महाराष्ट्र में शिक्षक दिवस पर एक जागरूक शिक्षक ने बाल विवाह रोककर मिसाल कायम की। जानिए कैसे शिक्षक की सतर्कता से बची नाबालिग की जिंदगी। शिक्षक दिवस विशेष महाराष्ट्र, जागरूक शिक्षक, बाल विवाह रोकथाम
लेखक – राम जी तिवारी

महाराष्ट्र के परभणी जिले के एक छोटे से गांव की ये कहानी सिर्फ एक बच्ची का बाल विवाह रोकने की ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील शिक्षक की जागरूकता का उदाहरण भी है। 14 साल की मीनू (बदला हुआ नाम) गरीब मजदूर परिवार से थी। हाल ही में उसने 9वीं कक्षा में दाखिला लिया था और पढ़ाई को लेकर उसका उत्साह गजब का था। हर दिन वो बड़े सपनों के साथ स्कूल आती थी। लेकिन अचानक उसके माता-पिता ने कह दिया, “अब तुम्हारी शादी तय हो गई है, पढ़ाई की जरूरत नहीं।” यह सुनकर ऐसा लगा मानो मीनू के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई हो। दिल तेजी से धड़कने लगा, पर हिम्मत बटोरकर उसने अपनी सहेली के सामने पूरी सच्चाई रख दी। लेकिन कुछ दिनों तक स्कूल न आने पर शिक्षक को चिंता हुई, तब उन्होंने सहेली से कारण पूछा तो सच्चाई सामने आई। यह जानकर शिक्षक समझ गए कि अगर तुरंत कदम नहीं उठाया गया तो मीनू का पूरा भविष्य अंधेरे में डूब जाएगा। तभी उन्होंने उसे बचाने का ठान लिया।

चूंकि शिक्षक पहले से ही द इंस्टीट्यूट फॉर सोशल अवेयरनेस एंड रिफॉर्म (आईएसएआर) के जागरूकता कार्यक्रमों से जुड़े थे, इसलिए वे जानते थे कि जरा-सी भी देरी मीनू की जिंदगी को नर्क बना सकती है। बिना देर किए उन्होंने बाल विवाह रुकवाने और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले देश के सबसे बड़े नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) से जुड़े आईएसएआर के जिला समन्वयक लक्ष्मण गायकवाड़ को खबर दी। सूचना मिलते ही संगठन की टीम ने गांव की संवेदनशीलता और मामले की गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए सामुदायिक सर्वेक्षण के बहाने मीनू के घर दस्तक दी—जहां उन्हें उस शादी की सच्चाई परखनी थी। मामला गंभीर देखते हुए उन्होंने पंचायत और पुलिस की संयुक्त टीम को भी साथ लेकर परिवार से बातचीत की। सबसे पहले माता-पिता को समझाया कि कम उम्र में शादी करना बच्ची के लिए बेहद हानिकारक है। इससे वह शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की परेशानियों में घिर सकती है और उसका पूरा भविष्य अंधकारमय हो सकता है। शुरू में माता-पिता आनाकानी करते रहे, लेकिन जब उन्हें बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के कानूनी परिणाम बताए गए, तो वे मान गए और वादा किया कि मीनू की शादी अब बालिग होने के बाद ही करेंगे। “इस अवसर पर शिक्षक ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि बाल विवाह रोकने और क्षेत्र में जागरूकता फैलाने के लिए आईएसएआर का प्रयास अत्यंत सराहनीय है।”
द इंस्टीट्यूट फॉर सोशल अवेयरनेस एंड रिफॉर्म के डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर ने कहा, “हम बाल विवाह जैसी कुप्रथा से प्रभावित संवेदनशील वर्ग को जागरूक करने के लिए स्कूलों और गांवों पर विशेष ध्यान देते हैं, आज भी बच्चों के भविष्य पर बाल विवाह का खतरा मंडराता रहता है।” राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (साल 2019-21) के मुताबिक परभणी जिले में बाल विवाह की दर 48.0 % है, जो राष्ट्रीय दर (23.3%) से बहुत ज्यादा है। यानी जिले में लगभग हर दूसरी लड़की की शादी बालिग होने के पहले कर दी गई। ऐसे में यहां जागरूकता और कानून के सख्त क्रियान्वयन से ही बाल विवाह पर रोक लग सकती है।
यह घटना दिखाती है कि समाज में बदलाव की असली शुरुआत एक जागरूक शिक्षक से हो सकती है। अगर मीनू के शिक्षक ने संवेदनशीलता और जिम्मेदारी न निभाई होती, तो उसकी ज़िंदगी अंधेरे में खो जाती। शिक्षक सिर्फ पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि बच्चों के अधिकारों के सच्चे संरक्षक भी होते हैं। इस तरह सही समय पर हस्तक्षेप और आईएसएआर की सक्रिय भूमिका ने न केवल मीनू का बाल विवाह रोका बल्कि उसके सपनों को भी नया जीवन दिया। आज मीनू फिर से उसी उत्साह से स्कूल जा रही है और उसे यकीन है कि उसके सपने पूरे होंगे। इससे साबित होता है कि शिक्षा के साथ शिक्षकों की जागरूकता और सामाजिक संगठनों की भागीदारी ही बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को रोकने का सबसे सशक्त माध्यम है।