पूजा करते समय जूते-चप्पल उतारना ज़रूरी है? जानें सनातन परंपरा

भारत की सनातन संस्कृति में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। हर घर में सुबह-शाम भगवान की आराधना होती है। आपने अक्सर देखा होगा कि लोग मंदिर में प्रवेश करने से पहले या घर में पूजा करने से पहले अपने जूते-चप्पल बाहर उतार देते हैं। सवाल यह है कि ऐसा क्यों किया जाता है? क्या यह सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कोई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी है?


1. शुद्धता और पवित्रता का नियम

सनातन धर्म में पूजा स्थल को सबसे पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि जहां भगवान का वास होता है, वहां अशुद्ध वस्तु नहीं जानी चाहिए।
जूते-चप्पल गंदगी, धूल-मिट्टी और कीटाणु लेकर आते हैं। इन्हें पहनकर पूजा स्थल में जाने से वहां की पवित्रता भंग होती है।


2. श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक

जूते-चप्पल उतारना केवल स्वच्छता के लिए नहीं, बल्कि भगवान के प्रति श्रद्धा और आदर का भाव भी दर्शाता है।
जैसे हम किसी बड़े-बुजुर्ग या गुरुजन से मिलने जाते हैं, तो जूते उतारकर उनके सामने बैठते हैं, वैसे ही भगवान के सामने भी हम नतमस्तक होकर उनकी महिमा का सम्मान करते हैं।


3. मंदिर वास्तु और ऊर्जा विज्ञान

वैज्ञानिक दृष्टि से भी पूजा स्थान या मंदिर को ऊर्जा केंद्र माना जाता है।

  • जब हम नंगे पांव होते हैं, तो हमारा शरीर सीधे पृथ्वी की सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ता है।
  • मंदिर की भूमि पर नंगे पांव चलने से शरीर में सकारात्मक तरंगें प्रवेश करती हैं।
  • जूते-चप्पल इस ऊर्जा प्रवाह को रोक देते हैं।

4. धार्मिक शास्त्रों में उल्लेख

धर्मग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है कि पूजा करते समय और मंदिर में प्रवेश करते समय जूते-चप्पल पहनना वर्जित है।
मनुस्मृति और गरुड़ पुराण में वर्णन है कि जूते पहनकर भगवान की आराधना करना, देवताओं का अपमान माना जाता है।


5. सामाजिक और सांस्कृतिक कारण

भारत के गांवों और कस्बों में आज भी यह परंपरा गहराई से जुड़ी है।

  • मंदिर या घर का पूजा कक्ष स्वच्छ और पवित्र माना जाता है।
  • लोग इसे गंदगी से बचाने के लिए जूते-चप्पल बाहर ही उतारते हैं।
  • यह एक सामाजिक अनुशासन भी है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।

पूजा करते समय जूते-चप्पल उतारना केवल परंपरा नहीं, बल्कि शुद्धता, श्रद्धा और वैज्ञानिक दृष्टि से भी आवश्यक है। यह भगवान के प्रति हमारा आदर है और हमारी आस्था का प्रतीक भी।

इसलिए अगली बार जब आप मंदिर जाएं या घर पर पूजा करें, तो याद रखें कि नंगे पांव होना ही पूजा की सही परंपरा है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top