अब चीन के रास्ते कैलास दर्शन को जा सकेंगे भारतीय श्रद्धालु, Jaishanker-Wang वार्ता में सीधी विमान सेवा पर भी बात

चार साल पहले चीन द्वारा बेवजह गलवान में भारतीय सैनिकों से मुठभेड़ करने और मुंह की खाने के बाद, सीमा पर तनाव पैदा कर दिया था। ​उस दौरान कई मौकों पर लगा कि दोनों देशों में पारा उछाल पर था और कभी भी गंभीर युद्ध छिड़ सकता था। लेकिन भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने […]

Nov 20, 2024 - 12:24
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अब चीन के रास्ते कैलास दर्शन को जा सकेंगे भारतीय श्रद्धालु, Jaishanker-Wang वार्ता में सीधी विमान सेवा पर भी बात

चार साल पहले चीन द्वारा बेवजह गलवान में भारतीय सैनिकों से मुठभेड़ करने और मुंह की खाने के बाद, सीमा पर तनाव पैदा कर दिया था। ​उस दौरान कई मौकों पर लगा कि दोनों देशों में पारा उछाल पर था और कभी भी गंभीर युद्ध छिड़ सकता था। लेकिन भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई में ऐसे तनाव को दूर करके पहले की स्थिति बहाल करने में अपनी गजब की योग्यता प्रदर्शित की और भारत के हितों को प्राथमिकता देते हुए चीन से सीधे और खरे शब्दों में बात की।


ब्राजील में जी20 सम्मेलन के मौके पर भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण वार्ता हुई। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई इस बातचीत के बाद संबंधों पर जमी बर्फ के पिघलने के और आसार मिले हैं। बात हुई है कि अब भारत के श्रद्धालु कैलास—मानसरोवर यात्रा फिर से चीन के रास्ते कर सकेंगे और दोनों देशों के बीच सीधी विमान सेवा भी जल्दी ही शुरू हो सकती है।

जयशंकर और वांग के बीच सहमति के कई मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होना एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है। इस वार्ता में भारत और चीन के बीच चार साल से पटरी से उतरे संबंधों को दुरुस्त करने की बात आई और यह कैसे होगा, इसका खाका भी मोटे तौर पर तय किया गया। बता दें कि पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती स्थानों से दोनों तरफ के सैनिकों के पीछे हटने के बाद यह पहली उच्च स्तरीय वार्ता हुई थी।

दोनों देश एक दूसरे के यहां सीधी विमान सेवा फिर से आरम्भ करने के लिए प्रक्रिया आगे बढ़ाने को राजी हुए हैं। वर्षों से लटका कैलास मानसरोवर यात्रा का मुद्दा सुलझने की संभावना से भारत के श्रद्धालुओं, विशेषकर शिवभक्तों में एक उम्मीद जगी है। चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि यह सिर्फ एक शुरुआती बिन्दु ही है दोनों देशों के बीच संबंध को वापस पहले जैसा बनाने की ओर।

जयशंकर पहले भी वांग के साथ लाओस में वार्ता कर चुके हैं, जिसमें उस बातचीत का क्रम आगे बढ़ाने की बात हुई थी। संभवत: उसी संकल्प के साथ भारत और चीन ने यह विशेष बैठक आयोजित की और इसमें चर्चा भी संदर्भों के आसपास ही रही। चीन ने दो दिन पहले ही भारत के साथ समझौते और सहमति के मुद्दों पर आगे बढ़ने की वकालत की थी।

चार साल पहले चीन द्वारा बेवजह गलवान में भारतीय सैनिकों से मुठभेड़ करने और मुंह की खाने के बाद, सीमा पर तनाव पैदा कर दिया था। ​उस दौरान कई मौकों पर लगा कि दोनों देशों में पारा उछाल पर था और कभी भी गंभीर युद्ध छिड़ सकता था। लेकिन भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई में ऐसे तनाव को दूर करके पहले की स्थिति बहाल करने में अपनी गजब की योग्यता प्रदर्शित की और भारत के हितों को प्राथमिकता देते हुए चीन से सीधे और खरे शब्दों में बात की।

पूर्वी लद्दाख में देपसांग तथा डेमचोक से दोनों पक्षों के सैनिकों ने कदम पीछे लौटाने शुरू किए हैं और तनाव में गुणात्मक कमी देखी गई है। संबंधों को सुधारने की दिशा में यह पहली शर्त थी, जिस पर अमल के संकेत मिलने के बाद अगले कदम पर बढ़ा गया।
इसी के फौरन बाद दोनों पक्षों के बीच रियो में पहली उच्च स्तरीय बैठक से संकेत भी अच्छे निकले हैं।

रही बात सीधी विमान सेवा की बहाली की तो साल 2020 में चीनी वायरस कोविड की महामारी के चलते भारत तथा चीन के बीच सीधी उड़ानें रोकी गई थीं। लेकिन उसके बाद, अभी वे सुचारु नहीं हुई हैं। इस पर आगे बढ़ने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद शायद जल्दी ही ये सेवाएं फिर शुरू हो जाएं।

रियो की वार्ता के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने ‘एक्स’ पर अपनी पोस्ट में लिखा है कि दोनों देश सीमा क्षेत्रों से सैनिकों को हाल में पीछे हटने की प्रगति से संतुष्ट हुए, जिसके बाद द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ने पर बातचीत की गई। कहा जा रहा है कि दोनों देश संवाद तंत्रों को फिर से जाग्रत करने के तरीके तय कर रहे हैं। सीमा से जुड़े मुद्दों पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता भी शामिल हुए।

माना जा सकता है कि इस चर्चा से कुछ प्रगति हुई है। इस महत्वपूर्ण बैठक में जयशंकर भारत-चीन रिश्तों के महत्व पर बल देते हुए वांग को संबोधित करके कहा, ‘जी-20 के दौरान आपसे बात करना अच्छा रहा। जैसा आपने कहा, हमने गत दिनों ब्रिक्स बैठक के दौरान भी आपस में चर्चा की थी। दोनों ही मंचों पर हमारा योगदान अंतिम नतीजों को स्वरूप देने में महत्वपूर्ण रहा।’

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