कश्मीर पाकिस्तान को दिया तो क्या 12 करोड़ मुसलमान वहां जाएंगे? जब पूर्व PM चंद्रशेखर ने नवाज को सुनाई खरी-खरी

Chandrashekhar Death Anniversary: सार्क सम्मेलन में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और नवाज शरीफ के बीच कश्मीर का मुद्दा उठा था. चंद्रशेखर का साफ कहना था कि कश्मीर को तो आप भूल ही जाइए. जिस दिन भारत की कोई सरकार पाकिस्तान को कश्मीर देने को रजामंद होगी, उसी दिन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा. तब यहां के मुसलमान कहां जाएंगे?

Jul 8, 2025 - 05:55
 0  7
कश्मीर पाकिस्तान को दिया तो क्या 12 करोड़ मुसलमान वहां जाएंगे? जब पूर्व PM चंद्रशेखर ने नवाज को सुनाई खरी-खरी
कश्मीर पाकिस्तान को दिया तो क्या 12 करोड़ मुसलमान वहां जाएंगे? जब पूर्व PM चंद्रशेखर ने नवाज को सुनाई खरी-खरी

चंद्रशेखर ने नवाज़ शरीफ़ से कहा था कि जिस दिन भारत की कोई सरकार पाकिस्तान को कश्मीर देने को रजामंद होगी, उसी दिन भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा. तब यहां के मुसलमान कहां जाएंगे? इसलिए कश्मीर हमारे लिए जमीन का नहीं सिद्धांत का सवाल है. लंबे राजनीतिक जीवन में अपनी बेबाक बयानी और दो टूक बोलने के लिए मशहूर चंद्रशेखर का प्रधानमंत्री का कार्यकाल चंद महीनों का था. सार्क सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से उनकी मुलाकात हुई.

अकेले में बातचीत के दौरान चंद्रशेखर ने शरीफ़ से कहा, “नवाज़ साहब, कोई भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री वहां के लोगों को कश्मीर नहीं दिला सकता. और जो लड़ाई के विषय में सोचते हों तो मैं आपको बता दूं कि लड़कर तो आप कश्मीर ले नहीं सकते हैं, क्योंकि लड़ाई में तो कभी जीतेंगे नहीं. कुछ लोगों को मार भले सकते हैं. मामला हमने-आपने नहीं शुरू किया है. मामला उसी दिन शुरू हुआ जिस दिन देश दो हिस्सों में बंट गया. “

कश्मीर जमीन नहीं, सिद्धांतों का सवाल

वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने अपनी किताब “रहबरी के सवाल” में चंद्रशेखर से पूछा था कि क्या भारत-पाकिस्तान समस्या का हल संभव है? चंद्रशेखर ने नवाज़ शरीफ और अपनी मुलाकात का जिक्र करते हुए बताया था कि कश्मीर हमारे लिए जमीन का नहीं बल्कि सिद्धांतों का सवाल है. उन्होंने शरीफ़ से कहा था, “जिस दिन हम आपको कश्मीर देंगे ,उस दिन एक ही सवाल उठेगा कि क्या 12 करोड़ मुसलमान भी साथ जायेंगे?

नवाज़ शरीफ़ कहने लगे, यह कैसे हो सकता है ?” चंद्रशेखर ने जवाब दिया था कि अगर भारत की कोई भी सरकार कश्मीर देगी, उसको उसी दिन यहां हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा और जब हिन्दू राष्ट्र बनेगा तो मुसलमान बेचारा कैसे रहेगा? आपके पास कोई रास्ता हो तो बताएं ?”

भूल जाइए कश्मीर

चंद्रशेखर ने शरीफ़ को कश्मीर को भूल जाने की सलाह दी थी. शरीफ़ ने चंद्रशेखर से पूछा था कि दोनों मुल्कों के रिश्ते कैसे सुधरेंगे ? चंद्रशेखर ने जवाब में कहा था, ” कश्मीर को भूल जाइए और दोस्ती की शुरुआत पंजाब से करें. हमने उनको दस – पंद्रह लोगों की सूची दी और कहा ये लोग आपके देश में छिपे हैं. इन्हें कहिए कि आकर बातचीत करें और अगर बातचीत सफल नहीं हुई तो जहां से वे आयेंगे ,वहां सुरक्षित पहुंचा दिए जाएंगे.

कश्मीरी पंडितों की बात करूं तो कहलाऊं संघी

चंद्रशेखर कश्मीरी पंडितों के लिए भी व्यथित थे. उन्हें रंज था कि सात लाख पंडितों को कोई पूछ नहीं रहा. ” रहबरी के सवाल” के लिए वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने जिन दिनों चंद्रशेखर का यह साक्षात्कार किया था, उस दौरान भारत-पाकिस्तान की बातचीत चल रही थी.

इस पर टिप्पणी करते हुए चंद्रशेखर ने कहा था, ” पहले दिन कश्मीर पर बात शुरू होती है. दूसरे दिन कहते हैं कि हम बात पर अड़े रहेंगे. समस्या तो पंजाब में भी थी. इससे अलग सही रास्ता निकला न ! समस्या तो हल हुई. अच्छा है, हल हो गई. कश्मीर पर बातचीत हो रही है लेकिन कश्मीरी पंडित कश्मीर से बाहर हैं. यही बात अगर हम कहने लगें तो कहने लगेंगे कि संघी हो गए हैं. तीन लोगों को इराक में बंधक बना लिया तो इतना सब कुछ हुआ. जो सात लाख हैं, उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा.”

अमेरिका क्यों चाहेगा भारत-पाक रिश्ते सुधरें

चंद्रशेखर का मानना था कि अमेरिका क्यों चाहेगा कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे हों? अमेरिका जो करेगा अपने हित में करेगा. उसे ज्यादा खतरा चीन से है. वह चीन में अपनी पैठ बनाना चाहता है. इसके लिए उसे नेपाल और कश्मीर में पैर जमाने के लिए जगह चाहिए और यह तभी संभव है जब लड़ाई हो.

चंद्रशेखर के मुताबिक जो धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, वे कश्मीर समस्या के हल खोजने का दिखावा करते हैं और हिंदुत्व चलाने वालों के लिए कश्मीर की समस्या न सुलझे तो बेहतर. चंद्रशेखर ने कहा था, ” अगर भारत – पाकिस्तान का झगड़ा न रहे तो आधे राजनीतिज्ञों का काम ही खत्म हो जाएगा. हमारे यहां आधे का खत्म होगा तो पाकिस्तान में एक – तिहाई का काम खत्म हो जाएगा.”

नहीं पता जनता पार्टी सरकार अट्ठाइस महीने कैसे चल गई?

चंद्रशेखर ने इस बात की कभी परवाह नहीं की कि उनके किसी बयान या राजनीतिक फैसले का क्या नफा – नुकसान होगा? कई मौकों पर विपरीत धारा में तैरते नज़र आए. इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बीच संवाद-सुलह की कोशिशों में कांग्रेस से निष्कासित होकर जेल पहुंच गए.

जनता पार्टी की सरकार के दौरान वे पार्टी के अध्यक्ष थे. मोरारजी कैबिनेट में मंत्री पद की पेशकश उन्होंने ठुकरा दी थी. 28 महीने की सरकार के दौरान पार्टी में भी घमासान मचा रहा. इसे उनकी भी विफलता माना गया. 1977 में सत्ता परिवर्तन के समय बहुत उम्मीदें लगाई गई थीं. ऐसा क्यों मुमकिन नहीं हुआ?

चंद्रशेखर का जवाब था, “आप दो दर्जन ऐसे नौजवानों के नाम नहीं बता सकते जो संपूर्ण क्रांति आंदोलन की धारणाओं को लेकर चले थे. मुझे याद है कि विद्यार्थी आंदोलन से आए 52 नौजवानों ने टिकट के लिए आवेदन किया था. उनमें 45-48 को मैंने कर्पूरी ठाकुर से कहकर टिकट दिलाया. कई लोग चुनाव जीते और मंत्री भी बने.

एक लड़का जो कॉलेज से जेल गया और 18 महीने बाद एम.पी.-एम.एल.ए. हो गया वह तुरंत मंत्री बनना चाहता है. वह त्याग, बलिदान, कुर्बानी और जय प्रकाश नारायण सबको भूल गया. दूसरे जनता पार्टी में कोई नहीं था जो अपने को दूसरे के बराबर समझे. मोरारजी भाई के बारे में कुछ कहना व्यर्थ है. चरण सिंह के बारे में कुछ कहना व्यर्थ है. जनसंघ के लोग शक्तिपुंज बनकर ही आए थे. सोशलिस्ट लोगों की आदर्शवादिता उनके सिर पर चढ़ी हुई थी. तो फिर किया क्या जा सकता था ? उन घटनाओं को जब मैं याद करता हूं तो आश्चर्य होता है कि सरकार आखिर अट्ठाइस महीने कैसे चल गई ?

क्यों बनाई सरकार?

चंद्रशेखर ने मोरारजी देसाई सरकार में जब मंत्री पद ठुकराया था तो कहा गया था कि उनकी नज़र प्रधानमंत्री पद पर है. 1989 में वे जनता दल के साथ थे लेकिन विश्वनाथ प्रताप सिंह का नेतृत्व स्वीकार नहीं था. संसदीय दल के नेता पद के चयन के समय देवीलाल के दांव से चंद्रशेखर बेहद खिन्न हो गए थे. विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए थे. हालांकि उनकी सरकार अल्पजीवी थी. अगले प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे. सिर्फ 64 सांसदों का साथ था. कांग्रेस के समर्थन से उनकी सरकार बनी थी. किसी को भी सरकार के चलने की उम्मीद नहीं थी. चंद्रशेखर भी इससे वाकिफ थे.

चंद्रशेखर का कहना था,”मुझे पता था कि मेरी सरकार अधिक दिनों नहीं चल सकेगी. मेरे जीवन की विडम्बना रही है. मैंने काफी आत्मविवेचन किया लेकिन आज तक उत्तर नहीं मिला. मैंने इस बात की कभी परवाह नही की, कि कौन किस पद पर है? कभी व्यक्तिगत कारणों से किसी पर आक्षेप भी नही किया. लेकिन लोगों को मुझसे घबराहट होती रहती है. न जाने क्यों? “

देश विनाश के रास्ते था, मैं उसे बदल सकता था

कांग्रेस के समर्थन के मामले में चौधरी चरण सिंह सरकार का हश्र याद था. खुद भी मानते थे कि सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी. फिर भी प्रधानमंत्री बनना कुबूल किया. क्यों? चंद्रशेखर का उत्तर था, “उस समय वीपी की सरकार देश को जिस रास्ते पर ले जा रही थी, वह खतरनाक रास्ता था. देश विनाश की ओर जा रहा था. मैं उसको बदल सकता हूं, इसका मुझे विश्वास था. दो तरह के दंगे-फसाद चल रहे थे -साम्प्रदायिक और सामाजिक. मैंने 11 नवम्बर 1990 को शपथ ली. उस समय 70-75 जगहों पर कर्फ्यू लगा हुआ था. युवक आत्मदाह कर रहे थे. वे मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ़ भड़क गए थे. दूसरी तरफ साम्प्रदायिक दंगे हो रहे थे. मुझे सरकार चलाने का अनुभव नही था लेकिन मेरा विश्वास था कि अगर देश के लोगों से सही बात की जाए तो जनता देश के भविष्य के लिए सब कुछ करने को तैयार रहेगी. कठिनाइयों के बावजूद मुझे विश्वास था कि कोई न कोई रास्ता निकल सकता है. भले अस्थायी ही हो. प्रधानमंत्री का पद मैंने कर्तव्य भावना से स्वीकार किया था.”

यह भी पढ़ें: अमेरिका में कितनी पार्टियां, कैसा पॉलिटिकल सिस्टम? मस्क ने किया ऐलान

What's Your Reaction?

like

dislike

wow

sad

सह सम्पादक भारतीय न्यूज़ भारतीय न्यूज़, ताजा खबरें, इंडिया न्यूज़, हिंदी समाचार, आज की खबर, राजनीति, खेल, मनोरंजन, देश दुनिया की खबरें news letter हम भारतीय न्यूज़ के साथ स्टोरी लिखते हैं ताकि हर नई और सटीक जानकारी समय पर लोगों तक पहुँचे। हमारा उद्देश्य है कि पाठकों को सरल भाषा में ताज़ा, Associate Editor, Bharatiya News , विश्वसनीय और महत्वपूर्ण समाचार मिलें, जिससे वे जागरूक रहें और समाज में हो रहे बदलावों को समझ सकें। Bharatiya News पर पढ़ें भारत और दुनिया से जुड़ी ताज़ा खबरें, राजनीति, खेल, मनोरंजन, तकनीक और अन्य विषयों पर विश्वसनीय समाचार