गोधरा कांड पर आधारित 'The Sabarmati Report' में पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल

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Nov 20, 2024 - 17:54
Nov 20, 2024 - 19:55
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गोधरा कांड पर आधारित 'The Sabarmati Report' में पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल

भारतीय सिनेमा में सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। इस श्रेणी में एक नई फिल्म 'द साबरमती रिपोर्ट' दस्तक दे चुकी है, जिसके टाईटल से ही पता लग रहा है कि इसकी कहानी गोधरा अग्निकांड पर आधारित है। यह फिल्म सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। फिल्म में विक्रांत मैसी के अलावा ऋद्धि डोगरा और राशी खन्ना जैसे अनुभवी अभिनेता प्रमुख भूमिकाओं में नजर आएंगे।

फिल्म रिलीज से पहले ही विवादों में घिर चुकी है। यह एक आम बात हो गई है कि जब भी कोई फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित होती है, तो कोई न कोई संगठन अपनी छवि को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाकर विवाद खड़ा कर देता है। मनोरंजन की पहचान बन चुकी फिल्मी दुनिया अब अतीत के उन पन्नों को उधेड़ने का दावा करने लगी है, जिनकी गूंज शायद लोगों के जेहन से मिट चुकी थी। इससे पहले भी 'द केरल स्टोरी', 'आर्टिकल 370', 'बस्तरः द नक्सल स्टोरी', 'माइनस 31', 'द नागपुर फाइल्स', 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर', और 'द यूपी फाइल्स' जैसी कई फिल्में इसी प्रकार के विवादों का सामना कर चुकी हैं।

फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ एक ऐसे कैमरामैन की कहानी है, जिसने भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) से पत्रकारिता का कोर्स किया और एक बड़े न्यूज़ चैनल में मनोरंजन बीट कवर करने वाले हिंदी पत्रकार की नौकरी पाई। गोधरा के पास ट्रेन में लगी आग के मामले की कवरेज करने गई स्टार रिपोर्टर के साथ उसे कैमरामैन बनाकर भेजा जाता है, लेकिन वह ‘मैडम’ की शूटिंग करने के साथ-साथ हादसे के चंद पीड़ितों के ऐसे बयान भी रिकॉर्ड कर लाता है, जो प्रसारित हो जाते तो शायद ये फिल्म बनने की नौबत ही नहीं आती। वह बयान डीवीसी टेप पर रिकॉर्ड करता है। चैनल की लाइब्रेरी इसे बीटा टेप पर ट्रांसफर कर रखती है। बाद में यह बीटा टेप चैनल की नई महिला जर्नलिस्ट को मिलता है, जो इस पुराने हिंदी पत्रकार को तलाशने निकल पड़ती है। फिल्म यह भी दिखाती है कि गुजरात पुलिस के हाथ भी पैसे के मामले में खुले रहे हैं।

यह हिंदी पत्रकार समर कुमार (विक्रांत मैसी) नौकरी जाने के बाद सुबह-शाम शराब के नशे में धुत रहने लगता है। वह घर में काम करने आने वाली सहायिका के पर्स से पैसे चुराता है और घर चलाने के लिए डबिंग का काम करता है। इसी दौरान वह इस नई पत्रकार के साथ गोधरा जाने को तैयार हो जाता है। फिल्म बार-बार यह दोहराती है कि हिंदी पत्रकारों की समाज में कोई इज्जत नहीं है। उनकी बात कोई सुनता नहीं है। यह क्लाइमेक्स के लिए सेटअप है, जब अंग्रेजी चैनल की रिपोर्टिंग को हिंदी चैनल का यह पत्रकार गलत साबित करता है। 

फिल्म 'द साबरमती रिपोर्ट' में नानावटी आयोग की रिपोर्ट, गुजरात हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया गया है। फिल्म 'एक्सीडेंट या कॉन्सपिरेसी गोधरा' की तरह यह दर्शकों को याद दिलाने की कोशिश करती है कि अयोध्या से लौट रहे 59 रामभक्तों को गोधरा में जिंदा जला दिया गया था। हालांकि, फिल्म में कुछ नाम ही स्क्रीन पर आते हैं, और यह सिलसिला अधूरा रह जाता है।

फिल्म का केंद्रबिंदु एंटरटेनमेंट बीट पर काम करने वाला हिंदी पत्रकार समर कुमार है। अंग्रेजी के पत्रकार उसे हेय दृष्टि से देखते हैं, जबकि उसी मीडिया हाउस की तेजतर्रार न्यूज एंकर मनिका राजपुरोहित (ऋद्धि डोगरा) का इंडस्ट्री में दबदबा है। फरवरी 2002 में हुए गोधरा कांड की रिपोर्टिंग करते हुए समर के हाथ कुछ ऐसे सबूत लगते हैं, जो इस घटना की सच्चाई सामने ला सकते हैं। हालांकि, मनिका अपने चैनल के बॉसेज के साथ मिलकर झूठी रिपोर्ट दिखाती है। समर इसका विरोध करता है और फुटेज वापस मांगता है। इस पर उसे चोरी के आरोप में नौकरी से निकाल दिया जाता है। 

नौकरी और गर्लफ्रेंड दोनों खो चुका समर शराबी बन जाता है। लेकिन पांच साल बाद नानावटी आयोग की रिपोर्ट आने पर मनिका अपनी पोल खुलने के डर से चैनल की नई रिपोर्टर अमृता (राशी खन्ना) को गोधरा भेजती है, ताकि वह एक नई कहानी गढ़ सके। अमृता को समर की पुरानी फुटेज मिल जाती है। वह समर को ढूंढकर गोधरा कांड की सच्चाई उजागर करने का निर्णय लेती है। लेकिन क्या अमृता अपने मिशन में सफल होती है? क्या शराबी समर उसका साथ देता है? यह जानने के लिए फिल्म देखनी होगी।

विक्रांत मैसी ने अपने किरदार में गहराई से उतरते हुए अपने अभिनय से प्रभावित किया है। उनकी आंखों में उनकी पीड़ा झलकती है। रिद्धि डोगरा ने मैन्युपुलेटिव न्यूज एंकर के रूप में दमदार प्रदर्शन किया है। राशि खन्ना ने अपने किरदार के साथ न्याय किया, लेकिन उनके किरदार को और अधिक विकसित किया जा सकता था। सहयोगी कलाकारों के चरित्र चित्रण को उपेक्षित कर दिया गया है, जिससे वे कहानी को मजबूत आधार नहीं दे पाते। 

तकनीकी पक्ष में ट्रेन जलने के दृश्यों में वीएफएक्स का सही उपयोग किया गया है। हालांकि, फिल्म का संगीत औसत है। फिल्म में तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है। उदाहरण के लिए, गोधरा कांड के समय फिल्म में एक महिला मुख्यमंत्री को दिखाया गया है, जबकि यह सही नहीं है। फिल्म में विशेष समुदाय पर की गई टिप्पणियां और कुछ दृश्य हास्यास्पद लगते हैं। हिंदी बनाम अंग्रेजी पत्रकारिता की लड़ाई का चित्रण दर्शकों को उलझन में डालता है। 

'द साबरमती रिपोर्ट' केवल एक घटना पर आधारित फिल्म नहीं है, बल्कि यह उस समाज की कहानी है, जो सत्य और झूठ के बीच अपनी जगह तलाशने की कोशिश कर रहा है। फिल्म पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाती है, जहां खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की प्रवृत्ति सामने आती है। हालांकि, विवादों और तथ्यों से छेड़छाड़ के चलते फिल्म अपनी पकड़ कुछ हद तक खो देती है, लेकिन इसके शानदार अभिनय और कुछ प्रभावशाली दृश्यों के कारण यह दर्शकों को सोचने और अपने आसपास की सच्चाई पर विचार करने के लिए मजबूर करती है। 

निर्देशन में धीरज सरना ने एक साहसिक कदम उठाया है, लेकिन कहानी के कुछ हिस्से संतुलन में थोड़े कमजोर लगते हैं और इसे प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने में वे पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। फिल्म पत्रकारिता पर सवाल उठाने का मौका देती है, जो भारतीय समाज के समक्ष एक चुनौती बनकर उभरता है।


समीक्षात्मक रिपोर्ट

आशुतोष शर्मा

(फिल्म समीक्षक)

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Abhishek Chauhan भारतीय न्यूज़ का सदस्य हूँ। एक युवा होने के नाते देश व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का लक्ष्य लिए पत्रकारिता में उतरा हूं। आशा है की आप सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। जिससे मैं देश में समाज के लिए कुछ कर सकूं। सादर प्रणाम।