RSS के विजयादशमी कार्यक्रम से मोहन भागवत का संबोधन

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी कार्यक्रम के दौरान महान विभूतियों, जैसे अहिल्‍याबाई होल्‍कर और दयानन्द सरस्वती, का स्मरण करते हुए उन्‍हें समाज और देश के प्रति उनके योगदान के लिए सराहा। उन्‍होंने कहा कि इन हस्तियों ने अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और देश के उत्‍थान के लिए कार्य किए। मोहन भागवत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विजयादशमी कार्यक्रम, अहिल्‍याबाई होल्‍कर, दयानन्द सरस्वती, शस्त्र पूजा, समाज सेवा, भारतीय संस्कृति, देश का भ्रमण, शक्ति संपन्‍न भारत, एकता और जागरूकता, नागपुर, संघ स्थापना, प्रेरणा, भारतीय समाज

Oct 12, 2024 - 08:55
Oct 12, 2024 - 09:31
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RSS के विजयादशमी कार्यक्रम से मोहन भागवत का संबोधन
mohan bhagwat

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष और महापुरुषों का स्मरण

आज नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी पर्व का भव्य आयोजन संपन्न हुआ, जिसमें प्रमुख अतिथि डॉ. कोपिल्लिल राधाकृष्णन जी ने मुख्य संबोधन दिया। इस आयोजन के साथ संघ अपने कार्य के 100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। कार्यक्रम के दौरान विदर्भ प्रांत के संघचालक, सह संघचालक, नागपुर महानगर के संघचालक समेत अनेक अधिकारी उपस्थित थे। नागपुर के नागरिकों, स्वयंसेवकों, और मातृशक्ति का भी कार्यक्रम में विशेष योगदान रहा।

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी कार्यक्रम के दौरान महान विभूतियों, जैसे अहिल्‍याबाई होल्‍कर और दयानन्द सरस्वती, का स्मरण करते हुए उन्‍हें समाज और देश के प्रति उनके योगदान के लिए सराहा। उन्‍होंने कहा कि इन हस्तियों ने अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और देश के उत्‍थान के लिए कार्य किए।

कार्यक्रम की शुरुआत नागपुर में 'शस्त्र पूजा' से हुई, जो हर साल दशहरे के अवसर पर आयोजित की जाती है। यह आयोजन संघ के सदस्‍यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्‍योंकि इसी दिन 27 सितंबर 1925 को संघ की स्‍थापना हुई थी। मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कई संदेश दिए, जिसमें उन्‍होंने भारतवासियों से अपने देश में यात्रा करने का आह्वान किया। उन्‍होंने कहा, "घर के अंदर भाषा, भोजन, वेशभूषा अपनी होनी चाहिए। यह हमारा अधिकार है। इसके साथ ही हमें अपने देश के स्‍थानों का भ्रमण करना चाहिए, जिससे हम अपने देश को जान सकें।"

भागवत ने समाज के नेताओं पर भी जोर दिया कि उन्‍हें ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे समाज को धक्का न लगे। उन्‍होंने कहा कि भारत को शक्ति संपन्‍न बनना पड़ेगा, क्‍योंकि दुर्बल रहने से काम नहीं बनेगा। उनके विचार में, जब समाज के बड़े लोग सही मार्ग पर चलेंगे, तो अन्य लोग भी उनसे प्रेरित होंगे।

महान विभूतियों का पुण्य स्मरण इस वर्ष संघ ने पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जन्मशती का उल्लेख किया। अहिल्याबाई होलकर एक कुशल शासक, धर्म संस्कृति की संरक्षिका और समाज के लिए एक आदर्श महिला थीं। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में अपनी कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया और समाज में सामरस्य और संस्कृति को पुनः स्थापित किया।

कार्यक्रम में महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती का भी स्मरण किया गया। दयानंद जी ने भारत की पराधीनता के समय समाज में आई विकृतियों को दूर करने का प्रयास किया और समाज को अपने मूल शाश्वत मूल्यों पर खड़ा किया।

सत्संग और सेवा का संदेश सत्संग अभियान के प्रवर्तक श्री श्री अनुकूलचंद्र ठाकुर जी के जीवन का भी उल्लेख किया गया, जिन्होंने चरित्र निर्माण और सेवा भावना को जागृत करने के लिए सत्संग अभियान की शुरुआत की। उनके द्वारा प्रवर्तित सत्संग धर्मार्थ संस्था की भी शताब्दी मनाई जा रही है, जो सेवा और संस्कार के विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से समाज को दिशा दे रही है।

भगवान बिरसा मुंडा का स्मरण आगामी 15 नवंबर से भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर उनके जीवन की प्रेरणाओं का भी स्मरण किया जाएगा। बिरसा मुंडा ने जनजातीय बंधुओं को शोषण और विदेशी वर्चस्व से मुक्ति दिलाने के लिए उलगुलान का नेतृत्व किया, जिसने जनजातीय समाज को आत्मसम्मान और अस्मिता का नया आधार दिया।

जीवन मूल्यों की प्रेरणा कार्यक्रम के अंत में संघ के सरसंघचालक ने महापुरुषों की जीवनशैली और मूल्यों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि निस्पृहता, निर्वैरता और निर्भयता महापुरुषों का स्वभाव रहा है। उनके जीवन से हमें संघर्ष, कर्तव्य और धैर्य का संदेश मिलता है। ऐसे महापुरुषों का स्मरण हमारे लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत है। 

श की प्रगति और चुनौतियों पर केंद्रित है, जिसमें वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की दिशा का विश्लेषण किया गया है।

आज का युग तकनीकी और विज्ञान के माध्यम से भौतिक प्रगति का है, जिससे जीवन को सुविधाओं से भरपूर बनाया गया है। हालाँकि, स्वार्थपूर्ण कलह और संघर्षों के कारण विनाश के खतरों का सामना भी करना पड़ रहा है। इस समय, इस्राएल और हमास के बीच जारी संघर्ष दुनिया के सामने गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। इसके अलावा, भारत में भी चुनौतियों और समस्याओं के साथ-साथ आशाओं और आकांक्षाओं की दिशा में निरंतर प्रगति देखी जा रही है।

देश की प्रगति: हाल के वर्षों में, भारत एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उभर रहा है, जिसकी विश्व में प्रतिष्ठा और साख बढ़ रही है। भारतीय संस्कृति, योग, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण को वैश्विक स्वीकृति प्राप्त हो रही है। समाज, विशेषकर युवा पीढ़ी, अपनी पहचान और गौरव के प्रति जागरूक हो रही है। चुनावी प्रक्रिया से लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थिरता और विकास हो रहा है।

भारत के विभिन्न वर्गों—युवा शक्ति, मातृशक्ति, किसान, श्रमिक, प्रशासन, शासन—ने मिलकर अपने योगदान से देश की छवि और प्रतिष्ठा को वैश्विक स्तर पर उन्नत किया है। परंतु इन उपलब्धियों के बीच कुछ चुनौतियाँ और षड्यंत्र भी उत्पन्न हो रहे हैं, जिन्हें समझना और उनसे निपटना आवश्यक है।

देश विरोधी कुप्रयास:  भारत की बढ़ती सशक्तता से कुछ बाहरी शक्तियाँ असहज हैं, जो देश की प्रगति में बाधा डालने की कोशिश कर रही हैं। भारत के खिलाफ असत्य या अधूरे तथ्यों के आधार पर छवि को खराब करने के प्रयास हो रहे हैं। इसके अलावा, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं, जिससे अवैध घुसपैठ और जनसंख्या असंतुलन जैसी समस्याएँ सामने आ रही हैं। इनसे निपटने के लिए समाज और सरकार दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

सांस्कृतिक हमले और चुनौतियाँ: समाज के अंदर के विभाजन और टकराव को बढ़ावा देने वाले षड्यंत्र भी हो रहे हैं। 'डीप स्टेट', 'वोकिज़्म', और 'कल्चरल मार्क्सिस्ट' जैसी विचारधाराएँ हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं को नष्ट करने की कोशिश कर रही हैं। समाज को शिक्षा, संवाद, और मीडिया के माध्यम से प्रभावित किया जा रहा है, जिससे लोग अपने संस्कारों और आस्थाओं से दूर हो रहे हैं। संस्कृति और समाज के विभाजन को रोकने के लिए जरूरी है कि हम अपने मूल्यों की रक्षा करें। यह काम न केवल सरकार का बल्कि समाज का भी है।

संस्कार क्षरण के दुष्परिणाम: संस्कारों का क्षरण हमारे समाज के सामने एक बड़ी चुनौती बन गया है। विशेषकर नयी पीढ़ी पर इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा है। मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से बच्चों और युवाओं तक अश्लील और हिंसक सामग्री आसानी से पहुँच रही है, जिस पर नियंत्रण की आवश्यकता है। नशीले पदार्थों का बढ़ता सेवन और युवाओं में व्याप्त नैतिक गिरावट भी समाज को कमजोर कर रही है।

महिलाओं के प्रति हमारी सांस्कृतिक दृष्टि में भी बदलाव आया है, जिसके कारण अपराध और बलात्कार जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। हमें परिवार, समाज और मीडिया के माध्यम से हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम करना होगा।

शक्ति और एकता का महत्व:  विभाजनकारी तत्व समाज को जाति, भाषा, और प्रांत के आधार पर तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पंजाब, जम्मू-कश्मीर, केरल, तमिलनाडु, पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश के कई हिस्सों में अस्थिरता बढ़ रही है।

समाज में बिना कारण कट्टरपन को बढ़ावा देने वाली घटनाएँ भी तेजी से बढ़ रही हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें एकजुट होकर जागरूकता फैलानी होगी। हमें अपनी सांस्कृतिक और वैचारिक एकता को मजबूत बनाते हुए, इन विभाजनकारी शक्तियों से सावधान रहना होगा।

देश ने हाल के वर्षों में जो प्रगति की है, वह हमारी आशाओं और आकांक्षाओं को साकार करने का मार्ग प्रशस्त कर रही है। हालाँकि, इन उपलब्धियों के बीच हमें सतर्क रहते हुए उन षड्यंत्रों और चुनौतियों का सामना करना होगा, जो हमारी एकता और अखंडता को खतरे में डाल सकते हैं।  राष्ट्र की शक्ति और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखना समय की मांग है, और इसके लिए समाज के हर वर्ग को मिलकर काम करना होगा।

संघ के शताब्दी वर्ष के बाद समाज में सक्रियता लाने के उद्देश्य से स्वयंसेवकों द्वारा कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जा रही है। इनमें सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और संस्कार जागरण जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। इन विषयों पर संघ के स्वयंसेवकों ने विचार किया है कि समाज के सज्जनों को सक्रिय करने के लिए इन बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए।

समरसता और सद्भावना  सामाजिक समरसता और विभिन्न वर्गों के बीच सद्भावना समाज की स्वस्थ और सबल स्थिति की पहली शर्त है। मात्र कुछ संकेतात्मक कार्यक्रमों से यह कार्य पूरा नहीं होता। इसके लिए समाज के सभी वर्गों और स्तरों में पारिवारिक और व्यक्तिगत मित्रता विकसित करना आवश्यक है। परस्पर पर्व-प्रसंगों में सहभागिता होनी चाहिए ताकि ये पूरे समाज के पर्व बन सकें। सार्वजनिक उपयोग जैसे मंदिर, पानी, और श्मशान जैसे स्थानों में सभी वर्गों की समान भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। समाज में सक्षम और दुर्बल घटकों के बीच परस्पर सहयोग की भावना जरूरी है, ताकि जरूरतमंद वर्गों की आवश्यकताओं को समझा जा सके और उनकी मदद की जा सके।

इसके अलावा, विभिन्न जातियों और वर्गों की संस्थाओं के नेतृत्व को मिलकर समाज में समरसता और सद्भाव का वातावरण बनाना चाहिए। ऐसे में जातियों और वर्गों के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है, और मिलकर समाज की उन्नति के लिए कार्य किया जा सकता है।

पर्यावरण संरक्षण   पर्यावरण संरक्षण एक वैश्विक समस्या है, जिसका प्रभाव अब भारत में भी स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। जलवायु परिवर्तन और ऋतुचक्र की अनियमितता के चलते हमें प्रकृति से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जंगलों की कटाई, नदियों का सूखना, और रसायनों के उपयोग से प्रदूषण बढ़ रहा है। संघ के अनुसार, पर्यावरण की सुरक्षा के लिए तीन सरल कदम उठाए जा सकते हैं: जल का न्यूनतम उपयोग, प्लास्टिक का पूर्णत: बहिष्कार, और हरियाली बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण। यह छोटे-छोटे कदम हमें अपने घर से ही शुरू करने चाहिए ताकि पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

संस्कार जागरण  संस्कारों का क्षरण भी एक बड़ी चुनौती है। संस्कार हमें परिवार, समाज, और शिक्षा से मिलते हैं। शिक्षा प्रणाली को केवल पेट भरने वाली शिक्षा पर केंद्रित न होकर छात्रों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा के साथ-साथ नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी शिक्षण होना जरूरी है, जिससे नई पीढ़ी में सही संस्कार विकसित हो सकें।

समाज में इन तीन प्रमुख बिंदुओं—समरसता, पर्यावरण, और संस्कार—पर कार्य करते हुए एक बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाया जा सकता है। संघ का उद्देश्य इन मुद्दों को लेकर समाज में सज्जनों को सक्रिय करना और एक समृद्ध, स्वस्थ और संस्कारित समाज का निर्माण करना है।

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्य और विचारधारा पर केंद्रित है, जो समाज में नैतिक और सांस्कृतिक जागरूकता लाने के उद्देश्य से है। संघ के अनुसार, व्यक्तियों में संस्कार और देशभक्ति की भावना बचपन से ही परिवार और समाज के वातावरण में विकसित होती है। यह भावना तब और प्रबल होती है जब समाज के प्रमुख लोग और शिक्षक इन मूल्यों को अपने आचरण में धारण करते हैं।

भाषण में बताया गया है कि समाज के प्रमुख व्यक्तियों, शिक्षकों, और मीडिया का यह कर्तव्य है कि वे समाज में सुसंस्कृत आचरण और नैतिकता का प्रचार करें। इसी प्रकार, संविधान और कानून के पालन पर भी बल दिया गया है, ताकि समाज एकजुट और व्यवस्थित रह सके। परिवार से शुरू होने वाली नैतिक शिक्षा और समाज में नागरिक अनुशासन को बनाए रखना राष्ट्रीय चरित्र निर्माण का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इसके साथ ही, स्वदेशी के विचार पर जोर देते हुए यह बताया गया है कि देश की आर्थिक स्वावलंबन और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए स्वदेशी उत्पादों का उपयोग और समर्थन आवश्यक है। यह स्वाभिमान और स्व गौरव का प्रतीक है, जो देश की समृद्धि और एकता के लिए अनिवार्य है।

भाषण में यह भी उल्लेख किया गया है कि शक्तिशाली होना और नैतिकता का पालन करना, दोनों ही समाज में शांति और उन्नति का आधार हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस दृष्टिकोण से समाज को संगठित और सशक्त करने के प्रयास में लगा हुआ है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी कार्यक्रम में समाज सेवा और महान हस्तियों की योगदान की बात की। उन्होंने भारतवासियों से देश में यात्रा करने की अपील की और एक शक्ति संपन्‍न भारत का संदेश दिया

इस विचारधारा का प्रचार संघ के स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज में किया जा रहा है, ताकि भारत के सर्वांगीण विकास में यह शक्ति और शील संपन्नता का योगदान दे सके।

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