अगस्त क्रांति 1942: भारत की स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक मोड़ 9 अगस्त को सुरू हुई थी 

9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने गांधी जी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद सहित कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद, आंदोलन थमा नहीं

Aug 9, 2024 - 13:43
Aug 9, 2024 - 14:04
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अगस्त क्रांति 1942: भारत की स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक मोड़ 9 अगस्त को सुरू हुई थी 

अगस्त क्रांति 1942: भारत की स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक मोड़ 9 अगस्त को सुरू हुई थी 

अगस्त 1942 का महीना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अद्वितीय मोड़ के रूप में दर्ज है। यह वह समय था जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 'भारत छोड़ो आंदोलन' का बिगुल बजाया। इस आंदोलन का उद्देश्य केवल अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराना नहीं था, बल्कि देशवासियों में स्वतंत्रता के प्रति एक ज्वलंत भावना जगाना था।

आंदोलन के पीछे का कारण अंग्रेजों ने भारत को बिना किसी सहमति के युद्ध

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान अंग्रेजों ने भारत को बिना किसी सहमति के युद्ध में शामिल कर लिया था। भारतीय नेताओं ने इसका विरोध किया और मांग की कि युद्ध में भारतीय समर्थन तभी मिलेगा जब भारत को स्वतंत्रता का आश्वासन दिया जाए। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया। इससे भारतीयों में व्यापक असंतोष फैल गया और यह साफ हो गया कि अब बिना किसी बड़े आंदोलन के स्वतंत्रता संभव नहीं है।

महात्मा गांधी ने इस स्थिति को भांपते हुए 8 अगस्त 1942 को बंबई (अब मुंबई) में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में 'भारत छोड़ो' का नारा दिया। गांधी जी ने अंग्रेजों से कहा, "अंग्रेजों, भारत छोड़ो" और देशवासियों से कहा, "करो या मरो।" इस नारे ने पूरे देश में स्वतंत्रता की लहर पैदा कर दी।

अगस्त क्रांति की शुरुआत जगह-जगह हड़तालें

9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने गांधी जी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद सहित कांग्रेस के तमाम प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद, आंदोलन थमा नहीं, बल्कि और भी उग्र हो गया। जगह-जगह हड़तालें, प्रदर्शनों और हिंसक गतिविधियों का सिलसिला शुरू हो गया।

आम जनता ने रेलवे स्टेशनों, डाकघरों, सरकारी भवनों और पुलिस थानों पर हमले किए। अंग्रेजी सरकार को इस आंदोलन की तीव्रता का अंदाजा नहीं था, और उसे इसे दबाने के लिए भारी बल प्रयोग करना पड़ा। हजारों भारतीयों को गिरफ्तार किया गया, सैकड़ों मारे गए, और लाखों लोगों ने इस आंदोलन में भाग लिया।

प्रमुख नेता और भागीदारी आंदोलन के प्रमुख नेता थे

महात्मा गांधी, इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे। उनके अलावा, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, अरुणा आसफ अली, जयप्रकाश नारायण, और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे प्रमुख नेता इस आंदोलन में शामिल थे। इन नेताओं ने भारतीय जनता को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित करने में अहम भूमिका निभाई।

अरुणा आसफ अली ने बंबई के गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराया, जो इस आंदोलन का प्रतीक बन गया। उन्होंने भारतीय महिलाओं को आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेताओं ने भूमिगत आंदोलनों का नेतृत्व किया और युवाओं को संगठित किया।

आंदोलन का प्रभाव और परिणाम भारत के लिए आज का दिन भारत छोड़ो आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी। ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए जबरदस्त दमन किया, लेकिन वह भारतीयों की स्वतंत्रता की इच्छा को दबा नहीं पाई। आंदोलन ने भारतीयों में स्वतंत्रता के प्रति एक अटूट विश्वास और एकजुटता पैदा की।

अंग्रेजों को यह समझ में आ गया कि अब भारत को लंबे समय तक गुलाम बनाए रखना संभव नहीं है। इसके बाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने गति पकड़ी और 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।

अगस्त क्रांति 1942 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। इसने न केवल अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन ने देशवासियों के मन में स्वतंत्रता की जो ज्वाला जगाई, उसने अंततः अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम और सबसे सशक्त चरण था, जिसने भारत को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया। आज भी, अगस्त क्रांति का स्मरण हमें स्वतंत्रता की कीमत और उन वीर सेनानियों के त्याग की याद दिलाता है, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर हमें आज़ादी दिलाई।

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@Dheeraj kashyap युवा पत्रकार