उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आर्थिक राष्ट्रवाद को देश के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण मौलिक कारक बताया है।
उपराष्ट्रपति के इस भाषण से स्पष्ट होता है कि वे आर्थिक राष्ट्रवाद, आत्मनिर्भरता, और उद्यमिता को प्रमोट करने में सक्रिय रूप से शामिल हैं और विभिन्न क्षेत्रों में सुधार के लिए साझा संवाद की आवश्यकता को महत्वपूर्ण मानते हैं।
![उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आर्थिक राष्ट्रवाद को देश के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण मौलिक कारक बताया है।](https://bharatiya.news/uploads/images/202402/image_870x_65cf9e96a94b3.jpg)
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आर्थिक राष्ट्रवाद का महत्व: उपराष्ट्रपति ने आर्थिक राष्ट्रवाद को देश के आर्थिक विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण मौलिक कारक बताया।
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'वोकल फोर लोकल' का उत्कृष्टीकरण: वे 'वोकल फोर लोकल' की जरूरत को बढ़ावा देते हैं, जो 'स्वदेशी आंदोलन' के सार को दिखाता है और 'आत्मनिर्भर भारत' के एक पहलू को प्रतिबिंबित करता है।
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मूल्य संवर्धन की महत्वपूर्णता: उपराष्ट्रपति ने मूल्य संवर्धन के बिना कच्चे माल के निर्यात को लेकर सावधानी की और इसे 'देश के लिए कष्टदायक' बताया।
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उद्योगपतियों से निवेदन: श्री धनखड़ ने प्रमुख उद्योगपतियों से देश में अनुसंधान और विकास को समर्थन देने का अनुरोध किया, उन्हें 'प्रोत्साहन, वित्त, समर्थन, संरक्षण' प्रदान करने के लिए।
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स्टार्टअप्स और एमएसएमई के प्रशंसा: उपराष्ट्रपति ने भारत स्टार्टअप और एमएसएमई क्षेत्र की प्रदर्शन को सराहा और उन्हें लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण बताया।
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शिक्षा के प्रति ध्यान: उन्होंने विदेशी विश्वविद्यालयों को सहायता प्रदान करने के साथ-साथ स्थानीय विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों पर भी ध्यान देने की महत्वपूर्णता को उजागर किया।
उपराष्ट्रपति के इस भाषण से स्पष्ट होता है कि वे आर्थिक राष्ट्रवाद, आत्मनिर्भरता, और उद्यमिता को प्रमोट करने में सक्रिय रूप से शामिल हैं और विभिन्न क्षेत्रों में सुधार के लिए साझा संवाद की आवश्यकता को महत्वपूर्ण मानते हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आर्थिक राष्ट्रवाद को देश के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण मौलिक कारक बताया है। उन्होंने कहा कि वस्तुएं और सेवाएं केवल उत्कृष्ट जरूरतों के अनुसार ही आयात की जानी चाहिए, जिससे विदेशी मुद्रा की निकासी कम हो, रोजगार के अवसर बढ़ें, और उद्यमिता को बढ़ावा मिले।
उन्होंने 'वोकल फोर लोकल' की महत्वपूर्णता को बताया और इसे 'स्वदेशी आंदोलन' के सार का प्रतिबिंबित करने के रूप में देखा। उपराष्ट्रपति ने स्टार्टअप्स और एमएसएमई क्षेत्र में भारत की प्रगति की सराहना की और उद्योगपतियों से अनुसंधान और विकास को समर्थन करने का आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति ने मूल्य संवर्धन के बिना कच्चे माल के निर्यात को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता बताई और इसे देश के लिए कष्टदायक माना। उन्होंने उद्योगियों से स्थानीय विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को समर्थन देने का भी आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति का उक्त संबोधन आर्थिक राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत है, जो देश के समृद्धि और समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है।
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