूमण्डलीकरण, सैटेलाइट टीवी के प्रसार और सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति के इस दौर में भारत की नई पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति और जीवन-मूल्यों को बड़ी तेजी से आत्मसात् कर रही है और भारत की मूल संस्कृति से दूर हो रही है। ऐसे दौर में भारत की विभिन्न भाषाओं के पत्र भारतीय कला एवं साहित्य का विकास कर भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने का जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं। भाषायी पत्र की यह मूलभूत विशेषता होती है कि वे लोगों की संवेदना से गहराई से जुड़े होते हैं। इस कारण लोग भी भाषायी पत्र-पत्रिकाओं से जुड़ाव महसूस करते हैं। ऐसी स्थिति में भारत में भाषायी पत्रकारिता के विकास की संभावनाएं असीम हैं।

भाषायी पत्रकारिता का अर्थ वैसे तो कोई भी पत्रकारिता किसी भाषा के अभाव में संभव नहीं है। जैसे पठन- पाठन, लेखन-अध्यापन आदि के लिए किसी भाषा की आवश्यकता पड़ती है, उसी तरह पत्रकारिता के लिए भी किसी न किसी भाषा का माध्यम के रूप में होना जरूरी है। पत्रकारिता सत्य, तथ्य, ज्ञान एवं विचारों को टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि और चित्रों के साथ लोगों तक पहुँचाने की एक कला है लेकिन हर भाषा की पत्रकारिता को हम भाषायी पत्रकारिता नहीं कर सकते। भाषायी पत्रकारिता का आशय देश-विदेश की भाषाओं में होने वाली पत्रकारिता से है। दूसरे शब्दों में, किसी देश की भाषायी पत्रकारिता का मतलब उस देश की भाषाओं में होने वाली पत्रकारिता है। उदाहरण के लिए भारत में भाषायी पत्रकारिता का अर्थ, भारत की भाषाओं, यथा हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, बंगला, उड़िया, असमिया, गुजराती, मराठी, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ आदि की पत्रकारिता से है। इस तरह हम देखते हैं कि विभिन्न देशों की भाषायी पत्रकारिता में अन्तर होता है। भारत में अंग्रेजी पत्रकारिता हमारे देश की भाषायी पत्रकारिता नहीं हो सकती, क्योंकि नाषायी पत्रकारिता देश-विशेष की संस्कृति, परम्परा, रीति-रिवाज, लोक-व्यवहार और संवेदना से गहरे रूप में जुड़ी होती है। इसी तरह इंग्लैण्ड में हिन्दी की पत्रकारिता वहाँ की भाषायी पत्रकारिता नहीं हो सकती, जबकि अंग्रेजी पत्रकारिता वहां की भाषायी पत्रकारिता कहलायेगी।

भाषायी पत्रकारिता के उदय की पृष्ठभमि भारत एक बहुभाषी देश है। भारत की यह बहुभाषिकता अतीत से ही रही है, यद्यपि समय के साथ उसके स्वरूप में बदलाव आता रहा है। भारत के इतिहास में कई बार बाहरी आक्रमणकारियों और विदेशी सत्ता ने भारत की बहुभाषी परम्परा और स्वरूप पर प्रहार करके, उसे छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की। इसके बावजूद भारत का बहुभाषिक स्वरूप बरकरार रहा है। इतिहास के अनेक कालखण्डों में राजनीतिक कारणों से अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी को सत्ता द्वारा प्रश्रय दिया गया लेकिन तमिल तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, हिन्दी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, बंगला, उड़िया, असमिया, कश्मीरी आदि देशी भाषाएं अपने पूरे वजूद के साथ आज भी मौजूद है। भारत में बोली जाने वाली भाषाओं और बोलियों की संख्या का ठीक-ठीक पता

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार- विचार और कार्य से आने वाले समय में अपनी मेहनत के प्रति लगन से समाज को बेहतर बना सकते हैं। जरूरत है कि वे अपनी ऊर्जा, साहस और ईमानदारी से र्काय के प्रति सही दिशा में उपयोग करें , Bachelor of Journalism And Mass Communication - Tilak School of Journalism and Mass Communication CCSU meerut / Master of Journalism and Mass Communication - Uttar Pradesh Rajarshi Tandon Open University पत्रकारिता- प्रेरणा मीडिया संस्थान नोएडा 2018 से केशव संवाद पत्रिका, प्रेरणा मीडिया, प्रेरणा विचार पत्रिका,