भारत के अंदरूनी मामलों पर विदेशी बयान के पीछे साजिश की बू
विदेश मंत्रालय का मानना है कि समय- समय पर भारत को कभी मानवाधिकार
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भारत के अंदरूनी मामलों पर विदेशी बयान के पीछे साजिश की बू
कूटनीति
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत विरोधी सवाल पूछने वाले बांग्लादेशी पत्रकार की भूमिका संदेहास्पद, केजरीवाल और कांग्रेस से जुड़े आयकर मामलों में पूछे गए थे प्रश्न
फिर भी रिश्तों पर नहीं पड़ेगा असर
विदेश मंत्रालय के अधिकारी यह मानते हैं कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाने को लेकर हुई तीखी प्रतिक्रियाओं के बावजूद इन देशों के साथ भारत के रिश्तों पर कोई असर नहीं पडने वाला है। यह पहला मौका है जब भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से टिप्पणी की गई। अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया के कई समाचार पत्रों में भी हाल के दिनों में भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाते हुए आलेख प्रकाशित किए गए हैं।
हाल ही में भारतीय संस्थाओं और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक के बाद एक जर्मनी, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई टिप्पणियों को भारत एक सामान्य प्रक्रिया के तौर-तरीके पर नहीं ले रहा है। यूं तो इन देशों में पहले ही कुछ धड़ा भारत विरोधी रहा है। नया पहलू यह है कि कुछ लोग जानबूझकर अंतराष्ट्रीय मंच पर ऐसे सवाल करते हैं, जिससे भारत की व्यस्था पर प्रश्न खड़ा किया जा सके।
प्रकरण पर विदेश मंत्रालय का मानना है कि समय- समय पर भारत को कभी मानवाधिकार, कभी लोकतांत्रिक व्यवस्था तो कभी आर्थिक सुधार के मुद्दे पर घेरने वाली शक्तियां ही इसका भी हिस्सा हैं। रोचक यह है कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी या मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बैंक खातों को आयकर विभाग द्वारा जब्त करने के सवाल वाशिंगटन में रहने वाले बांग्लादेशी पत्रकार मुश्फिकुल फजल ने पूछे थे।
खास बात यह है कि सवाल के जवाब में ही सही लेकिन भारत के अंदरूनी मामलों पर टिप्पणी के लिए भारत ने अमेरिका और जर्मनी दोनों को अपनी नाराजगी जताई थी। दोनों भारत के करीबी रणनीतिक साझेदार हैं, जिनसे द्विपक्षीय रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं। फिर भी भारत ने इन्हें सख्त संदेश देने में कोई कोताही नहीं की है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि जर्मनी और अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं ने जो प्रतिक्रिया दी थी, वह एक प्रश्न के उत्तर में थी। इसके बावजूद जिस तरह से भारत की न्यायिक प्रणाली पर संदेह जताया गया, उसको काफी गंभीरता से लिया गया है।
उसमें भारत को बदनाम करने की साजिश देखी जा रही है। अगर भारत की कूटनीति के संदर्भ में यह बात कही गई होती तो विदेश मंत्रालय भी एक प्रतिक्रिया जता कर मामले को रफा-दफा कर देता। लेकिन न्यायिक प्रणाली पर सवाल उठाने या लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निशाना बनाने पर मामला गंभीर हो जाता है।कई देशों की तरफ से एक ही सवाल उठाने के पीछे कोई साजिश तो नहीं इसके जवाब में विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कुछ शक्तियां भारत को किसी न किसी मामले में घेरने की कोशिश करती हैं। कभी मीडिया में आलेख के जरिये तो कभी सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट के जरिये ऐसा किया जाता रहा है। यह पुरानी परंपरा है। भारत का कड़ा जवाब इन्हें नागवार गुजरता है।
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